हमें अपने भाव शुद्ध व स्थिर रखने की जरूरत

05बाड़मेर 07.01.2017
जो भगवान के मार्ग में एक कदम भी बढाता हैै। तो वो भक्त वत्सल भगवान उस प्राणी के सामने चार कदम आते है। तू मेरे मार्ग पर चल कर तो देख तुझे सुखी न कर दू तो कहना। गुलेच्छा ग्राउण्ड में चल रहे नरसी जी के माहेरे प्रसंग मे लक्ष्मण दास महाराज ने कही। भक्त बनना भी पूर्व काल के अच्छे कर्मो से ही सम्भंव है। हमें भी कर्म अच्छे करना चाहिये। धन की तीन गति है। दान, भोग और नाष। जो मनुष्य अपने जीवन में धन को न दान में देता है और नहीं स्वंय उसका उपभोग करता है। ऐसा धन का आखिर नाष ही होता है। नरसी जी पीपा जी के ज्ञान से अपना सर्वस्व धन दान कर दिया। और अटल विष्वास के साथ प्रभु भक्ति की। तो प्रभु भी उसके योग क्षेम की व्यवस्था स्वयं करते है। प्रभु कहते है ऐसे भक्तों छोड़ सकता है। प्रभु नही। भक्ति भाव से होती है। संसार में घटता व बढ़ता भाव हैं वस्तु कभी भी नहीं घटती बढ़ती है। हमें अपने भाव शुद्ध व स्थिर रखने की जरूरत है। उसमें भी हम घर के दस काम साथ में कर कर लेते है। इस प्रकार की सेवा पुजा से कल्याण नहीं होता है। हमें स्थिर भाव से सेवा पुजा करने की जरूरत है। भक्त चरित्र सुनने हेतु पाण्डाल भक्तों से खचाखच भर उठा। व सुन्दर झांकिया भी प्रस्तुत की गई।

दुर्गा शंकर शर्मा

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