पीरों के पीर रामशापीर—रामदेव

डा. जे.के.गर्ग
रामदेव-रामाशापीर का उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला भाद्रपद शुक्ला 2 से भाद्रपद शुक्ला 11तक मनाया जाता है इस वर्ष यह मेला 11 सितम्बर 2018 से 19 सितम्बर 2018 तक मनाया जा रहा है । रामदेवरा मेला में हज़ारों भक्त दूर-दूर से बड़े-बड़े समुहों में नाचते गाते-भजन कीर्तन करते हुये पैदल, बसों,कारों,ट्रेक्टर,या अन्य साधनों से आते हैं। |

रामदेव पीर, रामदेवजी, रामदेव पीर, रामशा पीर, के नामों से जाए जाने वाले बाबा राम देव जी एक शासक थे और तनवर राजपूत थे जिसे भगवान विष्णु के अवतार के रूप में माना जाता है।

विक्रम संवत1409 की भादवा शुक्ल दूज के दिन पश्चिम राजस्थान के पोकरण शहर के नजदीक रुणिचा नामक स्थान में तंवर वंश के राजपूत अजमल जो रुणिचा के शासक थे , उनके घर बाबा रामदेव का अवतार हुआ था | राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों मे बाबा रामसा पीर का प्रमुख स्थान है। मान्यताओं के मुताबिक राजा अजमल ने पुत्र प्राप्ति हेतु दान पुण्य और अनेकों यज्ञ किये | द्वारकाजी में अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए तब राजा अजमल ने उनसे उनके घर में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने की याचना की तब भगवान द्वारकानाथ ने राजा अजमल ने कहा मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि तुम्हारा पहला बेटा विरमदेव होगा और दूसरे बेटे के रूप में मै खुद तुम्हारे आपके घर आउंगा। भगवान ने यह भी कहा कि जब में अवतरित होउगां तब उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें घंटियां अपने आप बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा वह दूध में बदल जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वहीं आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में रामदेवजी के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा। कहा जाता है कि श्री रामदेवजी के जन्म लेते ही ऐसी सभी चमत्कारिक घटनाये घटित हुई | सवंत 1425 में उन्होंने पोकरण से 12 किलोमीटर उत्तर दिशा में रूणिचा गावं बसा दिया था |

जानिये क्यों रामदेवजी को पीरों के पीर कहा जाता है ?

समय के साथ-साथ बाबा रामदेव जी की प्रसिद्धि पूरे संसार में फैल गई । बाबा रामदेवजी से प्रभावित होकर उस समय के सैकडों हिन्दू जो मुसलमान बन गये थे पुनः हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने लगे | इन स्थितियों को देखते कई मुस्लिमानों के 5 प्रमुख पीर मुल्तान से रूनीचा में बाबा रामदेव जी की परीक्षा लेने आए। जब मुल्तान के 5 पीर आए तो उन्होंने उनका रामदेवजी ने दिल खोलकर स्वागत किया । भोजन के समय पीर ने बाबा रामदेवजी से कहा कि वे केवल अपने स्वयं के बर्तन में खाना खाते हैं जो मुल्तान में छोड़ आये हैं। इस पर रामदेवजी ने अपना दाहीना हाथ बढ़ाया और उनके सभी बर्तन वहाँ आ गए। इसे देखकर मुल्तान के सभी 5 पीर उनकी प्रतिभा और चमत्कार से प्रभावित हुये और उन्होंने रामदेवजी को आशीर्वाद दिया और घोषणा की कि वह सारी दुनिया में रामशापीर, रामपुरी या हिंदवपीर के नाम से जाने जाएंगे। तब से रामदेवजी को भी रामशापीर के रूप में जाने गए।

रामदेवजी की प्रमुख बाल लीलायें

एक दिन सुबह रामदेव एवं विरमदेव अपनी माता मैणादे की गोद में खेल रहे तब उनकी मां दूध को गर्म करने के लिये उसे भगोनी में डाल कर चूल्हे पर चढ़ाने चली गई, उसी वक्त रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये अपने बड़े भाई विरमदेव जी के गाल पर चुमटी काट दी जिससे विरमदेव को क्रोध आ गया और उन्होंने राम देव को धक्का मार कर गिरा दिया | रामदेवजी गिर गये और रोने लगे हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर उनके पास आ गई और रामदेव जी गोद में लेकर पुछ्कारने लगी | उधर दूध को भगोनी के बाहर गिरता देखती माता मैणादे रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाह रही थी किन्तु उन्होंने उस वक्त देखा रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे आसानी से जमीन पर रख दिया। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे वह वहीं पर उपस्थित पिता अजमलजी तथा दासीयां अचम्भित होकर भगवान द्वारकानाथ की जय जयकार करने लगे ।

कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना

बालक रामदेव ने अपने पिता से खिलोने वाले घोड़े की जिद की तब राजा अजमल ने खिलोने वाले को चन्दन और मखमली कपडे का घोड़ा बनाने को कहा। कीमती मखमली कपड़ों को देख खिलोने वाले के मन में लालच आ गया और उसने बहुत सारा कपडा अपनी पत्नी के लिये रख लिया और और बहुत कम कपड़े से घोडा बना कर राजा को दे दिया । जब बालक रामदेव घोड़े पर बैठे तो घोड़ा उन्हें लेकर आकाश में चला ग़या। राजा खिलोने बनाने वाले पर गुस्सा होते उसे जेल में डाल दिया। कुछ समय पश्चात, बालक रामदेव वापस घोड़े के साथ आये। खिलोने वाले ने राजसी कपड़े को चुराने की बात कबूल कर रामदेवजी से उसे राजा के क्रोध से बचाने के लिये प्राथना की, बाबा रामदेव ने दया दिखाते हुए उसे माफ़ किया। आज भी, कपडे वाला घोड़ा बाबा रामदेव की खास चढ़ावा माना जाता है।

दलितों-गरीबों और अल्पसंख्यकों के मसीहा—बाबा रामदेवजी

रामदेवजी ने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य बीमारियों से पीड़ित रोगियों व जरुरत मंदों की हर सम्भव से सहायता और सेवा की। दलित कन्या डाली बाई को रामदेवजी ने अपने घर के अन्दर बेटी की तरह उसका लालन-पालन किया | उन्होंने सैकड़ों दलितों का पोषण किया और उनकी सहायता सेवा की | इसीलिए आज भी असंख्य दलित समुदाय के लिये वे आराध्यदेवता हैं | रामदेवजी ने पोखरण की जनता को भेरव राक्षक से मुक्त कराया, रामदेव के हाथो राक्षक़ उनके सामने आत्मसमर्पण कर हमेशा के लिये मारवाड़ छोड़ कर चला गया |

रामदेवजी के अनेकों चमत्कार और पर्चे

बोहिता को परचा व परचा बाबड़ी

कहते हैं कि रामदेवजी ने सेठ बोहिताराज से वादा किया कि जब कभी तुम पर कोई संकट आयेगा तब मैं तुम्हारी मदद करूगां | सेठ बोहितराज ने विदेश में व्यापार हेतु गया जहाँ उसने अपार धन- सम्पदा अर्जित की और उसने रामदेवजी के लिये हीरों का बहुमूल्य हार भी खरीद कर अपने नोकरों को आदेश दिया कि समस्त हीरे जवारात नाव में भर दें तभी अचानक समुद्र में जोर का तुफान आया जिससे नाव का परदा भी फट गया है। अब नाव डूबने के कगार पर थी | सेठ बोहिताराज ने अपने सारे देवी देवताओं से संकट से बचाने की प्राथनाएं की किन्तु किसी ने भी मदद नहीं की | सेठजी को श्री रामदेवजी के वचन याद आये और वे रामदेवजी को करूणा भरी आवाज से पुकारने लगे। उधर श्री रामदेवजी रूणिचा में अपने भाई विरमदेव जी के साथ बैठे थे और उन्होंने बोहिताराज की पुकार सुनी। भगवान रामदेव जी ने अपनी भुजा पसारी और बोहिताराज सेठ की जो नाव डूब रही थी उसको किनारे पर ले आये। यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ कि पास में बैठे भई वीरमदेव को भी पता तक नहीं पड़ने दिया। रामदेव जी के हाथ समुद्र के पानी से भीग गए थे। सेठ बोहिताराज अपनी नाव को सही सलामत किनारे पर पाकर खुशी से झूम कर बोले कि जिसकी रक्षा करने वाले भगवान श्री रामदेवजी है उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता। गांव पहुंचकर सेठ ने दरबार में जाकर श्री रामदेवजी से बोले कि मैं माया देखकर आपको भूल गया था मेरे मन में लालच आ गया था। मुझे क्षमा करें और आदेश करें कि मैं इस माया को कहाँ खर्च करूँ। तब श्री रामदेव जी ने कहा कि तुम रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो और उस बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व इसका जल गंगा के समान पवित्र होगा। रामदेवरा मे आज भी बावडी बनी हुयी है |

बाबा रामदेवजी का जीवित समाधी लेना

संवत् 1442 में अपने हाथ में श्रीफल लेकर अपने सारे बुजुर्गों को प्रणाम किया, सभी उपस्थित भक्तों ने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा “प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में किसी से भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा” ऐसा कहकर रामदेवजी महाराज ने समाधी ले ली।

रामदेवरा मन्दिर

रामदेवजी के वर्तमान मंदिर का निर्माण सन् 1939 में बीकानेर के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने करवाया था, इसके निर्माण पर उस समय 57 हजार रुपये व्यय हुए थे। रामदेवरा मन्दिर अपने आप में अनोखा है क्योंकि यहाँ बाबा रामदेव की मूर्ति भी है और मजार भी । कहा जाता है कि बाबा के पवित्रा राम सरोवर में स्नान से अनेक चर्मरोगों से मुक्ति मिलती है । रामदेवरा मन्दिर में आस पास के श्रद्धालुओं के साथ साथ राजस्थान के दूर दराज एवं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों के हजारों श्रद्धालु भी आते हैं। पैदल यात्रियों के समूह मेले के दिन से बहुत पहिले से बाबा की जयकार करते हुये, भजन कीर्तन करते हुये बाबा के दर्शन करने और मनोती मागने पहुचते है | इन श्रद्धालुओं के चाय-पानी तथा खाने पीने के लिये रास्तों में अनेकों भंडारे स्थानीय भक्तों दुवारा लगाये जाते हैं | बाबा के लाखों भक्त, ऊँट लढ्ढे, बैलगाडयां, दुपहिये वाहन, कारों, टेक्सीयों से यात्रा करके बाबा के दरबार तक पहुंचाते हैं । यहां कोई न छोटा होता है न कोई बडा | यहां मंदिर में नारियल, पूजन सामग्री और प्रसाद की भेंट चढाई जाती है । मंदिर के बाहर और धर्मशालाओं में सैकडों यात्रियों के खाने-पीने का इंतजाम होता है । मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं | निसंतान दम्पत्ति कामना से अनेक अनुष्ठान करते हैं तो मनौती पूरी होने वाले बच्चों का झडूला उतारते हैं और सवामणी करते हैं । रोगी रोगमुक्त होने की आशा करते हैं तो दुखी आत्माएं सुख प्राप्ति की कामना । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सेकड़ो श्रद्धालु पहले जोधपुर में बाबा के गुरु के मसूरिया पहाड़ी स्थित मंदिर में भी दर्शन करना नहीं भूलते हैं और उसके बाद जैसलमेर की ओररामदेवरा मन्दिर की तरफ कूच करते हैं | बहुत से लोग रामदेवरा में मन्नत भी मांगते हैं और मुराद पूरी होने पर कपड़े का घोड़ा बनाकर मंदिर में चढ़ाते हैं |निसंदेह रामदेवजी का मन्दिर हिन्दू और मुसलमानों की आस्था का केंद्र है और हिन्दुस्तान की साँझा संस्क्रती की मिशाल पेश करता है |

प्रस्तुतिकरण———डा.जे.के.गर्ग

सन्दर्भ—– इतिहासकार मुंहता नैनसी का ग्रन्थ “मारवाड़ रा परगना री विगत”, मेरी डायरी के पन्ने,विभिन्न समाचार पत्र पत्रिकायें आदि |

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