हंसते—मुस्कराते जीये जिन्दगी Part 5

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
जिंदगी का मंत्र —
हर हाल में जिंदगी का साथ निभाते चले जाओ, किंतु हर ग़म , हर फ़िक्र को , धुएँ में नही ,हँसी में उडाते जाओ। यदि सच पूछा जाए तो मुनष्य और जानवर में अंतर ही क्या है, सिवा इसके कि मुनष्य हँस सकता है परंतु जानवर हँस नहीं सकता। अर्थात ‘हँसना मानवता का गुण है और न हँसना पशुता है।

हास्य संगठनों की उपयोगिता

आज सारे विश्व में हास्य योग संगठन बनते जा रहे हैं जिन्हें लाफ्टर कलब कहा जाता हैं, जहाँ लाफ्टर मैडिटेशन कराया जाता है। जो प्रातःकाल खुले मैदानों अथवा बगीचों में नियमित एकत्रित होकर सामूहिक रूप में कृत्रिम एवं प्राक्रतिक ढंग से हँसते–हँसाते हैं। हम प्रायः अनुभव करते हैं कि साधारण परिस्थितियों में कभी-कभी सामने वाले को हँसते हुए देख अकारण ही हँसी स्वतः आने लगती हैं। इसका छुआछुत के रोग की भांति आपस में फैलाव अथवा प्रसार होने लगता है जिससे समूह में हँसी का सहज माहौल हो जाता हैं। आजकल समूह में भी हँसने की भी विभिन्न विधियाँ मानव ने विकसित कर ली है।

साहित्य में हास्य

साहित्य में वर्णित नौ रसों में एक रस‘हास्य’है। प्राचीन संस्कृत नाटकों में हास्य का पूरा ध्यान रखा जाता था। प्रत्येक नाटक के बीच-बीच में हास्य-प्रसंग अवश्य होते थे। पाश्चात्य साहित्य में हास्य की काफी रोचक सामग्री मिलती है। हिंदी के माध्यकालीन युग में तुलसी,बिहारी,कबीर,जैसे महान् कवियों की रचनाओं में भी हास्य व्यंग्य का समावेश है। पुराने जमाने में दरबार में विदूषक होते थे—हँसना-हँसाना,चुटकुले,कहानी चलती ही रहती थी। अकबर-वीरबल विक्रमादित्य,राजा भोज के दरबार के लतीफे व किस्से आज भी बड़े चाव से पढ़े व सुनाये जाते हैं। आज भी फिल्मों में बीच-बीच में हल्के-फुल्के हास्य दृश्य अवश्य दिये जाते हैं। ताकि दर्शक फिल्मों की गंभीरता भूलकर दो घड़ी तनाव मुक्त हो लें।
होली-दीवाली पर जनता खुलकर रंग-व्यंग्य करती थी। शादी-ब्याहों में गाली-गलौज, एक-दूसरे पर फब्ती कसना नाच-गानों के माध्यम से चलता रहता था। ऐसे अनेक नेग जैसे कंगना-खिलावाना,मटकैने तुड़वाना डंडी खिलवाना व दूल्हे से शादी के पश्चात छंद सुनना जो केवल निर्मल-आनंद व विशुद्ध हास्य के लिए ही किये जाते थे। महात्मा गांधी के लिए ये प्रसिद्ध है कि वे खूब खुल कर हँसते थे और स्वयं को लक्ष्य करके हँसा करते थे।

डा.जे.के. गर्ग, सन्दर्भ—– सन्दर्भ—–डॉ टी एस दराल, चंचल मल चोर्डिया, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन पत्र- पत्रिकायें आदि | Visit our Blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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