रमज़ान या रमादान?

ramjanइस्लामिक कैलेण्डर के मुताबिक पवित्र नौवा महीना रमजान का महीना माना जाता है। 29 या 30 दिन के इस महीने में मुस्लिम रोजे का व्रत रखते हैं और पूरे महीने कठोर तप करते हुए अल्लाह को याद करते हैं। इस दौरान में पूरे दिन अन्न जल ग्रहण नहीं करते हैं और यथासंभव गलत कर्म करने से खुद को बचाते भी हैं। रमजान के पवित्र महीने में हर मुसलमान का धर्म बनता है कि वह रोजे रखे और एक महीने में पवित्र कुरान का पाठ भी करे। तो आखिर क्या होता है रमजान का महीना?

असल में भारत सहित पूरे उपमहाद्वीप में रमजान के नाम से जाना जानेवाले पवित्र महीने को रमज़ान, रमादान, रमाधान या रमाथान भी कहते हैं। रमजान को मूल रूप से अरबी में रमाधान या रमाथान कहते हैं। इस्लाम के जानकार कहते हैं कि क्योंकि अरबी में द शब्द का उच्चारण नहीं होता इसलिए अरबी में मूल शब्द रमाधान या रमाथान है जो कि रमिधा से लिया गया है. ‘रमिधा’ का मतलब जला देना. भस्म कर देने की क्रिया. जला देना या भस्म कर देने की क्रिया से यहां आशय उन कर्मों से है जो पूरे महीने एक सच्चा मुसलमान बड़े ईमान से अंजाम देता है और अपनी गलतियों का प्रायश्चित करता है। यह रमिधा शब्द संस्कृत के समिधा से बिल्कुल मिलता जुलता है जिसका मतलब भी यज्ञकुण्ड में भस्म की जानेवाली सामग्री से होता है.

लेकिन अरबी के इस ‘रमिधा’ को अंग्रेजी ने छुआ तो ‘एच’ गायब करके ‘रमिदा’ बना दिया. वैसे ही जैसे अरबी का रियाध अंग्रेजी में रियाद हो गया. इसलिए अरबी का रमधान अंग्रेजी में रमदान हो गया. खुद सऊदी अरब में अब शायद ही कोई रमाधान लिखता हो. इंगलिश कल्चर में ढलते जा रहे सउदी समाज ने भी रमदान स्वीकार कर लिया है. हां, भारत उपमहाद्वीप (भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश) में जहां फारसी भाषा स्थानीय बोलियों में घुल मिलकर उर्दू हो गई वहां अंग्रेजी के रमदान की बजाय स्थानीय शब्द इस्तेमाल होता है ‘रमज़ान.’ यह बात दीगर है कि अब यहां भी कुछ लोग रमज़ान को इसलिए रमादान बनाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है यह यह शब्द सऊदी अरब से मिला है. जबकि हकीकत में यह अंग्रेजी का शब्द है.

लेकिन अब ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि क्या फारसी की स्थानीय बोलियों से उपजे शब्द के कारण मूल अरबी के शब्द ही नहीं मायने भी बदल गये? मायने तो नहीं बदले लेकिन शब्द जरूर बदल गये। अगर ऐसा नहीं होता तो भारत में रमाधान शब्द प्रचलन में होता। लेकिन दिक्कत यह है कि अंग्रेजी के वैश्विक प्रभुत्व ने जिस तरह दुनिया की दूसरी भाषाओं को प्रभावित किया है वैसे ही उसने रमाधान को रमादान के रूप में परिवर्तित कर दिया है.

रमजान की ही तरह भारत में इस्तेमाल किया जानेवाला ‘रोज़ा’ शब्द भी अरबी का नहीं बल्कि उर्दू की देन है. मूल अरबी में रोज़ा का कहीं कोई जिक्र नहीं है. अरबी में महीनेभर चलनेवाले इस ‘व्रत’ या ‘तपस्या’ के लिए स्वम, साम या सियाम शब्द का उल्लेख है जिसका अर्थ होता है परहेज रखना. और सियाम सिर्फ खाने पीने भर का नहीं. शरीर की जितनी इंद्रियां (आंख, नाक, कान, जिह्वा) हैं सब पर परहेज कायम किया जाता है. यह सियाम भी संस्कृत के शब्द ‘संयम’ जैसा ही अर्थ प्रकट करता है. लेकिन एक बार फिर भारतीय उपमहाद्वीप में रोजा के लिए ‘सियाम’ या ‘स्वम’ शब्द को स्वीकार करने की बजाय दारी के ‘रोजेह’ को स्वीकार किया जो बाद में रोज़ा के रूप में प्रचलित हो गया.

दुनिया के अलग अलग हिस्सों में रमजान और रोजा के अलग अलग नाम हैं लेकिन सबका मतलब एक है. इन नामों और उत्सवों पर वहां की स्थानीय संस्कृति का स्पष्ट असर दिखाई देता है. मसलन, मलेशिया और सिंगापुर के देशों में तो रोजा को ‘पुआसा’ और ईद के त्यौहार को ‘हरि राया पुआसा’ कहा जाता है. जाहिर है, यहां के बहुसंख्य मुस्लिम समुदाय के लोग जब ऐसा कहते हैं तब उनके मन में जरा भी इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं होता होगा कि वे रमजान के साथ हरि जैसे शब्द का घालमेल कर रहे हैं. वहां की स्थानीय संस्कृति के हिसाब से जो सर्व स्वीकार्य है इस्लाम ने अपने आपको उस हिसाब से ढाल लिया है. मुश्किल सिर्फ इतनी है कि आधुनिकता से जुड़े बाजारवाद ने जैसे बाकी त्यौहारों पर असर डाला है उसी तरह ‘ग्रीटिंग कार्ड के रमादान कल्चर’ से इस्लाम का यह पवित्र महीना भी अछूता नहीं है.

http://visfot.com

error: Content is protected !!