क्या हिचकी आना किसी के याद करने का संकेत है?

जब भी हमें हिचकी आती है तो हम स्वयं व पास बैठा व्यक्ति यही कहता है कि जरूर कोई याद कर रहा है। दिलचस्प बात ये है कि जब हम विचार करते हैं कि कौन याद कर रहा होगा और उनके नामों का जिक्र करते हैं तो जिसका नाम लेने पर हिचकी बंद होती है तो यही सोचते हैं कि उसी ने याद किया था। इसके वैज्ञानिक व शारीरिक कारण पर भी चर्चा करेंगे, मगर क्या सही है कि यदि कोई हमें शिद्दत से याद करता है तो हिचकी आती है?
मेरा ऐसा ख्याल है कि शारीरिक क्रिया तो अपनी जगह है ही, मगर इससे भी इतर कुछ तो है। मेरा विचार है कि हमारा मस्तिष्क तो सुपर कंप्यूटर है ही, जो कि पूरे शरीर को संचालित करता है, वहीं पर विचार चलते रहते हैं, मगर अमूमन विचार करने की ऊर्जा कंठ पर केन्द्रित रहती है। जरा महसूस करके देखिए। विज्ञान कहता है कि विचार की कोई भाषा नहीं होती। सही भी है। यह एक मौलिक तथ्य है। इसलिए कि जहां विचार हो रहा है, वहां केवल भाषायी वाक्य ही विचरण नहीं करते, ध्वनि, स्वाद, गंध, दृश्य आदि की अनुभूतियां भी मौजूद रहती हैं। हां, भाषायी वाक्य जरूर उस भाषा में होते हैं, जो कि आमतौर पर हम उपयोग में लेते हैं। आपने अनुभव किया होगा कि कई बार कोई बात कहने से पहले मन ही मन जब रिहर्सल होती है तो उसकी हलचल कंठ पर ही होती है। मैने ऐसे उदाहरण भी देखे हैं कि कोई व्यक्ति जो वाक्य बोलता है तो ठीक तुरंत बाद कंठ पर हुई हलचल बुदबुदाने के रूप में सामने आती है। चूंकि शब्दों का संबंध सीधे कंठ से है, इस कारण भाषा विशेष में विचार करते समय कंठ पर ऊर्जा केन्द्रित होती है। जरा गहरे में जा कर देखिए, सोचते समय भले ही वाणी मौन होती है, मगर कंठ व जीभ पर वाक्य हलचल कर रहे होते हैं। इस यूं समझिये। जैसे हम मन ही मन राम नाम का उच्चारण करते हैं तो बाकायदा जीभ पर वैसी ही क्रिया होती रहती है, जैसी राम नाम का उच्चारण करते वक्त होती है। अर्थात विचार करने के दौरान मस्तिष्क तो आवश्यक रूप से काम कर ही रहा होता है, मगर हमारी ऊर्जा, जिसे प्राण भी कह सकते हैं, कंठ पर भी सक्रिय होती है। इस ऊर्जा के कारण मस्तिष्क की तरह कंठ भी ट्रांसमीटर की तरह काम करता है। वह भी बाह्य जगत की तरंगों को ग्रहण करता है। जैसे ही हमें कोई याद करता है तो उसकी तरंगों का हमारे कंठ पर असर पड़ता है, वहां खिंचाव होता है और हिचकी आने लगती है। जैसे ही हम याद करने वाले का नाम लेते हैं तो वर्तुल पूरा हो जाता है और हिचकी आना बंद हो जाती है। ऐसा मेरा नजरिया है। हालांकि मुझे इस बात का अहसास है कि मेरी जो भी अनुभूति है, उसे ठीक से शब्दों में अभिव्यक्त नहीं पाया हूं, मगर मेरी अभिव्यक्ति उसके इर्द-गिर्द जरूर है।
यह तो हुई एक बात। आपकी जानकारी में ये भी होगा कि जब हिचकी लगातार आती है, रुकती ही नहीं, न किसी का नाम लेने पर और न ही पानी पीने पर, तब उसे अच्छा नहीं माना जाता। इस कारण उसे बंद करने के प्रयास किए जाते हैं। जैसे कागज के लिफाफे में हवा भर कर वापस उसी हवा को अंदर लिया जाता है। कार्बन डाई ऑक्साइड के भीतर बार-बार जाने पर हिचकी बंद हो जाती है। ऐसी भी धारणा है कि लंबे समय हिचकी चलना किसी गंभीर बीमारी के आगमन का संकेत है। मृत्यु के सन्निकट होने पर भी लगातार हिचकी आती है। मृत्यु के समय लंबी हिचकी आती ही है और उसी के साथ प्राण बाहर निकल जाता है।
खैर, अब आते हैं वैज्ञानिक तथ्य पर। विज्ञान के अनुसार हिचकी हमारे के डायफ्राम सिकुडऩे से आती है। डायफ्राम एक मांसपेशी होती है, जो छाती के खोखल को हमारे पेट के खोखल से अलग करती है। ये सांस लेने की प्रक्रिया में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फेफड़ों में हवा भरने के लिए डायफ्राम का सिकुडऩा जरूरी होता है। जब हिचकी आती है, तब डायफ्राम को नियंत्रित करने वाली नाडिय़ों में कुछ उत्तेजना होती है, जिसकी वजह से डायफ्राम बार-बार सिकुड़ता है और हमारे फेफड़े तेजी से हवा अंदर खींचते हैं। ऐसा जोर से हंसने, तेज मिर्च वाला खाना खाने, जल्दी-जल्दी खाने या फिर पेट फूलने से हो सकता है। अर्थात उत्तेजना का कारण होती है वायु। अमूमन वायु डकार से बाहर आ जाती है, लेकिन कभी-कभी ये खाने के बीच फंस जाती है। उसे निकालने की शारीरिक क्रिया ही हिचकी है।
जानकार लोग हिचकी बंद करने के उपाय भी बताते हैं, उनमें कुछ इस प्रकार हैं- ठंडा पानी पीएं या आइस क्यूब्स मुंह में रख कर धीरे-धीरे चूसें। दालचीनी का टुकड़ा मुंह में डाल कर चूसें। गहरी सांस लें, जितनी देर हो सके सांस रोकें। लहसुन, प्याज या गाजर का रस सूंघें। पिसी हुई काली मिर्च शहद के साथ चाटें। शक्कर या चॉकलेट चूसें। नीबू के रस में शहद और थोड़ा-सा काला नमक मिला कर चाटें।

-तेजवानी गिरधर
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