इन्दिरा गाँधी को उनकी जन्म शताब्दी वर्ष के प्रारम्भ पर श्रद्धा के पुष्प—भाग 4

डा. जे.के.गर्ग
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खालीस्तान के समर्थन में जरनैल सिंह भिंडरावाले ने स्वर्ण मन्दिर के भीतर अपना अड्डा बना लिया था , ऐसी अवस्था में उन्होंने मजबूर होकर आतंकवादीयों से निबटने हेतु स्वर्ण मंदिर परिसर में सेना को प्रवेश करने का आदेश दिया, सिख समुदाय में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई और अधिकांश सिखों इन्दिरा गांधी के खिलाफ आक्रोश पनपा |
इन्दिराजी ने अपनी म्रत्यु से कुछ समय पूर्व ही कहा था कि अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूँ, जैसा की कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड्यंत्र कर रहे हैं, मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं| इन्दिराजी के सुरक्षा कर्मी सतवंत सिंह और बेअन्त सिंह,ने 31अक्टूबर, 1984 को अपने सेवा हथियारों से ही नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री निवास के बगीचे में ही इंदिरा गांधी को गोलियों से भून भून कर मार डाला | श्रीमती गांधी को उनके सरकारी कार में ही अस्पताल पहुंचाते समय रास्ते में ही दम तोड़ दिया | उनकी मौत के बाद, नई दिल्ली के साथ साथ भारत के अनेकों अन्य शहरों में भी सांप्रदायिक अशांती हो गई, बेकाबू भीड़ ने निरपराध लोगों को विशेष कर सिक्खों को मार डाला , यह अत्यन्तं अमानवीय कृत्य था और अवश्य ही इन्दिराजी की आत्मा इसे देख बिलख बिलख कर रोई होगी | इन्दिराजी का अंतिम संस्कार 3 नवंबर को राज घाट के समीप शक्ति स्थल पर कर दिया गया। इंदिराजी के बलिदान के साथ ही एक युग का अंत हो गया |
आज सभी देशवासियों को इंदिराजी के वो शब्द याद आ रहें हैं “यदि मैं इस देश की सेवा करते हुए मर भी जाऊं, मुझे इसका गर्व होगा| मेरे खून की हरएक बूँद …..इस देश की तरक्की में और इसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदान देगी “ | आतंकवाद से लड़ते हुए अपनी जान की बली देने वाली svabhimani देश की बेटी इंदिराजी को उनके 99 वें जन्म दिन पर हम सभी शत् शत् नमन करते हैं।
प्रस्तुत कर्ता—–डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-विभिन्न पत्र –पत्रिकायें, मेरी डायरी पन्ने आदि
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