राजस्थान उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप से इनकार

Rajasthan High Court Jaipur Bench thumbजयपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय की एकलपीठ के न्यायधीश बेला एम. त्रिवेदी ने निजी शिक्षण संस्था के अध्यक्ष को सिविल न्यायधीश जूनियर डिविजन नोर्थ द्वारा जारी किये गये नोटिस क्यों न सिविल कारावास से निरूद्ध कर दिया जावे, में हस्तक्षेप से इनकार करते हुये राजस्थान क्रिश्चियन सेन्ट्रल मैनेजमेन्ट बोर्ड ऑफ  सैकण्डरी एजुकेशन, अजमेर की रिट याचिका खारिज करते हुये निर्देश दिया कि प्रार्थी सिविल न्यायालय के समक्ष आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत करें तथा कानूनी बिन्दुओं को उठाये। उल्लेखनीय है कि प्रबन्ध समिति, हस्बैण्ड मैमोरियल सीनियर सैकण्डरी स्कूल, अजमेरे के कर्मचारी सूरजमल पलासिया ने राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिकरण के समक्ष प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत कर ग्रेच्यूटी, उपार्जित अवकाश के बदले वेतन की मांग की, जिस पर अधिकरण ने प्रार्थी के पक्ष में फैसला देते हुये आदेश दिया कि वह प्रार्थी को उक्त लाभ प्रदान करे। फ ैसले की पालना नहीं करने पर प्रार्थी ने अपने अधिवक्ता डी.पी. शर्मा के माध्यम से निष्पादन याचिका प्रस्तुत कर निवेदन किया कि उसे सभी लाभ दिलाये जावे। सिविल न्यायालय द्वारा नोटिस जारी कर संस्था से जवाब-तलब किया तथा कुर्की वारन्ट भी जारी किये गये। संस्था के सचिव द्वारा न्यायालय के अधिकारी को बताया गया कि संस्था के वित्तीय अधिकार संस्था के अध्यक्ष के पास है जिस पर प्रार्थी ने प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत कर कुर्की वारन्ट संस्था के अध्यक्ष को तामिल करवाने हेतु निवेदन किया जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने संस्था के अध्यक्ष को नोटिस जारी किया कि क्यों न उन्हें अधिकरण के फैसले की पालना नहीं करने पर सिविल कारावास से निरूद्ध कर दिया जावे। उक्त आदेश से पीडित होकर के संस्था के अध्यक्ष वारिस के मसीह ने रिट याचिका प्रस्तुत कर निवेदन किया कि अधिकरण के फैसले की पालना का दायित्व केवल संस्था के सचिव का है न कि अध्यक्ष का, क्योंकि राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संस्था का सचिव ही संस्था को संचालन करने का अधिकार रखता है। इसके विपरीत कर्मचारी के अधिवक्ता का तर्क था कि संस्था का संचालन अध्यक्ष के द्वारा किया जा रहा है। प्रबन्ध की परिभाषा के अनुसार जो संस्था का संचालन करता है वही संचालक कहलायेगा चाहे उसे किसी भी नाम से स बोधित किया जावे तथा संस्था के अध्यक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष इस बात को स्वीकार भी किया गया कि संस्था का वित्तीय प्रबन्ध उनके द्वारा किया जाता है। मामले की सुनवाई के पश्चात सिविल न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुये रिट याचिका खारिज कर दी तथा संस्था के अध्यक्ष को निर्देशित किया कि वह आवश्यक साक्ष्य व दलील सिविल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे।

error: Content is protected !!