कोराना जैसे वायरस से जैविक युद्ध करने का वर्णन मौजूद है पुराणों में

आज जब पूरा विश्व कोराना वायरस की महामारी से त्रस्त है, तो यकायक पूर्व में विद्वानों व वैज्ञानिकों द्वारा अगला विश्व युद्ध जैविक अस्त्रों से होने की भविष्यवाणी का ख्याल आ जाता है। कोरोना के भयंकर प्रकोप के बीच विद्वानों ने तो यह तक खोज निकाला है कि शिव पुराण में कोरोना रक्षा कवचम् का उल्लेख है। आपके अवलोकनार्थ शिव पुराण के संबंधित पृष्ठ भी प्रस्तुत है। हालांकि अभी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा गया है कि यह महामारी प्रकृति के प्रकोप के रूप में उत्पन्न हुई या यह कोई षड्यंत्र है। बावजूद इसके चूंकि इसकी शुरुआत चीन से हुई, इस कारण इसे चाइनीज वायरस कहा जाने लगा है। कुछ लोगों का मानना है इसके पीछे चीन का साजिशाना हाथ है। महाशक्तियों की राजनीति के चलते चीन को इस साजिश के लिए दोषी तक ठहराया जा रहा है। इसमें कितनी सच्चाई है, इसके बारे में पक्के तौर पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस किस्म के जैविक अस्त्रों का प्रयोग पुराणों में जरूर वर्णित है। उनके नाम माहेश्वर ज्वर व वैष्णव ज्वर बताए गए हैं। ज्ञातव्य है कि कोराना वायरस की मौजूदगी का प्राथमिक लक्षण भी तीव्र ज्वर को माना गया है।
ऐसी जानकारी है कि भगवान शिव व भगवान कृष्ण के बीच जो युद्ध हुआ था, उसमें इन जैविक अस्त्रों का प्रयोग किया गया था। बताया जाता है कि कृष्ण ने असम में बाणासुर और भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध लड़ा था। भागवत पुराण के दसवें स्कंध में अध्याय 62 में वर्णित है कि कृष्ण के पुत्र का नाम प्रद्युम्न था और प्रद्युम्न के पुत्र का नाम अनिरुद्ध। अनिरुद्ध की पत्नी उषा थी। उषा शोणितपुर के राजा वाणासुर की कन्या थी। अनिरुद्ध और उषा आपस में प्रेम करते थे। उषा ने अनिरुद्ध का हरण कर लिया था। वाणासुर को अनिरुद्ध-उषा का प्रेम पसंद नहीं था। उसने अनिरुद्ध को बंधक बना लिया था। वाणासुर को शिव का वरदान प्राप्त था। भगवान शिव को इसके कारण श्रीकृष्ण से युद्ध करना पड़ा था। बाणासुर द्वारा अनिरूद्घ के बंदी बनाए जाने की बात श्री कृष्ण को पता लगी तो वे, बलराम तथा प्रद्युम्र गरुण पर सवार होकर बाणासुर के नगर पहुंचे, जहां उनका सामना महान महेश्वर ज्वर से हुआ, जो तीन सींग, तीन पैर वाला था, उस ज्वर का ऐसा प्रभाव था कि उसके फेंके भस्म के स्पर्श से संतप्त हुए श्री कृष्ण के शरीर का आलिंगन करने पर बलराम जी बेहोश हो गए, तब श्री हरि के शरीर में समाहित वैष्णव ज्वर ने उस महेश्वर ज्वर को बाहर निकाल दिया। श्री हरी विष्णु के प्रहार से पीडि़त उस माहेश्वर ज्वर को देख ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण से कहा कि इसे क्षमा प्रदान करें, तब श्री हरी ने उस वैष्णव ज्वर को अपने अंदर समाहित के लिया। यह देख माहेश्वर ज्वर बोला कि जो मनुष्य आपके साथ मेरे इस युद्ध को याद करेगा, वह तुरंत ज्वरहीन हो जाएगा, यह कह कर वह वहां से चला गया।
एक अन्य प्रसंग के अनुसार दक्ष नाम से प्रसिद्ध प्रजापति ने यज्ञ करने का संकल्प लेकर उसके लिये तैयारी आरम्भ कर दी। उसमें सभी देवी-देवताओं को तो आमंत्रण था, मगर शिवजी को नहीं बुलाया गया। वस्तुत: देवताओं ने पहले सभी यज्ञों में से किसी में भी उनके लिये भाग नियत नहीं किया था। इस पर उमा ने दु:ख व्यक्त किया। जिससे क्रोधित होकर शिव ने योग बल का आश्रय ले अपने भयानक सेवकों द्वारा उस यज्ञ को सहसा नष्ट करा दिया। ऐसे में वह यज्ञ मृग का रूप धारण करके आकाश की ओर ही भाग चला। भगवान् शिव ने उसका पीछा किया। क्रोध के कारण उनके ललाट से भयङ्कर पसीने की बूंद प्रकट हुई। उस पसीने के बूंद के पृथ्वी पर पड़ते ही कालाग्नि के समान विशाल अग्नि पुंज का प्रादुर्भाव हुआ। उस समय उस आग से एक नाटा-सा पुरुष उत्पन्न हुआ, जो अत्यंत भयावह था। उसने दक्ष नाम से प्रसिद्ध प्रजापति के यज्ञ को दग्ध कर दिया। तत्पश्चात् वह देवताओं तथा ऋषियों की ओर दौड़ा। देवता भयभीत हो दसों दिशाओं में भाग गये। सारे जगत में हाहाकार मच गया। इस पर ब्रह्माजी ने शिव जी से आग्रह किया कि वे अपने क्रोध को शांत करें, आज से सब देवता आपके भी यज्ञ का भाग दिया करेंगे। उन्होंने कहा कि आपके पसीने से जो यह पुरुष प्रकट हुआ है, इसका नाम होगा ज्वर। यह समस्त लोकों में विचरण करेगा। यह ज्वर जब तक एक रूप में रहेगा, तब तक यह सारी पृथ्वी इसे धारण करने में समर्थ न हो सकेगी। अत: इसे अनेक रूपों में विभक्त कर दीजिये। इस पर शिव जी प्रसन्न हुए। उन्होंने यज्ञ में भाग प्राप्त कर लिया। भगवान शिव ने ज्वर को अनेक रूपों में बांट दिया। हाथियों के मस्तक में जो ताप या पीड़ा होती है, वही उनका ज्वर है। पर्वतों का ज्वर शिलाजीत के रूप में प्रकट होता है। सर्पों का ज्वर केंचुल है। गाय-बैलों के खुरों में जो खोरक नाम वाला रोग होता है, वही उनका ज्वर है। पशुओं की दृष्टि-शक्ति का जो अवरोध होता है, वह भी उनका ज्वर ही है। घोड़ों के गले में जो मांसखण्ड बढ़ जाता है, वही उनका ज्वर है। मोरों की शिखा का निकलना ही उनके लिये ज्वर है। कोकिल का जो नेत्र रोग है, उसे ज्वर बताया है। तोतों के लिये हिचकी को ही ज्वर बताया गया है। सिंहों में थकावट का होना ही ज्वर कहलाता है। मनुष्यों में यह ज्वर के नाम से ही प्रसिद्ध है। यह यह मृत्युकाल में, जन्म के समय तथा बीच में भी मनुष्यों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसी ने वृत्रासुर के शरीर में प्रवेश किया था। पीडि़त होकर जब वह जंभाई लेने लगा, उसी समय इन्द्र ने उस पर वज्र का प्रहार किया। वज्र ने उसके शरीर में घुस कर उसे चीर डाला। वह परम धाम को चला गया।

-तेजवानी गिरधर
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