कहीं थम न जाए टीम अन्ना की मुहिम

नई दिल्ली, [सुमन अग्रवाल]। भ्रष्टाचार के खिलाफ पिछले दो साल से टीम अन्ना द्वारा चलाए गए आंदोलन के अचानक इस मोड़ पर आकर खत्म हो जाने से उनके समर्थक खासे नाराज नजर आ रहे हैं। टीम अन्ना के इस फैसले की जहां बुद्धिजीवियों द्वारा कड़ी आलोचना हो रही है, वहीं राजनीति पार्टियों ने भी टीम अन्ना के फैसले को आम जनता से धोखा बताया है।

टीम अन्ना ने जिस तर्ज पर यह फैसला लिया है, उससे एक चीज बेहद स्पष्ट तौर पर सामने आ गई है और वह यह कि टीम अन्ना या फिर अन्ना हजारे को कहीं न कहीं यह लगने लगा है कि बिना राजनीतिक चादर ओढ़े सफलता मिलनी मुश्किल है। लेकिन राजनीतिक राह पर चलकर भी सफलता मिल जाएगी यह कहना भी अभी मुश्किल है। इसके पीछे कई वजह हैं। जंतर-मंतर पर दस दिन चले इस अनशन पर नजर डालें तो याद आते हैं वह शुरुआती छह दिन जिसमें अन्ना अनशन पर नहीं थे और केजरीवाल के समर्थकों के नाम पर महज कुछ सौ लोग ही बामुश्किल अनशन स्थल पर जुट सके थे। लेकिन अन्ना के आने के बाद वहां पर अचानक समर्थकों का सैलाब आ गया। यह समर्थक अन्ना के थे या टीम अन्ना के कहना जरूरी नहीं है।

जंतर-मंतर के अनशन से एक बात बेहद साफतौर पर उभरकर आई कि टीम अन्ना को जो भी समर्थन मिला वह अन्ना के ही नाम पर था। ऐसे में यदि टीम अन्ना एक राजनीतिक विकल्प देने की बात कर रही है तो क्या उसके सदस्यों को यह समर्थन मिल सकेगा। वह भी तब जबकि उनके इस फैसले से ज्यादातर समर्थक बेहद खफा हैं।

वहीं, अन्ना काफी पहले यह बात साफ कर चुके हैं कि वह सिर्फ राजनीतिक विकल्प देंगे खुद इसमें शामिल नहीं होंगे। लेकिन टीम अन्ना के दूसरे सदस्य पहले ही राजनीति में जाने की अपनी मंशा साफ कर चुके हैं। ऐसे में भी टीम अन्ना के आंदोलन पर अब आशंका के बादल मंडरा रहे हैं।

टीम अन्ना के समर्थन में मुंबई से आए राजू वर्मा ने कहा कि अन्ना के इस फैसले के बाद अब यहां रहकर कोई फायदा नहीं है। आखिरकार वही हुआ जो हर आंदोलन का अंजाम होता है। हमें राजनीति व व्यवस्था में बदलाव चाहिए था नाकि कोई चुनावी पार्टी चाहिए थी। कुछ समर्थकों ने तो यहां तक भी कह दिया कि टीम अन्ना को अपना यह फैसला बदल लेना चाहिए। राजनीति का विचार बिल्कुल गलत है।

टीम अन्ना द्वारा चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से ही राजनीतिक माहौल में गर्मा गया है। भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि आखिरकार आंदोलन ने राजनीतिक रंग पकड़ ही लिया। स्वामी अग्निवेश ने टीम अन्ना के इस फैसले को अनशन के मुंह पर एक तमाचा करार दिया है। उन्होंने साफ कह दिया कि जिस अनशन को महात्मा गांधी ने शुरू किया था टीम अन्ना ने उसे तोड़कर महात्मा गांधी का अपमान किया है। वहीं, टीम अन्ना की सहयोगी रही समाज सेवी मेधा पाटेकर ने कहा कि यदि इस आंदोलन पर भी राजनीतिक रंग चढ़ जाएगा तो इसका हर्ष भी दूसरे आंदोलनों की ही तरह होगा। उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे को अपने फैसले को बदल लेना चाहिए।

दूसरी ओर, लोकपाल बिल के लिए चली इतनी लंबी लड़ाई के बाद संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने स्पष्ट कर दिया कि आगामी मानसून सत्र में भी लोकपाल बिल नहीं आएगा।

गौरतलब है कि टीम अन्ना का सीधेतौर पर राजनीति में प्रवेश करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, क्योंकि आंदोलन से जुड़कर व्यवस्था को बदलना और राजनीतिक रंग में खुद को ढालना दोनों अलग बात है। राजनीति अपने आप में एक जंग व एक दलदल है। इसके बाद भी एक सवाल लगातार उठ रहा है कि टीम अन्ना के अनशन खत्म करने की असली वजह क्या है?

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