सद्दभाव न्याय भाईचारा स्नेह प्रेम एवं विनम्रता की विजय का पर्व —-दीपावली Part 1

dr. j k garg
“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योमा अमृतंगमय, दारिद्र्यात् समृद्धिंगमय “ दीपावली का महामंत्र है दुनिया भर में कोन होगा जो अपने में सुख- समृद्धि- धन-सम्पदा, ज्ञान, ऐश्‍वर्य और मानसिक शांती नहीं चाहता हो? शायद कोई नहीं ? | सच्चाई तो यही है कि इन्सान का झुकाव हमेशा प्रकाश की तरफ ही रहा है उसने परमात्मा से न तो कभी अंधकार को मांगा और नहीं कभी भी अंधकार की चाह की | मनुष्य का उद्देश्य हमेशा से “ तमसो मा ज्योतिगमर्य “ही रहा है यानि आदमी अपने जीवन में अंधकार से प्रकाश की तरफ से जाने की कोशिश करता रहा है |, सुचरित्र निर्माण के लिये आचरण से पहिले ज्ञान को जरूरी माना गया है | निसंदेह ज्ञान जीवन को प्रकाशित करने की क्षमता रखता है | हमारे अंदर अंधकार का जो गहन अँधेरा छाया हुवा है उसको ज्ञान के प्रकाश दीपक से ही खत्म किया जा सकता है, हांलाकि दीपावली एक लोकिक पर्व है, हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम दीपावली मात्र बाहरी अंधकार को नहीं अपने भीतर पनप रहे अंधकार समूल रूप से नष्ट करने का भी पर्व बनायें | हमें अपने भीतर हमारी चेतना के आगंन जमें हुये तामसी प्रवत्तियों एवं उससे उपजे कूड़ा-करकट के बदबूदार कचरे को बुहार कर साफ़ करें और हमारी आत्मा रूपी दीपक की प्रकाशमयी ज्योति को प्रज्वलित करें जिससे हमें सच्ची सुख और शांती प्राप्त हो सके | सूर्य को हम सभी सूर्य को जीवन के लिये प्रकाश एवं उर्जा के लोकिक दाता के रूप में जानते हैं | दीपक को स्कन्द पुराण मे सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है | हिन्दू केलेंडर के मुताबिक सूर्य कार्तिक मास में अपनी स्तिथी बदलता है |

Dr J.K. Garg

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