जानिए कैसा रहेगा सभी 12 राशियों पर नव सम्वत्सर 2075 का प्रभाव

दयानन्द शास्त्री
प्रिय पाठकों/ मित्रों, आइए जानते हैं कि लाभ-हानि की दृष्टि से समस्त 12 राशियों के लिए विरोधकृत संवत्सर, विक्रम संवत् 2075 के अनुसार नया वर्ष 18 मार्च 2018 से कैसा रहेगा-

1. मेष- रोग व शोक
2. वृष- नेष्टसूचक, अशुभ
3. मिथुन- नेष्टसूचक, अशुभ
4. कर्क- सुख शांति
5. सिंह- सुख, समृद्धि
6 कन्या- नेष्टसूचक, अशुभ
7. तुला- नेष्टसूचक, अशुभ
8. वृश्चिक- रोग व शोक
9. धनु- सुख, शांति
10. मकर- सुख, समृद्धि
11 कुंभ- सुख, समृद्धि
12. मीन- सुख, शांति

प्रिय मित्रों/पाठकों, 18 मार्च 2018 (प्रथम नवरात्रे) से भारतीय नववर्ष एवं विक्रम शक संवत्सर 2075 आरंभ होगा ! इसे हिन्दू नववर्ष भी कहा जाता है। इसके आरंभ के साथ ही नवरात्र भी प्रारंभ हो जाते है, बसंत ऋतु के आगमन का संकेत मिलने लगता है और वातावरण खुशनुमा एहसास कराता है। हिन्दू नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना प्रारम्भ करने के दिन से ही नव वर्ष का आरम्भ होना माना जाता है। इसी दिन से ही काल गणना का प्रारंभ हुआ था। सतयुग का प्रारंभ भी इसी दिन से माना जाता है।

इस नववर्ष से ओर भी कई अधिक ऐतिहासिक संदर्भ जुडे हुए हैं : जैसे:–

* मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का राज्याभिषेक दिवस।
* शक्ति की आराधना हेतु नवरात्र आरम्भ।
* महर्षी दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज की स्थापना।
* राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार जी का जन्म दिवस।
* देव भगवान झूलेलाल जी का जन्म दिवस।
* धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक आदि।

दरअसल भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। मान्यता तो यह भी है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारतीयों द्वारा ही कैलेंडर यानि कि पंचाग का विकास हुआ। इसना ही 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। कहा जाता है कि भारत से नकल कर युनानियों ने इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया।

सप्तर्षि संवत है सबसे प्राचीन—
माना जाता है कि विक्रमी संवत से भी पहले लगभग सड़सठ सौ ई.पू. हिंदूओं का प्राचीन सप्तर्षि संवत अस्तित्व में आ चुका था। हालांकि इसकी विधिवत शुरूआत लगभग इक्कतीस सौ ई. पू. मानी जाती है। इसके अलावा इसी दौर में भगवान श्री कृष्ण के जन्म से कृष्ण कैलेंडर की शुरुआत भी बतायी जाती है। तत्पश्चात कलियुगी संवत की शुरुआत भी हुई।

विक्रमी संवत या नव संवत्सर—
विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच तरह का होता है जिसमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास आते हैं। विक्रम संवत में यह सब शामिल रहते हैं। हालांकि विक्रमी संवत के उद्भव को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं लेकिन अधितर 57 ईसवीं पूर्व ही इसकी शुरुआत मानते हैं।

सौर वर्ष के महीने 12 राशियों के नाम पर हैं इसका आरंभ मेष राशि में सूर्य की संक्राति से होता है। यह 365 दिनों का होता है। वहीं चंद्र वर्ष के मास चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ आदि हैं इन महीनों का नाम नक्षत्रों के आधार पर रखा गया है। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है इसी कारण जो बढ़े हुए दस दिन होते हैं वे चंद्रमास ही माने जाते हैं लेकिन दिन बढ़ने के कारण इन्हें अधिमास कहा जाता है। नक्षत्रों की संख्या 27 है इस प्रकार एक नक्षत्र मास भी 27 दिन का ही माना जाता है। वहीं सावन वर्ष की अवधि लगभग 360 दिन की होती है। इसमें हर महीना 30 दिन का होता है।

हिंदू नव वर्ष का महत्व—
भले ही आज अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन उससे भारतीय कलैंडर की महता कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा तो आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र की शुरुआत भी होती है। एक अहम बात और कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। अत: कुल मिलाकर कह सकते हैं कि हिंदू नव वर्ष हमें धूमधाम से मनाना चाहिये।

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