23 साल की जद्दोजहद के बाद महिला को मिला फ्लैट

DDA flat, delhi, woman, high courtनई दिल्ली। पति की मौत के बाद डीडीए फ्लैट को पाने में एक महिला को 23 साल लग गए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने महिला की याचिका पर डीडीए को निर्देश दिए हैं कि वह आठ सप्ताह के भीतर मिनी ड्रा निकाल महिला को फ्लैट दे दे।

न्यायमूर्ति वीके जैन ने कहा कि यह फ्लैट महिला को ड्रा निकलने के बाद चार सप्ताह के भीतर दे दिया जाना चाहिए। इसके लिए महिला द्वारा डीडीए को 3 मई 1990 को तय फ्लैट कीमतों के आधार पर कीमत चुकानी होगी। पार्वती ने दिल्ली उच्च न्यायालय में डीडीए के खिलाफ याचिका दायर में कहा था कि उसके पति सूरजपाल वर्मा ने डीडीए की न्यू पैटर्न रजिस्ट्रेशन स्कूल के तहत डीडीए का एक फ्लैट 1979 में बुक कराया था।

उसके पति की 12 अगस्त 1988 को मौत हो गई। डीडीए ने फ्लैटों का ड्रा 14 मार्च 1990 को निकाला। जिसमें उनका कोंडली में एक एलआइजी फ्लैट निकला था। 24 अप्रैल 1990 को डीडीए ने डिमांड लेटर भेज कर उन्हें 25 हजार 997 रुपये जमा कराने को कहा। बेटे शिव कुमार ने 14 जुलाई 1990 को राशि जमा करा दी और पिता के मृत्यु प्रमाण पत्र पेश कर फ्लैट म्यूटेशन के लिए आवेदन किया, लेकिन 23 जनवरी 1995 को उसे कहा गया कि सूचना उन्हें देरी से दी गई है। इससे फ्लैट किसी अन्य को आवंटित कर दिया गया है।

मांगे अतिरिक्त रुपए

महिला ने याचिका में कहा कि डीडीए ने उन्हें अगले ड्रा में फ्लैट देने की बात कही। फरवरी 1998 को अगला ड्रा निकला और उन्हें रोहिणी में एलआइजी आवंटित कर दिया गया, इसके लिये अतिरिक्त रकम मांगी गई। डीडीए के वाइस चेयरमैन से भी बात करने पर कोई लाभ नहीं हुआ। फ्लैट फिर किसी अन्य को आवंटित कर दिया गया। फिर एक बार ऐसी ही प्रक्रिया 2007 में अपनाई गई, लेकिन महिला ने अतिरिक्त रकम अदा करने से मना कर दिया।

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