मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम की संकल्पशक्ति, योगीराज श्रीकृष्ण की राजनीतिक कुशलता एवं कूटनीति और आचार्य चाणक्य की निश्चयात्मिका बुद्धि के धनी व्यक्तियों में जन नायक अटलबिहारी का नाम शिखर पर लिया जाता हैं। अटलजी ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्रसेवा हेतु अर्पित किया हैं। उनका तो मन्त्र है “ देश के लिए जियें और देश के लिए ही मरें, भारत माता का कण-कण शंकर है, वहीं पानी की बूंद-बूंद गंगाजल है”, उन्होनें अनेको बार कहा है कि “भारत के लिए हँसते-हँसते प्राण न्योछावर करने में मैं गर्व का अनुभव करूँगा”। अटल जी के भाषणों में ऐसा जादू होता था कि लोग उन्हें निरंतर घंटों सुनते ही रहना चाहते थे। उनकी वाणी में सदैव विवेक और संयम होता है। गम्भीर से गम्भीर बात को बात हँसी की फुलझड़ियों के बीच कह देने की विलक्ष्ण क्षमता उन्हीं में हैं। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी करते थे।
कहते हैं कि प्रथम प्रधानमंत्री नेहरूजी ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए कहा था कि ये अद्धभुत प्रतिभा के धनी हैं और इनका भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है जिसकी वजह से ये एक दिन देश के सर्वोच्च पद पर पदासीन होगें “ | पूर्वी पाकिस्तान के विघटन एवं बंगलादेश देश के जन्म के समय अटलजी ने अपनी राजनेतिक प्रबल विरोधी इंदिराजी जी की सराहना करते हुए उन्हें माँ दुर्गा के समान बता कर एक कुशल एवं परिपक्व राजनेता के रूप में अपने आप को स्थापित किया | 2002 के गुजरात के साम्प्रदायिक दंगों के बाद प्रधानमंत्री बाजपेयी जी ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को राज धर्म के पालन करने की सीख दी थी |
प्रस्तुतिकरण—डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-विभिन्न पुस्तके, मेरी डायरी के पन्ने आदि
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