अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग नौ
जनाब मुजफ्फर अली

मुजफ्फर अली
साठ के दशक में दिल्ली से अजमेर विस्थापित सैयद परिवार में जन्मे जनाब मुज$फफर अली अपने माता-पिता की अकेली संतान हैं। पिता का जरी का काम था, लेकिन उन्होंने परंपरागत काम करने की जगह पत्रकारिता को अपनाया। पत्रकारिता की शुरुआत 1994 में दैनिक नवज्योति के रविवारीय रंगीन पेज पर फीचर लिखने से की। अजमेर का गोटा उद्योग, जरी वर्क आदि पर फीचर प्रकाशित हुए। विधिवत रूप से 1995-96 में दैनिक प्रगतिशील न्याय में रिपोर्टर के रूप में कार्य की शुरुआत की। कुछ समय दैनिक आधुनिक राजस्थान से भी जुड़े। जनाब मुजफ्फर अली ने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र पर रिपोर्टिंग की। फिर 1997 में दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण के समय संपादकीय विभाग के पहले स्टाफ में सिटी संवाददाता के रूप में नियुक्ति मिली और दरगाह क्षेत्र की बीट संभाली। भास्कर के महानगर प्लस में साप्ताहिक कॉलम कॉलेज कैंपस बहुत प्रसिद्ध हुआ। 1997-98 में दरगाह क्षेत्र में हुए साम्प्रदायिक दंगों की निष्पक्ष रिपोर्टिंग की। वर्ष 2000-2001 में राजस्थान पत्रिका के संस्थापक संपादक स्वर्गीय कर्पूरचंद कुलिश द्वारा लिखित गयारह वेदों के वेद ग्रंथ के विज्ञापन की हिन्दी कॉपी राइटिंग की, जो जयपुर पब्लिसिटी सेंटर के माध्यम से पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्ही दिनों प्रसिद्व लेखक व साहित्यकार वेदव्यास के संपर्क में आने से आकाशवाणी जयपुर- अजमेर से प्रसारित साप्ताहिक कार्यक्रम विचार-बिन्दु में अनेक समसामायिक विषयों पर इनके लेखों का प्रसारण हुआ। फिर दैनिक जागरण, संडे नई दुनिया और जयपुर महानगर टाइम्स के लिए अजमेर से रिपोर्टिंग की। 16 जनवरी 2012 को अजमेर से पहला वेब न्यूज पोर्टल न्यूज व्यू प्रारंभ किया। 2016-17 में दैनिक हौंसलों की उड़ान और दैनिक मॉर्निंग न्यजू के अजमेर संस्करण के संपादकीय प्रभारी बने। वर्तमान में दैनिक हमारा समाचार जयपुर के संपादकीय प्रभारी हैं। भारत के साथ इस्लामी देशों के संबंधों पर टिप्पणीयां और अन्य समसामायिक विषयों पर लेख सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं।

श्रीमती ज्योत्सना
पत्रकारों व साहित्कारों की चर्चा के दौरान श्रीमती ज्योत्सना का जिक्र यदि नहीं किया जाए तो बात अधूरी रह जाएगी। आर्य समाज के सचिव स्वर्गीय श्री धर्मवीर शास्त्री की धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्सना दैनिक भास्कर में कॉपी डेस्क पर रहीं। कॉपी डेस्ट का यह कन्सैप्ट भास्कर प्रबंधन का अनूठा प्रयोग था। प्रबंधन का मानना था कि आम तौर पर पत्रकारों की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ नहीं होती। इस कारण संपादन करने के दौरान संपादक का सारा ध्यान गलतियां सुधारने पर चला जाता है और खबर को और उन्नत नहीं बनाया जा पाता। अत: संपादक तक खबर आने से पहले उसमें वर्तनी व व्याकरण संबंधी गलतियां दुरुस्त होनी चाहिए। साथ ही भाषा का स्तर पर भी सुधार किया जाना चाहिए। समझा जा सकता है कि कॉपी डेस्क पर काम करने वाले कितने सिद्धहस्त होते होंगे। श्रीमती ज्योत्सना उनमें से एक थीं। उनके अतिरिक्त शिक्षाविद् नवलकिशोर भाभड़ा, श्री विनोद शर्मा व श्री केदार जी माडसाब भी थे। श्रीमती ज्योत्सना के बारे में एक बेहद रोचक जानकारी देना प्रासंगिक होगा कि उनके परिवार के सभी सदस्य आपस में संस्कृत में ही बात किया करते
थे।

डॉ. सुरेश गर्ग
डॉ. सुरेश गर्ग का नाम परिचय का मोहताज नहीं। शहर का शायद ही कोई ऐसा जागरूक व्यक्ति होगा, जो उनको न जानता हो, या जिसने इस हरदिल अजीज शख्सियत का नाम न सुना हो। वे अजमेर से जुड़े हर राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दे से हर वक्त जुड़े रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद तो वे पूरी तरह अजमेर के लिए समर्पित हो गए हैं और अजमेर के हित से जुड़े हर मुद्दे पर अपना किरदार निभाने की कोशिश कर रहे हैं। वे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की गहन जानकारी की वजह से भी लोकप्रिय हैं। इस कार्य में उनकी पत्नी श्रीमती शोभा गर्ग भी हाथ बंटाती हैं।
स्वर्गीय श्री किशन स्वरूप जी गर्ग के घर 13 फरवरी 1948 को जन्मे डॉ. गर्ग ने एमए व एलएलबी तक अध्ययन किया है और बायोकेमिस्ट व आयुर्वेद रत्न की शिक्षा भी अर्जित की है। समाजसेवा के क्षेत्र में भी आपकी सक्रियता रही। अग्रवाल वैवाहिक परिचय एवं सामूहिक सम्मेलन में अग्रबंधु निर्देशिका के संपादक रहे। उन्होंने नगर पालिका कानून की पांच पुस्तकें, व्यंग्य व स्वास्थ्य पर पुस्तकें लिखीं। उन्होंने च्स्थानीय निकाय के बढ़ते कदमज् पत्रिका का संपादन किया है और अनेक स्मारिकाओं का प्रकाशन करवाया है। वर्तमान में आंखन देखी पाक्षिक व रिमझिम साप्ताहिक में संपादन का कार्य कर रहे हैं। उनकी एक पुस्तक सीरीज के रूप में दैनिक सरेराह में प्रकाशित हुई है। आप सन् 2001 से 2005 तक अजयमेरू पे्रस क्लब में निदेशक रह चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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