नाम में क्या रखा है, ये सही नहीं, नाम में भी बहुत कुछ रखा है

कर्म प्रधान लोगों को आपने अमूमन यह कहते हुए देखा होगा कि नाम में क्या रखा है, काम ही महत्वपूर्ण है। जो कर्मठ है, उसकी यह सोच बिलकुल सही है। वे काम इसलिए करते हैं कि इससे उनको आत्म संतोष मिलता है, सुकून मिलता है। उन्हें इस बात की कोई फिक्र नहीं होती कि उनका नाम हो रहा है या नहीं। लोग वाहवाही कर रहे हैं या नहीं। उन्हें तो अपने कर्तव्य पालन से ही मतलब होता है। आपने यह भी देखा होगा कि कई लोग प्रसिद्धि की चाह के बिना परोपकार करते हैं। ये नहीं देखते कि कोई देख भी रहा है या नहीं। हमारे यहां तो यह तक कहा जाता है कि एक हाथ से दान दें तो दूसरे हाथ को पता नहीं लगना चाहिए, वही असली दान है। इसके विपरीत अधिसंख्य लोग प्रसिद्धि की चाह में ही काम करते हैं। तभी तो कहा जाता है कि संन्यस्थ हो कर वन को प्रस्थान कर जाने वाले भी लोकेषणा से मुक्त नहीं हो पाते। गृहस्थी छोड़ कर एकांत में जा कर रहने वाले भले ही भौतिक सुख से परे हो जाते हों, मगर जंगल में भी उनका आत्मिक पोषण इससे होता है कि उनके शिष्य कितने हैं। उनका नाम कितना हो रहा है। इसको लेकर संतों के बीच प्रतिस्पद्र्धा तक होती है।
वस्तुत: प्रथम महिमा काम की ही है। तभी तो कहते हैं कि काम बोलता है। बोलता है अर्थात नाम की स्थापना करता है। यानि कि काम का बाय प्रोडक्ट है नाम । मगर इसका ये भी अर्थ नहीं कि नाम का कोई महत्व नहीं। भले ही दूसरे नंबर पर हो, मगर नाम की भी भारी महिमा है।
विद्वान कहते हैं कि कलियुग में भगवान अवतार रूप में तो हैं नहीं, ऐसे में उनके नाम की ही महिमा है। राम से बड़ा राम का नाम। उनका नाम लेने व स्मरण करने मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान राम के नाम का कितना चमत्कार है, इसका उल्लेख यह बताते हुए कहा जाता है कि लंका विजय के लिए जाते समय समुद्र को लांघने के लिए जो पुल बनाया गया, उनमें इस्तेमाल किए गए पत्थरों पर राम नाम लिखा गया और वे पानी में तैरने लगे।
नाम की महिमा का दूसरा उदाहरण देखिए। जब गुरू द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिष्य बनाने से इंकार कर दिया तो उसने एकांत में उनके नाम से एक प्रतिमा बनाई और उसी के सामने धनुर्विद्या सीखी। एकनिष्ठ भाव के कारण वह अर्जुन से भी अधिक योग्य धनुर्धर बना।
नाम स्मरण का एक चमत्कार यह भी माना जाता है कि कोई शिष्य जब एकाग्रता के साथ दिवंगत गुरू का नाम स्मरण करता है तो वे सशरीर तो आ नहीं सकते, मगर गंध के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
कल्याण नामक पत्रिका में मैने एक दृष्टांत पढ़ा था। वह इस प्रकार है। एक बार हनुमानजी का एक भक्त, जो कि शिक्षक था, प्रात:काल हनुमानजी की आराधना में इतना तल्लीन हो गया कि उसे स्कूल पहुंचने में देर हो गई। वह भागता-भागता स्कूल पहुंचा और प्रधानाध्यापक से क्षमा याचना की कि वह विलंब से आया है। इस पर प्रधानाध्यापक ने कहा कि क्यों मजाक करते हो, आप तो समय पर आ गए थे। हनुमानजी का भक्त चकित रह गया। वह समझ गया कि उसकी जगह हनुमानजी ने उपस्थिति दर्ज करवाई है।
हालांकि दुराचार के मामले में आसाराम बापू आजकल जेल में हैं, मगर जब वे प्रसिद्धि के चरमोत्कर्ष पर थे, तब उनकी सभाओं में उनके अनुयायी अपना अनुभव बताते थे कि संकट के समय उन्होंने आसाराम बापू को याद किया और वे किसी न किसी रूप में वहां मौजूद हुए और उन्हें संकट से उबारा।
जरा और विस्तार में जाएं तो आपने देखा होगा कि कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने से पहले गुरू के नाम का स्मरण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके गुरू की शक्ति उनमें प्रविष्ठ कर जाती है। मैने ऐसी कई महिलाओं को देखा है, जो कोई व्यंजन विशेष बनाने से पहले उसको याद किया करती हैं, जिनसे उन्होंने वह व्यंजन बनाना सीखा था। मैने स्वेटर की बुनाई शुरू करते वक्त महिलाओं को अपनी गुरू को याद करते हुए देखा है। कई रसोइये भी अपने गुरू का नाम स्मरण करके रसोई बनाना आरंभ करते हैं। हो सकता है ऐसा सम्मान देने या कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किया जाता हो, मगर माना यही जाता है कि नाम का स्मरण करने से शक्ति मिलती है।
नाम के एक मायने ब्रांड भी होता है। नाम स्थापना के लिए बाकायदा ब्रांडिंग की जाती है। कई प्रॉडक्ट ब्रांडिंग के कारण ही मार्केट में छाये हुए हैं। इसका एक उदाहरण बाबा रामदेव हैं। उनकी ब्रांडिंग इतनी तगड़ी है कि पतंजलि के नाम से उनके प्रॉडक्ट धड़ल्ले से बिकते हैं। ठीक इसी प्रकार मोदी भी एक नाम है, जो कि ब्रांड बन गया है। इसके लिए ढ़ेर सारे जतन किए गए थे। उनके नाम से भाजपा की नैया पार लग गई। भाजपा सरकार के दुबारा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने का सारा श्रेय मोदी ब्रांड को ही जाता है।
इन सभी उदाहरणों से यह सिद्ध होता है कि नाम की वाकई महिमा है।

-तेजवानी गिरधर
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