ऐसे थे हमारे लोह पुरुष सरदार पटेल Part 2

सरदार पटेल के लिये कर्तव्यपरायणता सर्वोच्च थी

dr. j k garg
सन् 1909 में सरदार एक केस में पेरवी कर रहे तभी उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक लगातार बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया| बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदारपटेल की पत्नी का निधन हुआ है तब जज साहिब ने सरदार पटेल से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना फर्जनिभा रहा था, जिसकी फीस मेरे मुवक्किल ने मुझे दी थी, मैं उसकेसाथ अन्याय कैसे कर सकता था |

सादगी और नम्रता की प्रतिमूर्ति
बात उन दिनों की है जब सरदार पटेल भारतीय लेजिस्लेटिव ऐसेंबली के सभापति हुआ करते थे,एक दिन अपना काम पूरा कर सरदार ज्योंहीं घर जाने लगे तभी एक अंग्रेज दम्पत्ति एसेंबली के प्रागण में आया | पटेल की बढ़ी हुई दाढ़ी और सादे वस्त्र देखकर उस दम्पत्ति ने उनकोवहां का चपरासी समझ लिया | अंग्रेज दम्पत्ति ने उन्हें ऐसेबंली में घुमाने के लिए कहा, पटेल ने उनकाआग्रह विनम्रता से स्वीकार किया और उस दम्पत्ति को पूरे ऐसेंबली भवन में साथ रहकर घुमाया |अग्रेज दम्पति बहुत खुश हुए और लौटते समय पटेल को एक रूपया बख्शिश में देना चाहा | परन्तुपटेल बड़े नम्रतापूर्वक मना कर दिया | अंग्रेज दम्पति वहां से चला गया |
दूसरे दिन ऐसेंबली की बैठक थी. दर्शक गैलेरी में बैठे अंग्रेज दम्पत्ति ने सभापति के आसन पर बढ़ीहुई दाढ़ी और सादे वस्त्रों वाले आदमी को सभापति के आसन पर देखकर हैरान रह गया, और मन हीमन अपनी भूल पर पश्चाताप करने लगा कि वे जिसे वे चपरासी समझ रहे थे, वह तो लेजिस्लेटिव ऐसेंबली के सभापति निकले,अंग्रेज दम्पति पटेल की सादगी को देख मन ही मन में लज्जा महसूस करने लगे |

प्रस्तुतिकरण —–डा. जे, के.गर्ग

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