मोदी का गृहराज्य गुजरात अब उतना आसान नहीं

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
हालांकि देश की राजनीति में इन दिनों मोदी ब्रांड धड़ल्ले से चल रहा है, ऐसे में यही माना जाना चाहिए कि उनका खुद का गृह राज्य गुजरात तो सबसे सुरक्षित है, मगर धरातल का सच ये है कि भाजपा के लिए वहां हो रहे आगामी विधानसभा चुनाव बहुत आसान नहीं है। बेशक जब तक मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब तक उन्होंने वहां अपनी जबरदस्त पकड़ बना रखी थी, मगर प्रधानमंत्री बनने के बाद वहां स्थानीय नेतृत्व सशक्त नहीं होने के कारण भाजपा का धरातल कमजोर हुआ है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा को अपने सशक्त किले में ही मुख्यमंत्री को बदलना पड़ गया। हालांकि वहां अब भी भाजपा जीतने की स्थिति में है, मगर अंतर्कलह संकट का कारण बनी हुई है। गुजरात की राजनीति में थोड़ी बहुत समझ रखने वाले जानते हैं कि मोदी के पीएम बनने के बाद से ही राज्य में अमित शाह, आनंदीबेन पटेल और पुरुषोत्तम रूपाला की गुटबाजी बढ़ी है।
गुजरात में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी नेताओं की उपेक्षा व भिलीस्तान हैं। गुजरात के अधिसंख्य राजनीतिक विशेषज्ञों के ताजा आलेखों पर नजर डालें तो वहां भाजपा के लिए पाटीदारों और दलितों के बाद आदिवासी समुदाय मुसीबत का बड़ा सबब बन सकता। आदिवासी इलाकों में भिलीस्तान आंदोलन खड़ा किया जा रहा है, जिसमें कुछ राजनीतिक दल एवं धार्मिक ताकतें आदिवासी समुदाय को हवा दे रही हैं। अब जबकि चुनाव का समय सामने है यही आदिवासी समाज जीत को निर्णायक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है। हर बार चुनाव के समय आदिवासी समुदाय को बहला-फुसलाकर उन्हें अपने पक्ष में करने की तथाकथित राजनीति इस बार असरकारक नहीं होगी। क्योंकि गुजरात का आदिवासी समाज बार-बार ठगे जाने के लिए तैयार नहीं है। इस प्रांत की लगभग 23 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की हैं। देश के अन्य हिस्सों की तरह गुजरात के आदिवासी दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवन-यापन करने को विवश हैं। यूं भले ही गुजरात समृद्ध राज्य है, मगर आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। इसका फायदा उठाकर मध्यप्रदेश से सटे नक्सली उन्हें अपने से जोड़ लेते हैं। महंगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। अगर भिलीस्तान आंदोलन को नहीं रोका गया तो गुजरात का आदिवासी समाज खण्ड-खण्ड हो जाएगा। इसके लिए तथाकथित हिन्दू विरोधी लोग भी सक्रिय हैं। इन आदिवासी क्षेत्रों में जबरन धर्मान्तरण की घटनाएं भी गंभीर चिंता का विषय है। यही ताकतें आदिवासियों को हिन्दू मानने से भी नकार रही है और इसके लिए तरह-तरह के षडयंत्र किये जा रहे हैं।
ऐसे में आदिवासियों का रुख मुख्यमंत्री विजय रूपाणी व भाजपा अध्यक्ष जीतू वाघानी के लिए तो चुनौती है ही, मोदी के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। मोदी हालात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं, इस कारण वे एक दर्जन बार गुजरात की यात्रा कर चुके हैं। मोदी ने आदिवासी कॉर्निवल में आदिवासी उत्थान और उन्नयन की चर्चाएं की, मगर धरातल तक राहत पहुंचने में वक्त लग सकता है। ऐसे में तेजी से बढ़ता आदिवासी समुदाय को विखण्डित करने का हिंसक दौर आगामी विधानसभा चुनावों का मुख्य मुद्दा बन सकता है और एक समाज और संस्कृति को बचाने की मुहिम इन विधानसभा चुनावों की जीत का आधार बन सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

1 thought on “मोदी का गृहराज्य गुजरात अब उतना आसान नहीं”

  1. गुजरात में कांग्रेस की इमेज भी कोई खास अच्छी नही है.. वहां के पाटीदार कहलाने वाले, अपेक्षाकृत सम्पन्न किसान, अगर ादिवासियों को साथ लेले तो बीजेपी के लिए मुसीबत खडी हो सकती है.

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