शिक्षा का अधिकार कोसों दूर, कैसे मिल पायेगी सबको शिक्षा!

शिक्षा के सवाल पर सरकार से माँगा जवाब
स्कूलों में शिक्षकों के स्वीकृत पदों को तुरंत भरा जाये
हर विद्यालय में खेल-मैदान का होना सुनिश्चित किया जाये
विद्यालय प्रबंधन समिति (SMCSMC) को सशक्त बनाने के ठोस प्रयास किये जायें
प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा का सम्मिलित MIS बने जो सार्वजानिक हो
शिक्षकों का मूल्यांकन हो और अयोग्य शिक्षकों को हटाया जाये
इलाहबाद हाई कोर्ट के निर्णय की तर्ज़ पर जन प्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़े ऐसी बाध्यता राजस्थान सरकार लागू करे

image5फ़िरोज़ खान बारां ( राजस्थान ) । जयपुर, भले ही देश भर में अनिवार्य व नि:शुल्क बाल शिक्षा अधिनियम, 2009 लागू हो गया है और छह से चौदह वर्ष के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का हक मिल गया है पर जमीनी स्तर पर शिक्षा का अधिकार अभी भी राजस्थान के बच्चों के लिए कोसों दूर है. राज्य में शिक्षा की स्थिति यह है कि कई विद्यालयों में कमरे ही उपलब्ध नहीं है, बिना कमरों के ही कक्षाएं चल रही हैं. कहीं स्कूल भवन हैं तो शिक्षक नहीं और जहाँ भवन हैं तो उनकी स्थिति दयनीय है. शिक्षा के सवाल पर शहीद स्मारक पर चल रहे धरने में आज हुई जन सुनवाई में ये मुद्दे उभर कर आये. जनसुनवाई में राज्य भर से आये लोगों द्वारा शिक्षकों की कमी, स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं जैसे पानी, शौचालय, आदि की अनुपलब्धता, विद्यालय प्रबंधन समितियों की भूमिका कमज़ोर होना एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी और साथ ही स्कूली पाठ्यक्रम में हो रहे बदलाव से सम्बंधित कई सवाल उठाये गए.
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि सरकार शिक्षा के अधिकार का रोज़ उल्लंघन कर रही है और जनता के साथ कोई संवाद इस बारे में नहीं हो रहा. राज्य में स्कूलों के एकीकरण (मर्जर) और समानीकरण के नाम पर शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद किया जा रहा है. हाल ही राजस्थान सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में कई बदलाव किये हैं. आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की पाठ्य-पुस्तक में से सूचना के अधिकार सम्बन्धी अंश हटा दिए गए हैं. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के सम्बन्ध में भी जानकारी हटाई गयी है. गाँवों में आज निजी विद्यालयों का बोलबाला है. भारी फीस होने के बावजूद इन स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता निहायत ही बुरी है. जिससे हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है.

आदर्श विद्यालय की भी नहीं ली सुध
कुम्भलगढ़ से आये लखमाराम भील ने बताया कि उनके यहाँ के आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में लगभग 350 विद्यार्थी हैं और शिक्षक सिर्फ 4 और वे भी तृतीय श्रेणी के. यहाँ विद्यालय भवन इतनी जर्जर हालत में है कि बरसात के मौसम में भवन के गिरने के डर से स्कूल को बंद रखना पड़ता है. उच्च माध्यमिक विद्यालय होने के बावजूद यहाँ छात्राओं के लिए अलग शौचालय तक नहीं है. उनका कहना था कि इस बारे में कई बार जिला कलक्टर से मांग की जा चुकी है लेकिन अब तक इसकी सुध नहीं ली गयी है.

सरपंच की भी नहीं सुनती सरकार
जन सुनवाई में उदयपुर जिले की कोटड़ा ब्लाक की ग्राम पंचायत जुनापादर की महिला सरपंच राधा देवी ने बताया कि उनकी पंचायत के सरकारी स्कूल में सिर्फ एक ही शिक्षक है जबकि इस स्कूल में 109 बच्चों का नामांकन है. यह एकमात्र शिक्षक भी नियमित नहीं आता है. इस सन्दर्भ में बीडीओ और अन्य अधिकारीयों को शिकायत की लेकिन हालात बदस्तूर जारी है.

इस जनसुनवाई में सेंटर फॉर इक्विटी एंड इन्क्लुज़न की एनी निमाला ने कहा कि सरकार नहीं चाहती कि हमारे बच्चे शिक्षित हों और इसीलिए सरकारी विद्यालयों की ये हालत की जा रही है. पिछले कुछ सालों में 11,000 करोड़ रुपयों की छात्रवृत्तियां रोक दी गयी हैं. उन्होंने उपस्थित लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि ज़रुरत है कि हम अगला स्वतंत्रता संग्राम अब शिक्षा के अधिकार को लेकर चलायें. सामाजिक कार्यकर्ता शंकर सिंह ने कहा कि जिस दिन सभी सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में जाने लगेंगे इन स्कूलों की हालत सुधर जाएगी. हरमाड़ा ग्राम पंचायत की पूर्व सरपंच नौरती देवी ने कहा कि सरकारी अध्यापकों के समय का बड़ा हिस्सा प्रशासनिक कामों को करने में जाता है जबकि उनका मूल काम बच्चों को शिक्षा देने का है.

जन सुनवाई में इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट स्टडीज की शोभिता, चाइल्ड एजुकेशन कार्यकर्ता चंदना डे, राईट टू एजुकेशन फोरम दिल्ली से मितारंजन, बजट अध्ययन केंद्र, जयपुर से नेसार अहमद आदि भी मौजूद थे.

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