विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है होली का त्यौहार

ब्रज- मथुरा-व्रदावन की होली –
holiयहाँ पर होली को कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है | उल्लेखनीय है कि यहाँ होली बाकी भारत में खेली जाने वाली होली से पहले खेली जाती है | होली का दिन शुरू होते ही नंदगाँव के हुरियारों की टोलियाँ बरसाने पहुँचने लगती हैं, साथ ही पहुँचने लगती हैं कीर्तन मंडलियाँ |‘कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’ ‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर’और‘उड़त गुलाल लाल भए बदरा’जैसे गीतों की मस्ती से पूरा माहौल झूम उठता है | इस दौरान भाँग-ठंढई का ख़ूब इंतज़ाम होता है |बरसाने में टेसू के फूलों के विशालकाय भगोने तैयार रहते हैं, दोपहर तक घमासान लठमार होली का समाँ बंध चुका होता है |

अंगारों की होली —-मथुरा जिले की छाता तहसील में फालैन गांव का यह क्षेत्र भक्त प्रह्लाद का क्षेत्र कहलाता है और यहां पण्डा होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलता है।

उत्तरांचल के कुमाऊं मंडल की होली— बरसाने की होली के बाद अपनी सांस्कृतिक विशेषता के लिए कुमाऊंनी होली को याद किया जाता है | फूलों के रंगों और संगीत की तानों का ये अनोखा संगम देखने लायक होता है , शाम ढलते ही कुमाऊं के घर घर में बैठक होली की सुरीली महफिलें जमने लगती है

हरियाणाकी धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है।

गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है |

पंजाब– सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री अनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है, कहा जाता है कि गुरु गोबिन्द सिंहजी ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर,भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग,हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस,पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से‘महा प्रसाद’पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।

तमिलनाडु– तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किवदन्ती है कि तपस्यालीन भगवान शंकर की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव शिवजी पर अपने कामबाणों से वार कर उनकी तपस्या को भंग किया जिससे शिवजी क्रोधित हुए एवं उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भष्म कर दिया ( उधर पर्वत सम्राट की पुत्री पार्वती भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिये तपस्या कर रही थी, शिवजी की तपस्या भंग होने का सुखद परिणाम तो यह हुआ कि शिव-पार्वती का विवाह हो गया), उधर कामदेव की पत्नी रति ने कामदेव की म्रत्यु पर विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को पुनः जीवित करने की प्राथना की। शिवजीर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रुप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

मणिपुर में होली याओसांग के नाम से मनाई जाती है। योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है यहां धुलेंडी वाले दिन को पिचकारी कहा जाता है। इस दिन इसमें चैतन्य महाप्रभु की प्रतिमा स्थापित की जाती है और पूजन के बाद इस झोपड़ी को अलाव की भांति जला दिया जाता है। इस झोपड़ी में लगने वाली सामग्री को बच्चों द्वारा चुराकर लाने की प्रथा है। इसकी राख को लोग मस्तक पर लगाते हैं एवं ताबीज भी बनाया जाता है। पिचकारी के दिन सभी एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। बच्चे घर-घर जाकर चांवल,सब्जी इत्यादि इकट्ठा करते हैं और फिर विशाल भोज का आयोजन किया जाता है।

दक्षिण गुजरातके आदिवासियों भील जाति के लोग होली को गोलगधेड़ों के नाम से मनाते हैं। इसमें किसी बांस या पेड़ पर नारियल और गुड़ बांध दिया जाता है उसके चारों और युवतियां घेरा बनाकर नाचती हैं। युवक को इस घेरे को तोड़कर गुड़,नारियल प्राप्त करना होता है। इस प्रक्रिया में युवतियां उस पर जबरदस्त प्रहार करती हैं। यदि वह इसमें कामयाब हो जाता है तो जिस युवती पर वह गुलाल लगाता है वह उससे विवाह करने के लिए बाध्य हो जाती है।

छत्तीसगढ़की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश की होली भील होली को भगौरिया कहते हैं। इस दिन युवक मांदल की थाप पर नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुंह पर गुलाल लगाता है और बदले में वह भी यदि गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह के लिए सहमत हैं। यदि वह प्रत्युत्तर नहीं देती तो वह किसी और की तलाश में जुट जाता है। मालवा की होली में होली के दिन लोग एक-दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। कहते हैं कि इससे होलिका राक्षसी का अंत हो जाता है।

बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है

राजस्थान की होली
में होली के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। बाड़मेर में पत्थर मार होली खेली जाती है तो अजमेर में कोड़ा होली। सलंबर कस्बे में आदिवासी गेर खेलकर होली मनाते हैं। इस दिन यहां के युवक हाथ में एक बांस जिस पर घूंघरू और रूमाल बंधा होता है,जिसे गेली कहा जाता है लेकर नृत्य करते हैं। इस दिन युवतियां फाग के गीत गाती हैं।

बस्तर की होली–— में इस दिन लोग कामदेव का बुत सजाते हैं,जिसे कामुनी पेडम कहा जाता है। उस बुत के साथ एक कन्या का विवाह किया जाता है। इसके उपरांत कन्या की चुड़ियां तोड़कर,सिंदूर पौंछकर विधवा का रुप दिया जाता है। बाद में एक चिता जलाकर उसमें खोपरे भुनकर प्रसाद बांटा जाता है।

बंगाल की होली-–बंगालमेंदोलयात्राका उत्सव होता है।यह उत्सव पाँच या तीनदिनोंतक चलता है।पूर्णिमाके पूर्वचतुर्दशीको सन्ध्या के समय मण्डप के पूर्व मेंअग्निके सम्मान में एक उत्सव होता है।गोविन्दकी प्रतिमा का निर्माण होता है। एक वेदिका पर 16 खम्भों से युक्त मण्डप में प्रतिमा रखी जाती है। इसेपंचामृतसे नहलाया जाता है, कई प्रकार के कृत्य किये जाते हैं, मूर्ति या प्रतिमा को इधर-उधर सात बार डोलाया जाता है।

उड़ीसा की होली
उड़ीसामें भी होली को ‘डोल पूर्णिमा’ कहते हैं औरभगवान जगन्नाथ जीकी डोली निकाली जाती है।

आंध्र प्रदेश की होली–—– वैसे तोदक्षिण भारतमेंउत्तर भारतकी तरह की रंगों भरी होली नहीं मनाई जाती है फिर भी सभी लोग हर्षोल्लास में आंध्र प्रदेशकेबंजाराजनजतियों का होली मनाने का अपनानिराला तरीक़ा है। यह लोग अपने विशिष्ट अंदाज़ में मनोरम नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
प्रस्तुति जे के गर्ग

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