अन्तर्राष्ट्रीय वृद्वावस्था दिवस “ओल्ड इज गोल्ड“

रेणु शर्मा
रेणु शर्मा

-रेणु षर्मा- वरिष्ठ नागरिको के सम्मान में मनाया जाने वाला विष्व स्तर का समारोह “ अन्तर्राष्ट्रीय वृद्व दिवस “ है। जिसे पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 1 अक्टूबर 1991 में मनाया गया । अक्टूबर की पहली तारीख मुख्यतयाः सभी वरिष्ठ नागरिकांे , वृद्व स्त्री-पुरूषों के लिये महत्तवपूर्ण होती हैं। इस दिन बुजुर्गो को सम्मानित किया जाता हैं और उनके सम्मान में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ नागरिको का साक्षात्कार लिया जाता है जिसमें वे अपने जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों को बंाटते हैं जिनसे आने वाली नयी पीढी कुछ षिक्षा ले सके और लाभान्वित हो सके।
वृद्वो की अहमियत पर हमारे यहंा राजस्थानी में एक किस्सा हैं “ एक बार एक लड़के की षादी में लड़कीवालों ने कहंा कि बारात में कोई वृद्व नही आयेगा तो लड़के वाले बारात के साथ एक वृद्व को छिपा कर ले गये षादी की रस्मों के पष्चात लड़की के चाचा ने कहंा धूल/मिट्टी की जेवड़ी बाटों (मिट्टी की रस्सी बनाओं)तब लड़के वालों में से कोई भी इसे नहीं समझ पाया और इस काम को कोई भी नही कर सका , तो उन्होने बारात के साथ छिपा कर लाये वृद्व से इसका जवाब पपूछा तो वृद्व ने कहंा-कि लड़की वालो से कहो की आप धूल की पूजंली देओगे तभी हम जेवड़ी बंाटेगे । जब लड़के वालों ने ये जवाब दिया तो लड़की वाले ने कहंा की आप जरूर कोई किसी वृद्व को लेकर आये हो । “ इस प्रकार यह षाबित होता है कि वृद्व अपने अनुभवों से किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं ।
“ओल्ड इज गोल्ड“ यह कहावत एक हद तक सही हैं सोना जितना पुराना होता है उसकी उतनी ही कीमत बढ जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति जितना अनुभव लेता हैं उसका ज्ञान उतना ही बढ जाता हैं यही कहावत वृद्व इंसान पर लागू होती हैं क्योकि उनके पास जीवन जीने का अनुभव होता हैं और व्यक्ति अनुभवों से ही सीखता है। बुजुर्गो के पास उनके द्वारा बिताये हुए अच्छे और बुरे समय का अनुभव होते हैं जो हमें बहुत कुछ सीखा देते हैं। परिवार में वृद्व व्यक्ति का अहम स्थान होता है।
इसी प्रकार दिवस की तरह संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में राष्ट्रीय ग्रांडपेरेन्टस ड़े , चीन में डबल नौवी महोत्सव और जापान में रेस्पेक्ट फोर एजेड डे के रूप में वृद्वदिवस को मनाया जाता हैं । हमारे देष भारत में वृद्व स्त्री-पुरूषों के सम्मान के लिये कोई विषेष दिन नही हैं बल्कि हमारे यहंा वृद्व स्त्री-पुरूषों का रोजाना ही सम्मान दिया जाता है उनको परिवार का एक अहम स्थान दिया जाता है। वृद्व घर की षान होते हैं बडें-बूढें उनसे परिवार में एक दहषत होती हैं आज भी हमारे यहंा संयुक्त परिवार होते है जहंा घर की बागडोर घर के वृद्व के हाथ में ही होती हैं जीवन भर काम करने के पष्चात इंसान थक जाता है ंउसे आराम की आवष्यक्ता होती है ंआराम का जीवन व्यतित करने की उम्र होती है वृद्वावस्था जिसमे इंसान अपने बच्चों के बच्चों के साथ जीवन जीता है । वृद्व के कारण ही नीषादराज गुह कि गलतफहमी दूर हुई जब भरतजी राम को मनाने के लिये बनवास जा रहे थे तब उनका भरत से होने वाला युद्व टल गया जिसका तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में वर्णन किया हैं “बूढु एकु कह सगुन बिचारी , भरतहि मिलिअ न होइहि रारी । रामही भरतु मनावन जाही , सगुन कहइ अस बिग्रहु नाहीं ।“
14 दिसम्बर 1990 को संयुक्तराष्ट्रसंघ की साधारण सभा में यह प्रस्ताव पारित हुआ की वृद्वों को सम्मान देने के लिये वृद्वावस्था दिवस मनाया जाना चाहिये एंव उस दिन अन्तर्राष्ट्रीय अवकाष होना चाहिये। वर्तमान समय में हमारे यहंा षहरीकरण होने के कारण संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ हैं एंव एकल परिवारों का चलन होने लगा है। सामान्यतया समाज में वृद्वों को अपेक्षित व्यवहार सहना पडता है। वृद्वों के सम्मान के लिये मनाया जाने वाला वृद्वदिवस सही मायने में तभी सार्थक सिद्व होगा जब हम हमारे घर , पडोस में रहने वाले वृद्वों को सम्मान देगे । जहंा भी कोई कमर झुका कर , कमजोर नजर वाला दुबले-पतले ढाचे वाला इंसान दिखाई दे उसे झुक कर नमन करे ये वृद्व स्त्री-पुरूष को देखे उनके प्रति श्रद्वा से नमन करे ।
Renu Sharma
Journalist.Secretary(Rajasthan)
Media Action Forum
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