आत्मसम्मान के धनी
आजादी के दिवाने शास्त्री जी स्वतंत्रताआन्दोलन के दौरान जेल में थे। घर पर उनकी पुत्री गम्भीर रूप बीमार थी,उनके साथियों ने उन्हेँ जेल से बाहर आकर पुत्री को देखने और उसकीदेख भाल करने लिये आग्रह किया, शास्त्रीजीकी पैरोल भी स्वीकृत हो गई, परन्तु शास्त्री जी ने पैरोल पर छूटकर जेल सेबाहर आना अपने आत्मसम्मान के विरुद्ध समझा ! क्योंकि वे यह लिखकर देने को तैयार नथे कि बाहर निकलकर वे स्वतन्त्रता आन्दोलन में कोई काम नहीं करेंगे। अंत मेंमजिस्ट्रेट को शास्त्रीजी को पन्द्रह दिनों के लिए बिना शर्त छोड़ना पड़ा। वे घरपहुँचे, लेकिन उसी दिन बालिका केप्राण-पखेरू उड़ गए। शास्त्री जी ने कहा, “जिस काम के लिए मैं आया था, वहपूरा हो गया है। अब मुझे जेल वापस जाना चाहिये।” और उसी दिन वो जेल वापस चले गये।