… तो फिर खत्म कीजिए अदालतें, पुलिस को ही दे दीजिए सजा ए मौत का अधिकार

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
भोपाल एनकाउंटर अगर असली है… तो पुलिस वालों को सौ-सौ सलाम…और अगर फर्जी है तब तो उनको …लाखों सलाम..!! ये एक पोस्ट है, जो फेसबुक और वाट्स ऐप पर धड़ल्ले से चल रही है।
कदाचित तथाकथित देशभक्त ही ऐसी पोस्ट को आगे से आगे बढ़ा रहे हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में हम किस दौर से गुजर रहे हैं। क्या धर्मांध लोग इतने ताकतवर और बेखौफ हो गए हैं कि वे चाहे जो जहर देश में फैलाएं, उन पर कोई कानून लागू नहीं होता और उनका कुछ भी नहीं बिगडऩे वाला।
इस पोस्ट का सीधा सा मतलब है कि एनकाउंटर अगर फर्जी है तो लाखों सलाम इसलिए क्योंकि मरने वाले कथित रूप से सिमी के आतंकी थे। समझा जा सकता है कि किस प्रकार का मन और मानसिकता ऐसा कह रही है? मगर सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा कह कर आप कानून को ठेंगा नहीं दिखा रहे? क्या सत्ता पा कर आप इतने निरंकुश हो गए हैं कि कुछ भी मनमानी करेंगे और गुर्राएंगे अलग? क्या धार्मिक तुष्टिकरण के लिए आप पुलिस को ही अधिकार दिए दे रहे हैं कि वो ही तय करे कि कौन आतंकी है और मृत्युदंड भी वही दे दे, तो फिर न्यायपालिका क्यों बना रखी है? काहे को वे जेल में बंद थे और उन पर मुकदमा चल रहा था? क्यों नहीं पकड़े जाते ही पुलिस ले उनको गोली मार दी? बेशक हम लोकतांत्रिक देश हैं और अभिव्यक्ति की हमें पूरी आजादी है, मगर क्या ऐसी विचारधारा को पूरे तंत्र को तहस नहस करने की छूट दे दी जानी चाहिए?
हर बार की तरह यह मुद्दा भी राजनीति की भेंट चढ़ गया है। जिसके मूल में कहीं न कहीं हिंदू-मुस्लिम मौजूद है। अफसोसनाक बात ये है कि जिस पत्रकार जमात से निष्पक्षता की उम्मीद की जानी चाहिए, उसी के कुछ लोग एनकाउंटर को फर्जी मानने के बावजूद ये लिखने-कहने से नहीं चूक रहे कि मारे जाने वाले सिमी के ही तो आतंकी थे। उनको एनकाउंटर में मार डाला तो उनके प्रति सहानुभूति कैसी? यानि कि आप चुप रहिये, सरकार को निरंकुश कर दीजिए और अगर किसी गलत कृत्य पर सवाल खड़ा करेंगे तो आप को भी सिमी के साथ खड़ा कर दिया जाएगा।
इसी सिलसिले में एक अतिवादी पंक्ति देखिए-आतंक को कुचलने के लिए अब उनकी मौत पर सवाल उठना बंद होने चाहिए। भले ही मौत कैसे भी, कहीं भी, कभी भी हो। भई वाह।
बेशक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस बात में कुछ तथ्य जान पड़ता है कि देश की राजनीति इतनी घटिया हो गई है कि देश के लिए जान गंवाने वालों की चिंता नहीं होती, बल्कि देश को नुकसान पहुंचाने वालों की हिमायत की जाती है। बिलकुल सही है कि आज उन कथित आतंकियों के हाथों मारे गए पुलिस कर्मी की चर्चा नहीं हो रही, बल्कि कथित एनकाउंटर में मारे गए कथित आतंकियों पर बहस हो रही है, मगर इसका अर्थ कहीं ये तो नहीं कि ऐसा कहते हुए हम न्यायपालिका को दरकिनार कर खुद ही कथित आतंकियों को मार डालने की पैरवी कर रहे हैं?
किसी ने लिखा है कि दिग्विजय सिंह, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, अरविंद केजरीवाल, वृंदा करात, ममता बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं को ये समझना चाहिए कि कट्टरवादियों की हिमायत करेंगे तो देश की एकता व अखंडता खतरे में पड़ जाएगी। अब इस देश में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सूफीवाद से ही अमन चैन कायम हो सकता है। कदाचित उन्हें यह ख्याल नहीं कि अतिवादी तो ख्वाजा साहब को भी नफरत की नजर से देखते हैं, क्योंकि आखिरकार सूफीवाद इस्लाम की ही एक शाखा है। बहरहाल, यानि कि ये जनाब भी कथित आतंकियों को मार डालने का अधिकार सीधे पुलिस को देना चाहते हैं। और अगर आप फर्जी एनकाउंटर पर सवाल उठाएंगे तो आपको देशद्रोही ठहरा दिए जाएंगे।

एक पोस्ट और देखिए:-
गब्बर – कितने आदमी थे?
सांभा – सरदार पूरे 8 थे और सभी अल्लाह को प्यारे हो गये।
गब्बर – हा हा हा, बहुत नाइंसाफी है, एक भी जिन्दा नहीं छोड़ा रोने के लिये।
सांभा – नहीं सरदार…रोने के लिये तो आम आदमी पार्टी…कांग्रेस का पूरा झुंड है..।
क्या इस पोस्ट में विशुद्ध राजनीति की बू नहीं आ रही? क्या यह एक मानसिकता विशेष वाली पार्टी की भावना को उजागर नहीं कर रही? यानि कि फर्जी एनकाउंटर पर सवाल मत उठाओ, उठाओगे तो इसी प्रकार के तंज कसे जाएंगे।

एक और बानगी लीजिए:-
मध्य प्रदेश एटीएस ने सिर्फ 8 घंटे के अंदर आठों को मार गिराया गया।
एटीएस को दस में से दस नंबर।
आरोप है कि फरारी और एनकाउंटर की पूरी कहानी ही फर्जी है। अगर सचमुच ऐसा हुआ है और इस तरह टपकाया है तो शिवराज सरकार, एपी पुलिस और एमपी की एटीएस को 100 में से 200 नंबर।
देश की जेलों में बंद सभी आतंकियों को ऐसा ईच टपकाना मांगता।

जिस तरह के लोग ये पोस्ट कर रहे हैं, क्या वे देश की न्यायपालिका के वजूद को ही समाप्त कर सारे अधिकार सरकार और पुलिस को देने को नहीं उकसा रहे? अगर ऐसी ही सोच है तो कानून और संविधान को ताक पर रख दीजिए और पुलिस को कथित आतंकियों को सीधे मृत्युदंड देने का कानूनन अधिकार दे दीजिए। कम से कम तब फिर इस प्रकार के फर्जी एनकाउंटर पर कोई सवाल तो नहीं उठाएगा।

इस पोस्ट का आखिरी हिस्सा देखिए:-
कांग्रेस देश की नब्ज पकडऩे में चूक रही है। उसे समझना चाहिए कि आज देश में जो माहौल है, उसमें यदि यह एक असली एनकाउंटर था तो बीजेपी को 100 पैसा फायदा होगा, पर अगर वाकई ये फर्जी था और आतंकियों को जान बूझ के मार दिया गया तो ये मान लीजिए की भाजपा को 200 पैसे फायदा होगा।
यानि कि जो कुछ हो रहा है, वो केवल और केवल वोट की खातिर हो रहा है। अगर आरोप ये है कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण कर रही है तो आरोप लगाने वाले को भी यह सोच लेना चाहिए कि वे भी इस आरोप नहीं बच पाएंगे कि चूंकि हिंदू बहुसंख्यक है, इस कारण आप भी तो वोट की खातिर हिंदू तुष्टिकरण के लिए ऐसा कर रहे हैं।
खैर, इस मुहिम से किसको कितना फायदा होगा, ये तो पता नहीं, मगर इतना तय है कि इन दिनों जो कुछ हो रहा है, वह मात्र और मात्र हिंदू और मुसलमान के बीच नफरत की खाई को और चौड़ा कर देने वाला है। उसका अंजाम खुदा जाने।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

2 thoughts on “… तो फिर खत्म कीजिए अदालतें, पुलिस को ही दे दीजिए सजा ए मौत का अधिकार”

  1. आपकी टिप्पणी बेबाक है. पिछले ढाई साल से शासन की शह से साम्प्रदायिक उन्माद में काफी बढोत्तरी हुई है जो कि स्वाभाविक है. आप जैसे जागरूक पत्रकार से हमें बहुत आशा है.

  2. GIRDHAR SAHAB,
    wakai aapne dono pehlu ko achchhi tarah se vishleshit kiya hai…..kya aaj desh ki nyaypalika, rajneeti aur police ki asliyat ka pata nahin hai, kya aapko is desh ke samvidhan, kaanoon vyavashtha aur niyam kaaydon me kami najarnahin aati, kyaa hindu aur musalmaanon ki mansikta hamesha ek jaisi najar aati hai…….ye kaanoon bhi ek orr sabke liye barabar to doosri or dharm ke anusaar alag alag nahin hai…..aise hi kai tathyon ke anusaar KAMI har jagah hai…….jiske parinaam ab public ke saamne aa rahe hain to…..is tarah ki gatividhiyan swabhavik hai…….

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