छह रुपये के ‘हथियार’ से मारे जा रहे तेंदुए

tigerहल्द्वानी। तेंदुआ संकटग्रस्त वन्यजीव है। इसे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत शेड्यूल-1 में रखा गया है। यह बातें और जानकारी पढ़ने-सुनने में भले ही अच्छी लगें, मगर तस्वीर का कड़वा सच यह है कि छह रुपये का ‘हथियार’ क्लच वायर इस अति संरक्षित वन्यजीव की हत्या के लिए कारगर बन गया है।

शिकारियों ने 12 फरवरी को लामाचौड़ के जंगल में भी इसी सस्ते हथियार से तेंदुए का काम तमाम किया था। शिकारियों ने अपनी इस तकनीक के आगे जहर को भी फेल कर दिया है। जंगल में वन्यजीवों को मारने के दो तरीके हैं। पहला फंदा या कड़का डालकर और दूसरा खाद्य पदार्थ में जहरीला पदार्थ मिलाकर।

शिकारी पहले रेकी कर वन्यजीव के मूवमेंट का रूट पता करते हैं और इसके बाद एक खास जगह फंदा लगाते हैं। फंदा लगाने में दोपहिया वाहनों के क्लच वायर शिकारियों के लिए मुफीद साबित हो रहे हैं। मात्र छह रुपये में मिलने वाला क्लच वायर मजबूत होने के साथ ही पतला होता है, जो आसानी से नजर भी नहीं आता।

जैसे ही तेंदुआ या अन्य वन्यजीव वायर से होकर निकलता है, तो वह इसकी जकड़ में आ जाता है। इससे निकलने के लिए जोर लगाने पर फंदा और तेजी से कसता जाता है। आखिर में दम घुटने या गला कटने से जानवर की मौत हो जाती है। लामाचौड़ में तेंदुआ ठीक इसी तकनीक से मारा गया था।

जहर से भी तेंदुओं को मारना आसान होता है। मरे हुए पशु या खाने की वस्तु में नुवान आदि जहर डाल दिया जाता है। वन्य जीव इन्हें खाते ही मर जाते हैं। डब्ल्यूटीआई के फील्ड ऑफीसर दिनेश पांडे कहते हैं कि जहर का प्रभाव बढ़ने पर तेंदुआ पानी की तरफ भागता है। यही वजह है कि जानवरों के शव अक्सर नदी और गधेरों के किनारे पड़े मिलते हैं।

केंद्रीय एजेंसी सीधे राज्य में हो रही वन्यजीवों की मौत के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। आप अनुमति दिला दें तो देखा जा सकता है।
– अरविंद झा, नार्थ जोन डायरेक्टर वाइल्ड, लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो

प्रदेश में करीब चार हजार तेंदुए हैं। तेंदुए की उम्र दस साल होती है। ऐसे में हर साल दस प्रतिशत वन्यजीव मर ही सकते हैं। शिकार और 24 तेंदुओं की मौतें गंभीर विषय है। इसमें प्रत्येक मामले की जांच कराई जाएगी।

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