केंद्र का ‘आयरन शक्‍ति प्रोग्राम’ बना ‘फ्लॉप शो’

ironबुजुर्ग कहते हैं कि जब वक्‍त बुरा होता है तो ऊंट पर बैठे व्‍यक्‍ति को भी कुत्ता काट लेता है। कुछ ऐसा ही इन दिनों केंद्र सरकार की जन कल्‍याण वाली योजनाओं के साथ हो रहा है। केंद्र सरकार की हर योजना जमीनी स्‍तर पर आते ही किसी शराबी व्‍यक्‍ति की तरह लड़खड़ाते हुए धड़म्‍म से जमीन पर
गिर जाती है। मनरेगा, मिड डे मील के बाद अब केंद्र सरकार की सरकारी स्‍कूलों में पढ़ने वाले बच्‍चों की रक्‍त कमी को दूर करने के लिए चलाई गई आयरन और फोलिक सप्लीमेंट (डब्लूआईएफआई) खुराक देने की योजना भी औंधे मुंह गिरती नजर आ रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 17 जुलाई से पूरे देश में साप्ताहिक आयरन और फोलिक सप्लीमेंट (डब्लूआईएफआई) खुराक देने की योजना शुरू करने का फैसला किया था। इसके तहत 10-19 वर्ष से हर एक लड़के और लड़की को एनीमिया से बचाने के लिए स्कूलों और घरों में स्वास्थ्यकर्मी दवा उपलब्ध करवाने की बात कही गई थी। इस योजना का शुभारम्‍भ 17 जुलाई को कर्नाटक से किया गया था, और शुरूआती दौर में इसको 27 राज्‍यों में लागू करने की बात कही गई थी। और इसके साथ यह भी दावा किया गया था कि अगले कुछ महीनों में पूरे देश में यह योजना शुरू कर दी जाएगी।  इस योजना के लिए 750 करोड़ खर्च का खाका तैयार किया है।
लेकिन, जैसे ही इस योजना का शुभारम्‍भ हुआ, वैसे ही शिकायतों का दौर शुरू हो गया। ऐसा नहीं कि इस मामले में जो शिकायत सामने आई, वे किसी भाजपा शासित राज्‍य से हैं, बल्‍कि इस खुराक के सेवन से कांग्रेस शासित राज्‍य के छात्र ही बीमार हुए। सबसे पहले इस गोली के सेवन के बाद बीमार होने के
मामले हरियाणा से आने शुरू हुए। महाराष्‍ट्र के अंदर भी कुछ जगहों पर इस दवा को देने से इंकार कर दिया गया। हालांकि इस योजना से पूर्व प्रसुति व शिशु स्वास्थ्य से जुड़े संयुक्त सचिव डॉ. राकेश ने चेताया था कि एनीमिया से लडऩे वाली इन गोलियों से सेहत को नुकसान नहीं पहुंचता है। कभी-कभी चक्कर आने या उल्टी लगने जैसे लक्षण दिख सकते हैं। ऐसे में किसी दुष्प्रभाव से बचाने के लिए आपात मेडिकल टीमों की तैनाती का भी प्रावधान भी किया जाएगा। डॉक्‍टर की चेतावनी के बाद भले ही मेडिकल विभाग इस बात को हलके में ले, लेकिन अभिभावक, शिक्षक एवं बच्‍चे इस बात को हलके से नहीं ले सकते। एक रिपोर्ट के मुताबिक एनीमिया से सबसे ज्यादा किशोर ही प्रभावित हैं। जनगणना-2011 के अनुसार 15-19 वर्ष के करीब 12.2 करोड़ किशोरों में एनीमिया पाया गया। आयरन और फोलिक की कमी से इसी उम्र सीमा की 5.7 करोड़ लड़कियों में से 5.3 करोड़ को एनीमिया पाया गया है।
यह स्‍कीम 17 जुलाई को शुरू की गई। इस स्‍कीम के शुरू होते ही शिकायतों का सिलसिला शुरू हो गया।  18 जुलाई को दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा राजधानी की किशोरियों को एनीमिया मुक्त करने के उद्देश्य से साप्ताहिक आयरन व फोलिक एसिड अनुपूरण योजना (विप्स) के पहले दिन 18 लाख
लोगों को खिलाई गई गोलियों में से कम से कम 200 स्कूली बच्चे बीमार हो गए।
20 जुलाई को महाराष्ट्र के सोलापुर जिला में मलकावठे गांव में पंचाक्षरी हाई स्कूल में आयरन की गोली खाने से 132 बच्चे बीमार हो गए। आयरन की गोली खाने के बाद 60 बच्चे अस्पताल में कल भर्ती कराये गये ओर 72 बच्चों को परेशानी होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहा गया।
23 जुलाई केा दिल्‍ली से सटे गुड़गांव शहर के 209 सरकारी स्कूलों में सोमवार को छठी से 8वीं क्लास तक के 51 हजार 673 स्टूडेंट्स को आयरन की गोलियां खिलाई गईं। गोली खाने के बाद 24 स्टूडेंट्स की तबीयत खराब हो गई। वहीं, हरियाणा के जींद जिले के नगूरां कस्बे में राजकीय कन्या वरिष्ठ
माध्यमिक विद्यालय में आयरन की गोलियां खाने से 150 छात्राएं बीमार हो गई। छात्राओं ने दवा खाने के बाद पेट में दर्द और चक्कर आने की शिकायत की। इसी प्रकार धमतान साहिब के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में भी कल छात्राओं को आयरन फॉलिक ऐसिड की गोलियां खाने को दी। ये
गोलियां खाने के बाद इनकी भी हालत बिगड़ गई जिसके बाद 97 छात्राओं को प्राथमिक चिकित्सा केंद्र मे दाखिल करवाया गया।
भले ही इससे कोई जानी नुकसान नहीं हुआ, लेकिन एक साथ इतने बच्‍चों की तबीयत बिगड़ने से कहीं न कहीं शहर के अस्‍पताल में हड़कंप मचता है। बच्‍चों के अभिभावक, शिक्षक सब मुश्‍किल में आ जाते हैं। कुल मिलाकर कहें तो नीली गोली योजना भी केंद्र सरकार का एक फ्लॉप शो साबित होता नजर आ रहा
है।

http://janoduniya.tv/

error: Content is protected !!