राजेन्द्र बाबू के जीवन के अनसुने प्रेरणादायक संसमरण पार्ट 1

dr. j k garg
भारतीय सविधान सभा के अध्यक्ष प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को हुआ था। | हम उन्हें देशरत्न राजेन्द्र बाबू के नाम से पुकारते हैं | 1952 में राजेन्द्र प्रसाद जी को विधीवत निर्वाचन के बाद वे प्रथम राष्ट्रपति बने और दस वर्षों तक यानि 1962 तक राष्ट्रपति बने रहे | लगातार 2 टर्म तक राष्ट्रपति के पद को सुषोभित करने वाले इकलोते भारतीय है |हमें याद है उनका उधबोधंन “ मेरे लिये भव्य राष्ट्रपति भवन और सदाकत आश्रम समान हैं “ | सरोजनी नायडू ने सही ही कहा था” राजेन्द्र बाबू की असाधारण प्रतिभा,उनके स्वभाव को अनोखा माधुर्य,उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है | गांधीजी के निकटम शिष्यों में उनका वो ही स्थान है जो ईशा मसीह के निकट सेंट जाँन का था |3 दिसम्बर 2019 को राजेन्द्र बाबु के 135 वें जन्म दिन पर हम भारतीय उनके श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं |

जब परीक्षा में प्रथम आने वाले का नाम उत्तीर्ण छात्रोंसूची में नहीं था
प्रिंसिपल ने एफ.ए. में उत्तीर्ण छात्रों के नाम लिए तो राजेन्द्र प्रसाद का नाम उस सूची में नहीं था। राजेन्द्र प्रसाद एक मेधावी छात्र थे उन्हें अपने अनउत्तीर्ण होने पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्हें अपनी एफ.ए की परीक्षा में सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण होने का पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने खड़े होकर प्राचार्य से कहा कि वे फेल नहीं हो सकते हैं इसलिए आप परीक्षा में हुए उत्तीर्ण विद्यार्थीयों की सूची को एक बार पुनः देख लें, प्रिंसिपल ने क्रोधित होकर राजेन्द्र प्रसाद से कहा कि वह फ़ेल हो गए होंगे अत: उन्हें इस मामले में तर्क नहीं करना चाहिए। राजेन्द्र का हृदय धक-धक करने लगा और वे हकलाकर घबराते हुए बोले ‘लेकिन, लेकिन सर’ क्रोधित प्रिंसिपल ने कहा, ‘पाँच रुपया ज़ुर्माना’ राजेन्द्र प्रसाद साहस कर दुबारा बोले तो प्रिंसिपल चिल्लाये और बोले ‘दस रुपया ज़ुर्माना’| राजेन्द्र प्रसाद बहुत घबरा गए। अगले कुछ क्षणों में ज़ुर्माना बढ़कर 25 रुपये तक पहुँच गया। एकाएक हैड क्लर्क ने राजेन्द्र को पीछे से बैठ जाने का इशारा किया और वे प्रिंसिपल से बोले कि सर एक ग़लती हो गई है, वास्तव में राजेन्द्र प्रसाद परीक्षा में प्रथम आए हैं। राजेन्द्र प्रसाद की छात्रवृत्ति दो वर्ष के लिए बढ़ाकर 50 रुपया प्रति मास कर दी गई। उसके बाद स्नातक की परीक्षा में भी उन्हें सर्वोच्च स्थानप्राप्त हुआ। इस घटना के बाद राजेन्द्र प्रसाद ने यह जान लिया था कि आदमी को अपना संकोच को दूर कर आत्मविश्वासी बनना चाहिए।

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