गणेश चतुर्थी — गणपति का जन्मोत्सव मैनेजमेंट के सर्वोच्च गुरु देवों के देव गणेश part 5

चूहे की सवारी:

j k garg
सभी देवी-देवता गणेशजी की बुद्धिमता के कायल हैं, तर्क-वितर्क में हर देवी-देवता गणेशजी से हार जाते थे | प्रत्येक समस्या के मूल में जाकर उसकी मीमांसा एवं विवेचना कर उसका तर्कसंगत हल खोजना उनकी विशेषता है इसलिए हर एक के मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि भगवान गणेशजी ने निकृष्ट माने जाने वाले चूहे (मूषक) को ही अपना वाहन क्यों चुना ? इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि चूहा भी तर्क-वितर्क में किसी से पिछे नहीं रहता है, चूहे का काम हर किसी भी वस्तु को कुतर डालना है | जो भी वस्तु या चीज चूहे को दिखाई देती है, चूहे महाराज उसकी चीर फाड़ करके उसके प्रत्येक अंगो का विस्तृत विश्लेष्ण सा कर देते है,अत: संभवत गणेशजी ने चूहे के इन्हीं गुणों को देख कर चूहे को अपना वाहन चुना होगा | गणेशजी की चूहे की सवारी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जैसे चूहे की इच्छा कभी पुरी नहीं होती, उसे कितना मिले हमेशा खाता रहता है वैसे ही मनुष्य की इच्छायें भी कितना भी मिले कभी पुरी नहीं होती क्योंकि लोभी आदमी का लालच कभी भी नहीं खत्म होता है | गणेश हमेशा चूहे की सवारी करते हैं इसका अर्थ है कि बेकाबू इच्छायें हमेशा विध्वंस का कारण बनती है | इनको काबू में रखते हुए इन पर राज करो, न कि इन इच्छाओं के मुताबिक खुद को उनमें लिप्त हो जा हो क्योंकि मनुष्य की इच्छायें और कामनाएं कभी भी पूरी नहीं होती है वरन आदमी इच्छाओं के मकड जाल में फसं कर असंतुष्ट तनावग्रस्त और दुखी रह कर रह कर अपने जीवन को बर्बादी के कगार पर ले आता है | अत: निसंदेह गणेशजी की चूहे की सवारी इन्सान की कभी भी पूरी नहीं होने वाली इच्छाओं का परिचायक है |

error: Content is protected !!