तालों के शहर में मजदूरों की किस्मत पर ताला

labours-are-suffering-in-aligarhअलीगढ़। जिस वक्त चीनी घुसपैठ हर हिंदुस्तानी की चिंता का कारण हैं, लॉक सिटी ने तो उसी ड्रैगन के लिए लाल-कालीन बिछा दी है। परदेसी तकनीक और डिजाइन के आगे हमारा हुनर बौना साबित हुआ तो उद्यमियों ने चीनी माल को ही अपना लिया। अब उत्पादन खर्च घटाने के लिए मजदूरों की छंटनी हो रही है, मजदूरी में कटौती भी। क्या लॉक सिटी अपने ही मजदूरों की किस्मत पर ताला लगाने जा रही है? गंभीरता से सोचिये.क्योंकि एक मई को मजदूर दिवस है।

कहानी कारोबार की

ताला और हार्डवेयर अलीगढ़ की रग-रग में बसा हुआ है। ये एक कुटीर उद्योग-सा है। यहां छोटी-बड़ी 400 से अधिक ताला फैक्ट्रियां हैं। सालाना टर्नओवर 1500 करोड़ पार है। देश में 70 फीसद ताले का कारोबार अलीगढ़ से होता है। यहां सरकारी नीतियों के कारण उद्यमी तकनीकी रूप से सुदृढ़ नहीं हो पा रहे हैं। चीन ने सस्ते और खूबसूरत डिजाइन के ताले उतारे तो यहां के उद्यमी भी उनके मुरीद हो गए। अब तो दर्जनभर उद्यमी चीनी ताले पर ही अपनी मुहर लगा रहे हैं।

 

मार मजदूरों पर

लॉक सिटी में 10 साल में 70 फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं और करीब पांच सौ मजदूर खाली। कारोबार बचाने के लिए जिन उद्यमियों ने जेनरेटर से उत्पादन शुरू किया है, उनके मुनाफे पर चोट पड़ रही है। मार मजदूर भी झेल रहे हैं। उद्यमी तर्क देते हैं कि जेनरेटर से उत्पादन लागत दोगुनी है तो मजदूरी कैसे पूरी दें? फिर, नई तकनीक तो मजदूरों की छुंट्टी लाती ही है।

पलायन शुरू

काम के बदले पूरे पैसे नहीं मिलने से कुशल कारीगर अब पलायन को मजबूर हैं। किसी को मोदी का गुजरात सुहाने लगा है तो किसी को महाराष्ट्र और उत्तराखंड में बढ़ते उद्योग।

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