स्वाधीनता संग्राम में हिन्दी समाचार पत्रों का अतुलनीय योगदान

DSC_0523 बीकानेर, 30 दिसम्बर। कथाकार शरद केवलिया ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में हिन्दी समाचार पत्रों का अतुलनीय योगदान रहा। भारत को विश्व शक्ति के रूप में उभारने तथा राष्ट्रीय समग्रता को विकसित करने में हिन्दी पत्राकारिता की बड़ी भूमिका रही है। आज प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में हिन्दी का वर्चस्व है।

केवलिया शनिवार को केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान में आयोजित हिन्दी कार्यशाला में समाचार पत्रों एवं पत्राकारिता में हिन्दी का स्थान एवं प्रभाव विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि देश के राष्ट्रीय आंदोलनों व सांस्कृृतिक-सामाजिक पुनर्जागरण मंे हिन्दी, संघर्ष की भाषा रही है। राष्ट्र को एक सूत्रा में पिरोने तथा पराधीनता के विरूद्ध अलख जगाने में हिन्दी समाचार पत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वाधीनता संग्राम के दौर में देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत कई हिन्दी समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इनमें से कई पत्रा ऐसे पत्राकारों द्वारा शुरू किए गए, जो स्वतंत्राता संग्राम में कूद पड़े थे व कई ऐसे स्वतंत्राता सेनानियों द्वारा पत्रा निकाले गए जो आजादी के संघर्ष के लिए हिन्दी पत्राकारिता को एक शक्तिशाली हथियार समझते थे।

भारतीय हिन्दी पत्राकारिता का प्रारम्भ 30 मई 1826 को उदन्त मार्तन्ड के प्रकाशन से हुआ। प्रारम्भिक काल की हिन्दी पत्राकारिता ने राष्ट्रीय जीवन में चेतना के बीज बोने, राष्ट्रीय निष्ठा जगाने, राष्ट्रीय क्रान्ति का स्वरूप निर्धारण करने व स्वतंत्राता का स्वर मुखरित करने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

आम लोगों को शिक्षित एवं जागृत करने एवं राष्ट्रीय स्वतंत्राता, राष्ट्रीय निर्माण के हर मोड़ पर हिन्दी पत्राकारिता जनता की पथ प्रदर्शक रही है।

आधुनिक भारतीय भाषाओं में हिन्दी ही एकमात्रा ऐसी भाषा है जो अपने आरम्भ से लेकर आज तक किसी वर्ग, धर्म, जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्रा विशेष की भाषा नहीं बल्कि समूचे भारत की भाषा रही है। हिन्दी भाषा अपनी उदारता, सहजता, एकता, व्यापकता, लोकप्रियता, भाषाई वैज्ञानिकता व देश की अन्य भाषाओं, उपभाषाओं व बोलियों से सामंजस्य बनाए रखकर सांस्कृतिक संवाहकर्ता की अनन्यता के कारण राष्ट्रभाषा की भी अधिकारिणी है। बंकिमचंद्र चट््टोपाघ्याय ने सन 1878 में बंगदर्शन में लिखा था कि ‘अगर हम भारत की एकता और भारत को विकसित करना चाहते हंै, तो हमें हिन्दी को अपनाना होगा।’

आज समाचार पत्रा-पत्रिकाओं के सर्वाधिक पाठक, आकाशवाणी व एफ एम के सर्वाधिक श्रोता तथा न्यूज चैनलों व फिल्मों के सर्वाधिक दर्शक हिन्दी के ही हैं। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही नहीं, अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से भी हिन्दी समाचार पत्रा-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। हिन्दी ही एकमात्रा ऐसी सक्षम एवं वैज्ञानिक भाषा है जो जैसी बोली जाती है वैसी लिखी जाती है। हिन्दी की देवनागरी लिपि विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। उसकी शब्दावली निरंतर बढ़ रही है व इसकी 10 लाख से ऊपर शब्द संख्या हो गई है। आज कम्प्यूटर, इन्टरनेट, ई-मेल, ब्लाॅग और वेबसाईट पर हिन्दी का अधिकाधिक उपयोग हो रहा है।

हिन्दी को सर्वमान्य एवं सार्वजनिक स्वरूप प्रदान करने में मीडिया का अनुकरणीय योगदान है। मीडिया ने हिन्दी भाषा को सात समुन्दर पार तथा गांवों से महानगर तक पहुंचाने का महती कार्य किया है। आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। संचार क्रान्ति ने पत्राकारिता के मूल स्वरूप में क्रान्ति कर एक परिवर्तन कर दिया है। हिन्दी में वह ऊर्जा है, जो उसे इस क्रांति में भी सक्रिय किए हुए है।

संस्थान निदेशक प्रो. पी एल सरोज ने कहा कि वैज्ञानिक उपलब्धियों को जनमानस तक पहुचाने के लिए हिन्दी का प्रयोग आवश्यक है। प्रशासनिक, विधि, औद्योगिक, सामाजिक तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी हिन्दी को अधिकाधिक बढ़ावा देना होगा। भारत में तेजी से विकसित हो रहे नगरों और महानगरों के बावजूद आज भी देश की अधिकांश आबादी गाँवों में ही बसती है। आर्थिक पत्राकारिता का एक महत्त्वपूर्ण आयाम कृषि एवं कृषि आधारित योजनाओं तथा ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों की कवरेज भी है। यहां हिन्दी समाचारों का महत्त्व अत्यंत बढ़ जाता है क्योंकि हिन्दी समाचारों व पत्रा-पत्रिकाओं के माध्यम से किसान कृषि संबंधी नवीनतम शोध, तकनीकों की जानकारी ले सकते हैं।

आज टीवी चैनलों व मनोरंजन की दुनिया में हिन्दी सबसे अधिक मुनाफे की भाषा है। मीडिया में आ रहे लगभग 75 प्रतिशत विज्ञापनों की भाषा हिन्दी है। आज सभी चैनल व फिल्म निर्माता, अंग्रेजी कार्यक्रमों को हिन्दी में डब करके प्रस्तुत करने लगे हैं। जीवन में विज्ञान और तकनीक के बढ़ते प्रभाव के कारण दिन प्रतिदिन नयी वैज्ञानिक, आर्थिक एवं तकनीक शब्दावली का विकास हो रहा है किन्तु उनके उचित हिन्दी पर्याय ढूंढ़ने की समस्या आज हिन्दी पत्राकारिता को प्रभावित कर रही है। लोकतंत्रा के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके लोकतंत्रा के चैथे स्तंभ पत्राकारिता को स्वतंत्रा और निर्बाध रहने दिया जाए, और पत्राकारिता का अपना हित इसमें है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता का उपयोग सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों के ईमानदारी से निर्वहन के लिए करती रहे।

बिल गेट्स ने कहा था कि हिन्दी जिस प्रकार कंप्यूटर और पत्रा-पत्रिकाओं पर छा रही है, वह अंग्रेजी के लिए खतरे की घंटी है। हिन्दी के बढ़ते महत्त्व के लिए यह बड़ा प्रमाण है।

इस अवसर पर बीकानेर स्थित भाकृअनुप के केन्द्रों के अध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं अधिकारी उपस्थित थे। कार्यशाला में संस्थान के गुजरात स्थित केन्द्र के अधिकारियों ने भी भाग लिया। इससे पूर्व संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी श्री रामदीन में स्वागत संबोधन एवं हिंदी अधिकारी श्री प्रेम प्रकाश पारीक ने आगन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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