जन जन की दुलारी – इन्दिरा गाँधी Part 3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
आज तक भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि युद्ध हो या विपक्ष की नीतियाँ हों अथवा, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो इंदिरा गाँधी ने स्वयं को सफल साबित किया था। 1971 के नवम्बर माह तक पूर्वी पाकिस्तान के एक करोड़ शरणार्थी भारत में प्रविष्ट हो चुके थे। इन शरणार्थियों की उदर पूर्ति करना तब भारत के लिए एक समस्या बन गई थी। ऐसी स्थिति में भारत ने पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के अन्दर बर्बरता के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवता के हित में आवाज़ बुलंद की, इसे पाकिस्तान ने अपने देश का आंतरिक मामला बताते हुए पूर्वी पाकिस्तान में घिनौनी सैनिक कार्रवाई जारी रखी। छह माह तक वहाँ पाकिस्तान का दमन चक्र चला। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर,1971 को भारत के वायु सेना के ठिकानों पर हमला करते हुए उसे युद्ध का न्योता दे दिया। पश्चिमी भारत के सैनिक अड्डों पर किया गया हमला पाकिस्तान की ऐतिहासिक पराजय का कारण बना। इंदिरा जी ने चतुरतापूर्वक तीनों सेनाध्यक्षों के साथ मिलकर यह योजना बनाई कि उन्हें दो तरफ से आक्रमण करना है। एक आक्रमण पश्चिमी पाकिस्तान पर होगा और दूसरा आक्रमण तब किया जाएगा जब पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी सेनाओं को भी साथ मिला लिया जाएगा। जनरल जे.एस अरोड़ा के नेतृत्व में भारतीय थल सेना मुक्तिवाहिनी की मदद के लिए मात्र ग्यारह दिनों में ढाका तक पहुँच गई। पाकिस्तान की छावनी को चारों ओर से घेर लिया गया। तब पाकिस्तान को लगा कि उसका मित्रअमेरिका उसकी मदद करेगा। उसने अमेरिका से मदद की गुहार लगाई। अमेरिका ने दादागिरी दिखाते हुए अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया। तब इंदिरा गाँधी ने फ़ील्ड मार्शल मानिकशाह से परामर्श करके भारतीय सेना को अपना काम शीघ्रता से निपटाने का आदेश दिया। 13 दिसम्बर को भारत की सेनाओं ने ढाका को सभी तरफ से घेर लिया। 16 दिसम्बर को जनरल नियाजी ने 93 हज़ार पाक सैनिकों के साथ हथियार डाल दिए। उन्हें बंदी बनाकर भारत ले आया गया। शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान के रूप में बंगलादेश का जन्म हुआ और पाकिस्तान पराजित होने के साथ ही साथ दो भागों में विभाजित भी हो गया।

1974 में इन्दिरा जी की नितीयों के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण की अगुवाही में इन्दिराजी एवं उनकी सरकार के विरुद्ध जनआन्दोलन, हड़तालें की गई जिससे कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । 26 जून 75 को आपातकाल की घोषणा की गई | इन्दिराजी ने यकायक 1977 में चुनाव कराने की घोषणा कर दी , चुनावों में कांग्रेस पराजित हुई, यहाँ तक इंदिराजी और संजय गांधी चुनाव हार गये | विभिन्न विपक्षी पार्टियों से निर्मित जनता दल की सरकार बनी | तत्कालीन ग्रह मंत्री चरणसिंह ने इन्दिराजी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, उनकी गिरफ्तारी और लंबे समय तक चल रहे मुकदमे की वजह उनके विरुद्ध उपजा आक्रोश सहानुभूति मे बदलने लगा, लोगों का जनता सरकार से भी मोहभंग होने लगा | श्रीमती गांधी एक कुशल राजनेता थी इसलिये आपातकाल के दौरान हुई “गलतियों” के लिए कौशलपूर्ण ढंग से क्षमा मांगना प्रारम्भ कर दिया | 1980 मे आम चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला और इन्दिराजी वापस प्रधानमंत्री बनी |
खालीस्तान के समर्थन में जरनैल सिंह भिंडरावाले ने स्वर्ण मन्दिर के भीतर अपना अड्डा बना लिया था , ऐसी अवस्था में उन्होंने मजबूर होकर आतंकवादीयों से निबटने हेतु स्वर्ण मंदिर परिसर में सेना को प्रवेश करने का आदेश दिया, सिख समुदाय में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई और अधिकांश सिखों इन्दिरा गांधी के खिलाफ आक्रोश पनपा |
इन्दिराजी ने अपनी म्रत्यु से कुछ समय पूर्व ही कहा था कि अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूँ, जैसा की कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड्यंत्र कर रहे हैं, मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं| इन्दिराजी के सुरक्षा कर्मी सतवंत सिंह और बेअन्त सिंह,ने 31अक्टूबर, 1984 को अपने सेवा हथियारों से ही नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री निवास के बगीचे में ही इंदिरा गांधी को गोलियों से भून भून कर मार डाला | श्रीमती गांधी को उनके सरकारी कार में ही अस्पताल पहुंचाते समय रास्ते में ही दम तोड़ दिया | उनकी मौत के बाद, नई दिल्ली के साथ साथ भारत के अनेकों अन्य शहरों में भी सांप्रदायिक अशांती हो गई, बेकाबू भीड़ ने निरपराध लोगों को विशेष कर सिक्खों को मार डाला , यह अत्यन्तं अमानवीय कृत्य था और अवश्य ही इन्दिराजी की आत्मा इसे देख बिलख बिलख कर रोई होगी | इन्दिराजी का अंतिम संस्कार 3 नवंबर को राज घाट के समीप शक्ति स्थल पर कर दिया गया। इंदिराजी के बलिदान के साथ ही एक युग का अंत हो गया | आज सभी देशवासियों को इंदिराजी के वो शब्द याद आ रहें हैं “यदि मैं इस देश की सेवा करते हुए मर भी जाऊं, मुझे इसका गर्व होगा| मेरे खून की हरएक बूँद …..इस देश की तरक्की में और इसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदान देगी “ | आतंकवाद से लड़ते हुए अपनी जान की बली देने वाली देश की बेटी इंदिराजी को उनकी जन्मशताब्दी पर हम सभी उन्हें शत् शत् नमन करते हैं। लोगों ने सही ही कहा था “आसमान में जब तक सूरज चाँद रहेगा,इंदिरा तेरा नाम रहेगा” | लोगों ने सही ही कहा था “आसमान में जब तक सूरज चाँद रहेगा,इंदिरा तेरा नाम रहेगा” |

19 नवंबर 1917 को इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था। आज उनकी जन्मशताब्दी है | जानिये उनके अनमोल वचन |
एक देश की ताकत अंततः इस बात में निहित है कि वो खुद क्या कर सकता है,इसमें नहीं कि वो औरों से क्या उधार ले सकता है |
यदि मैं इस देश की सेवा करते हुए मर भी जाऊं, मुझे इसका गर्व होगा| मेरे खून की हरएक बूँद …..इस देश की तरक्की में औरइसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदानदेगी |.
अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूँ, जैसा की कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड्यंत्र कररहे हैं, मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं|.
शहादत कुछ ख़त्म नहीं करती , वो महज़ शुरआत है|
मेरे पिता एक राजनेता थे , मैं एक राजनीतिक औरत हूँ , मेरे पिता एक संत थे किन्तु मैं नहीं हूँ |
मेरे दादाजी ने एक बार मुझसे कहा था कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं: वो जो काम करते हैं और वो जो श्रेय लेते हैं. उन्होंने मुझसे कहा था कि पहले समूह में रहने की कोशिश करो, वहां बहुत कम प्रतिस्पर्धा है |उन मंत्रियों से सावधान रहना चाहिए जो बिना पैसों के कुछ नहीं कर सकते,और उनसे भी जो पैसे लेकर कुछ भी करने की इच्छा रखते हैं|
लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को यादरखते हैं|
प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है |
आप बंद मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते |

प्रस्तुत कर्ता—–डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ— केपी माथुर की किताब,वेदप्रताप वैद्यी का लेख, विभिन्न पत्र-पत्रिकायें,मेरी डायरी के पन्ने आदि |

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