आसानी से जख्म होना और अत्यधिक रक्तस्राव? विशेषज्ञों का कहना है, यह इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के लक्षण हो सकते हैं

जयपुर, सितंबर, 2022: ग्लोबल आईटीपी (इम्युन थ्रोम्बोसाइटोपेनिया) जागरूकता माह को देखते हुए, शहर के प्रमुख चिकित्सकों ने इस समस्या को लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत पर जोर दिया- इम्युन थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (आईटीपी) एक ऑटोइम्युन ब्लड डिसऑर्डर है जोकि प्लेटलेट काउंट काफी कम होने पर होता है। आईटीपी वर्षों में प्रति 100,000 रोगी में 1.6 से 3.9 की घटना दर के साथ होता है, जो उम्र के साथ बढ़ता है और इसमें मामूली रूप से महिला प्रधानता होती है। यह क्रॉनिक समस्या है, जिसमें रोगी को जीवनभर इलाज कराना होता है और इसलिए, एक्सपर्ट इसके उचित प्रबंधन पर जोर देते हैं।
आईटीपी में इम्युन सिस्टम, प्लेटलेट्स पर हमला करता है। ये कोशिकाएं रक्त का थक्का जमने में मदद करती हैं, जिससे उनका काउंट कम हो जाता है। एक सामान्य प्लेटलेट काउंट 150,000 और 450,000 के बीच होता है, लेकिन आईटीपी के साथ, यह काउंट 100,000 से कम होता है। प्लेटलेट काउंट कम होने से खून सही तरीके से जमता नहीं, जिसकी वजह से आसानी से रक्तस्राव और जख्म हो जाता है।
डॉ. मीतू, श्रीखंडे, वरिष्ठ परामर्शदाता, हेमेटो-ऑन्कोलॉजी,फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंत कुंज ने प्रेजेंटेशन के दौरान कहा, आईटीपी में सामान्य से लेकर गंभीर लक्षण हो सकते हैं। आसानी से जख्म हो जाना, ज्यादा मात्रा में और लंबे समय तक मासिक स्राव होना, मुंह, नाक और मसूड़ों से खून आना इसके कुछ आम लक्षण हो सकते हैं। प्लेटलेट काउंट कम होने से रक्तस्राव का खतरा बढ़ जाता है। प्लेटलेट काउंट जितना कम होगा, रक्तस्राव का खतरा उतना ज्यादा होगा। चूंकि, रक्तस्राव के लक्षण सेहत के अन्य गंभीर मामलों में भी नजर आ सकते हैं, ऐसे में मुख्य कारणों को जानने के लिये सही जांच करवाना जरूरी है। लक्षणों को नियंत्रित रखने के लिये, हम सामान्य ब्लड काउंट जांच करवाने की सलाह देते हैं। आईटीपी का इलाज है और इसके लिये कई सारी थैरेपी उपलब्ध हैं। रोगी के लक्षणों के आधार पर डॉक्टर सही इलाज की सलाह देगा।
प्लेटलेट के स्तर की जांच करने के लिये आमतौर पर खून की जांच के जरिये आईटीपी का पता लगाया जाता है। कुछ मामलों में यह पता लगाने के लिये शारीरिक जांच की जाती है कि रक्तस्राव त्वचा के ऊपर हो रहा है या अंदर। इलाज का समय प्लेटलेट काउंट और रक्तस्राव की तीव्रता पर निर्भर करता है। हालांकि, ऐसा देखा गया है कि रोगी बार-बार डॉक्टर बदलते हैं, जिससे उपचार का क्रम टूट जाता है। डॉ. विष्णु शर्मा, हेमेटोलॉजिस्ट, हेमेटो-ऑन्कोलॉजिस्ट और बोन मैरो ट्रांसप्लांट फिजिशियन, एसोसिएट प्रोफेसर (मेडिसिन), एसएमएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, जयपुर, कहते हैं, “आईटीपी रोगी, असंगत प्लेटलेट काउंट की घबराहट में बार-बार इलाज कर रहे फिजिशियन को बदलते हैं। साथ ही वे बार-बार जांच करवाते हैं और जांच के परिणामों के आधार पर खुद ही अपना इलाज करना शुरू कर देते हैं। इससे रोग के प्रबंधन में बाधा आती है और इससे समस्या और बिगड़ सकती है। रोगियों को यह समझने की जरूरत है कि आईटीपी, प्लेटलेट काउंट का बार-बार घटना-बढ़ना और हल्के बदलाव होना, चिंता का विषय नहीं है। रोगियों को उपचार का पालन करने और उपचार कर रहे अपने फिजिशियन से बात करने के बाद जांच करवाने की सलाह दी जाती है।”
आईटीपी के लिये उपचार आमतौर पर दवाओं के माध्यम से होता है। गंभीर मामलों में, प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन और इंटरवीनस इम्युन ग्लोब्युलिन (आईवीआईजी) निर्धारित किया जाता है। आईटीपी, वास्तव में, जीवन के लिये खतरा नहीं है और अधिकांश रोगी सामान्य जीवन जीते हैं। जीवनशैली में थोड़े बदलाव और उचित उपचार करके इसे अच्छी तरह से प्रबंधित किया जा सकता है। कुछ मामलों में, रोगियों को प्लेटलेट्स को प्रभावित करने वाली कुछ दवाओं से बचने की सलाह दी जा सकती है। कुछ आम मामलों में केवल ध्यान रखने की जरूरत होती है, तत्काल इलाज कराना जरूरी नहीं होता।

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