काल भैरव अष्टमी 14 नवम्बर, 2014 को मनाई जाएगी

kaal bhairavशिव अवतार कहे जाने वाले कालभैरव का अवतार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ। इस संबंध में शिवपुराण की शतरुद्रासंहिता में बताया गया है शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया और यह स्वरूप भी भक्तों को मनोवांछित फल देने वाला है।कोयले से भी प्रगाढ़ रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी – यह है महाभैरव, अर्थात् भय के भारतीय देवता का स्वरूप।
भैरव जी के उपवास के लिए रविवार और मंगलवार ग्राह्य माने गए हैं। ऐसी मान्यता है कि अष्टमी के दिन स्नान के बाद पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के बाद यदि कालभैरव की पूजा की जाए तो उपासक के साल भर के सारे विघ्न टल जाते हैं। मान्यता यह भी है कि महाकाल भैरव मंदिर में चढ़ाए गए काले धागे को गले या बाजू में बांधने से भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता है। कहते हैं कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी ‘काल’ का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु कालभैरव की शरण में जाने की सलाह धर्मशास्त्र देते हैं। ऐसा जन विश्वास है कि सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वालों की भैरव जी रक्षा करते हैं।
इस वर्ष (शुक्रवार) 14 नवम्बर,2014 को मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी है। इस दिन काल भैरव जयंती मनाई जाएगी। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं।
आज के दिन प्रत्येक प्रहर में काल भैरव और ईशान नाम के शिव की पूजा और अर्घ्य देने का विधान है। आधी रात के बाद काल भैरव की आरती की जाती है। इसके बाद पूरी रात का जागरण किया जाता है। मान्यता है कि भगवान भैरव का वाहन कुत्ता है। इसलिए इस दिन कुत्ते की भी पूजा की जाती है। कहते हैं कि अगर कुत्ता काले रंग का हो तो पूजा का माहात्म्य और बढ़ जाता है। कुछ भक्त तो उसे प्रसन्न करने के लिए दूध पिलाते हैं और मिठाई खिलाते हैं।
भगवान भैरव उल्लेख आदित्य पुराण में विस्तार से आया है। भैरव भगवान शिव के दूसरे रूप में माने गए हैं। मान्यता है कि इसी दिन दोपहर के समय शिव के प्रिय गण भैरवनाथ का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि भैरव से काल भी भयभीत रहता है, इसलिए उन्हें कालभैरव भी कहते हैं। देश में भैरव जी के कई मंदिर हैं, जिनमें काशी स्थित कालभैरव मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
भगवान भैरव पर दूध चढ़ाया जाता है, लेकिन किलकारी भैरव के विषय में मान्यता है कि वह शराब चढ़ाने पर प्रसन्न होते हैं। उज्जैन स्थित काल भैरव मंदिर में श्रद्धालु भैरव जी को मदिरा अर्पित करते हैं। ऐसा मानते हैं कि यह व्रत गणेश, विष्णु, यम, चंद्रमा, कुबेर आदि ने भी किया था और इसी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु लक्ष्मीपति बने, अप्सराओं को सौभाग्य मिला और कई राजा चक्रवर्ती बने। यह सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत कहा गया है।
इस दिन चन्द्रमा सिंह राशि में रहेगा और आश्लेषा नक्षत्र रहेगा..

कहते हैं, औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। जनश्रुतियों के अनुसार कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया। बादशाह को भी अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये किं पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खु़द उसके पास तक न पहुँच जाए।
उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक क्रिया के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव की भावना से अपने को आत्मसात करना होता है।
कालभैरव की पूजा प्राय: पूरे देश में होती है, और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं। महाराष्ट्र में खण्डोबा उन्हीं का एक रूप है, और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है। दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है। वैसे हर जगह एक भयदायी और उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है, और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियां भी स्थान-स्थान पर प्रचलित हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं। शिव प्रलय के देवता हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं। इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव। सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।
भय स्वयं तामस-भाव है। तम और अज्ञान का प्रतीक है यह भाव। जो विवेकपूर्ण है वह जानता है कि समस्त पदार्थ और शरीर पूरी तरह नाशवान है। आत्मा के अमरत्व को समझ कर वह प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय बना रहता है। जहाँ विवेक तथा धैर्य का प्रकाश है वहाँ भय का प्रवेश हो ही नहीं सकता। वैसे भय केवल तामस-भाव ही नहीं, वह अपवित्र भी होता है।। इसीलिये भय के देवता महाभैरव को यज्ञ में कोई भाग नहीं दिया जाता। कुत्ता उनका वाहन है। क्षेत्रपाल के रूप में उन्हें जब उनका भाग देना होता है तो यज्ञीय स्थान से दूर जाकर वह भाग उनको अर्पित किया जाता है, और उस भाग को देने के बाद यजमान स्नान करने के उपरांत ही पुन: यज्ञस्थल में प्रवेश कर सकता है।
पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया।
ऐसी मान्यता है कि अष्टमी के दिन स्नान के बाद पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के बाद यदि कालभैरव की पूजा की जाए तो उपासक के साल भर के सारे विघ्न टल जाते हैं। मान्यता यह भी है कि महाकाल भैरव मंदिर में चढ़ाए गए काले धागे को गले या बाजू में बाँधने से भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता है। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी ‘काल’ का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
भारत में भैरव के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है।
भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं – अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है – उसका भी एक देवता है, और उसी भय का हमारा देवता हैं महाभैरव।
व्रत की विधि :-मार्गशीर्ष अष्टमी पर कालभैरव के निमित्त व्रत उपवास रखने पर जल्द ही भक्तों की इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस पर्व की व्रत की विधि इस प्रकार है-

दयानन्द शास्त्री
दयानन्द शास्त्री

भैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाएं। मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करें। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करें। साथ ही ऊँ भैरवाय नम: मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई खिलाएं। दिन में फलाहार करें।
भैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाएं। मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करें। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करें। साथ ही ऊँ भैरवाय नम: मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई खिलाएं। दिन में फलाहार करें।
कैसे करें कालभैरव का पूजन : –
काल भैरवाष्टमी के दिन मंदिर जाकर भैरवजी के दर्शन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। उनकी प्रिय वस्तुओं में काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा, कड़वे तेल से बने पकवान दान किए जा सकते हैं।
शुक्रवार को भैरवाष्टमी पड़ने पर इस दिन उन्हें जलेबी एवं तले पापड़ या उड़द के पकौड़े का भोग लगाने से जीवन के हर संकट दूर होकर मनुष्य का सुखमय जीवन व्यतीत होता है।
कालभैरव के पूजन-अर्चन से सभी प्रकार के अनिष्टों का निवारण होता है तथा रोग, शोक, दुखः, दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। कालभैरव के पूजन में उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
भैरवजी के दर्शन-पूजन से सकंट व शत्रु बाधा का निवारण होता है। दसों दिशाओं के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है तथा पुत्र की प्राप्ति होती है। इस दिन भैरवजी के वाहन श्वान को गुड़ खिलाने का विशेष महत्व है।
यूं तो भगवान भैरवनाथ को खुश करना बेहद आसान है लेकिन अगर वे रूठ जाएं तो मनाना बेहद मुश्किल। पेश है काल भैरव अष्टमी पर कुछ खास सरल उपाय जो निश्चित रूप से भैरव महाराज को प्रसन्न करेंगे।
रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं।
उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। याद रखें पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें। यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।
शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनकी पूजन करें। बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे। याद रखिए कि अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।
. प्रति गुरुवार कुत्ते को गुड़ खिलाएं।
रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें।
सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।
शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें।
रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मं‍दिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।
. पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं।
सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है। भैरवजी को काशी का कोतवाल भी माना जाता है।
तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन ‘भैरव’ के नाम से किया गया, जिसके भय से सूर्य एवं अग्नि तपते हैं। इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान ‘भैरव’ ही हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।
तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनीहदयदीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्‌ सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।’
भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।
श्री तंत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं-
‘भ’ अक्षरवाली जो भैरव मूर्ति है वह श्यामला है, भद्रासन पर विराजमान है तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उसकी कांति है। वह एक मुखी विग्रह अपने चारों हाथों में धनुष, बाण वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
‘र’ अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं। उनके वस्त्र लाल हैं। सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
‘व’ अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण और नरवरफाटक के सामान श्वेत हैं। वह देवी समस्त लोकों का एकमात्र आश्रय है। विकसित कमल पुष्प उनका आसन है। वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं।
स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा है। गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तबसे भगवान शिव की प्रिय पुरी ‘काशी’ में आकर दोष मुक्त हुए।
ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है। तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं।
भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।
भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्‍ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, ‍लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।
भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।
जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है। खास तौर भैरवाष्टमी के दिन तंत्र-मंत्रों का प्रयोग करके आप अपने व्यापार-व्यवसाय, जीवन में आने वाली कठिनाइयां, शत्रु पक्ष से आने वाली परेशानियां, विघ्न, बाधाएं, कोर्ट कचहरी आदि मुकदमे में जीत के लिए भैरव आराधना करेंगे, तो निश्चित ही आपके सारे कार्य सफल और सार्थ क हो जाएंगे।
भैरव आराधना के खास मंत्र निम्नानुसार है : –
– ‘ॐ कालभैरवाय नम:।’
– 2 ॐ भयहरणं च भैरव:।’
– ‘ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।’
– ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।’
– ‘ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्‍।’
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
उपरोक्त मंत्र जप आपके समस्त शत्रुओं का नाश करके उन्हें भी आपके मित्र बना देंगे। आपके द्वारा सच्चे मन से की गई भैरव आराधना और मंत्र जप से आप स्वयं को जीवन में संतुष्ट और शांति का अनुभव करेंगे।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रिय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रिय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश) एवं 09024390067 (राजस्थान)

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