कॉलेज में भोले बाले देहाती राजेन्द्र बाबू का पहला दिन
सरल एवं निष्कपट स्वभाव वाला सीधा-साधा ग्रामीण युवक राजेन्द्र प्रसाद बिहार पहली बार 1902 में कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश हेतु आया था | अपनी कक्षा में जाने पर वह छात्रों को ताकते रह गये क्योंकि वहां सभी छात्र नगें सिर एवं सभी पश्चिमी वेषभूषा की पतलून और कमीज़ पहने थे इसलिये उन्होंने सोचा ये सब एंग्लो-इंडियन हैं किन्तु जब हाज़िरी बोली गई तो राजेन्द्र को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वे सभी हिन्दुस्तानी थे। जब राजेन्द्र प्रसाद का नाम हाज़िरी के समय नहीं पुकारा गया तो उन्होनें हिम्मत जुटा कर अपने प्रोफेसर को पूछा कि उनका नाम क्यों नहीं लिया गया। प्रोफेसर उनके देहाती कपड़ों को घूरता ही रहा एवं चिल्ला कर बोला“ठहरो”, मैंने अभी स्कूल के लड़कों की हाज़िरी नहीं ली है |राजेन्द्र प्रसाद ने हठ किया कि वह प्रेसीडेंसी कॉलेज के छात्र हैं और उन्होंने प्रोफेसर को अपना नाम भी बताया। अब कक्षा के सभी छात्र उन्हें उत्सुकतावश देखने लगे क्योंकि उस वर्ष राजेन्द्र प्रसाद विश्वविद्यालय में प्रथम आये थे, प्रोफेसर ने तुरंत अपनी ग़लती को सुधार कर ससम्मान उनका नाम पुकारा और इस तरह राजेन्द्र प्रसाद के कॉलेज जीवन की शुरुआत हुई।
राजेन्द्र बाबू की दिनचर्या पर गांधीजी की छाप
समाज के बदलने से पहले अपने को बदलने का साहस होना चाहिये। “यह बात सच थी,” बापूजी की इस बात को राजेन्द्र बाबू ने अंतर्मन से स्वीकार किया वे कहते थे कि “मैं ब्राह्मण के अलावा किसी का छुआ भोजन नहीं खाता था। चम्पारन में गांधीजी ने उन्हें अपने पुराने विचारों को छोड़ देने के लिये कहा। आख़िरकार उन्होंने समझाया कि जब वे साथ-साथ एक ध्येय के लेये कार्य करते हैं तो उन सबकी केवल एक जाति होती है अर्थात वे सब साथी कार्यकर्ता हैं |
Dr J. K. Garg