ईसाइयों और पश्चिम तक सीमित नहीं रहा क्रिसमस

-शुभा दुबे-
क्रिसमस वैसे तो ईसाई धर्म के अनुयायियों का सबसे बड़ा त्योहार है लेकिन धीरे धीरे अब अन्य धर्मों के लोगों द्वारा भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है। हंसी−खुशी के इस पर्व पर बाजारों में दिवाली जैसी रौनक नजर आती है तो स्कूल, कालेजों में भी इस पर्व पर विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम और मेले आयोजित किये जाते हैं। हालांकि यह पर्व 25 दिसंबर को मनाया जाता है लेकिन पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर से ही क्रिसमस से जुड़े कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। यूरोपीय और पश्चिमी देशों में इस दौरान खूब रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत में गोवा राज्य में क्रिसमस की काफी धूम रहती है इसके अलावा विभिन्न शहरों की बड़ी चर्चों में भी इस दिन सभी धर्मों के लोग एकत्रित होकर प्रभु यीशु का ध्यान करते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर लोग प्रभु की प्रशंसा में कैरोल गाते हैं और क्रिसमस के दिन प्यार व भाईचारे का संदेश देने एक दूसरे के घर जाते हैं।

इस पर्व के दौरान सभी लोग अपने घरों में क्रिसमस ट्री लगाते हैं जिसे अच्छे अच्छे उपहारों से सजाया जाता है। इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। इस पर्व पर बच्चों के बीच सांता क्लाज की बहुत धूम रहती है। सांता क्लाज बच्चों के लिए मनचाहे तोहफे लेकर आते हैं और बच्चों को खुशियों से भर देते हैं। बच्चे खुद भी इस पर्व पर सुंदर रंगीन वस्त्र पहनते हैं और हाथ में चमकीली छडि़यां लिए हुए सामूहिक नृत्य करते हैं।

इस दिन विश्व भर के गिरजाघरों में प्रभु यीशु की जन्मगाथा की झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं और गिरजाघरों में प्रार्थना की जाती है। हालांकि माना जाता है कि 25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है। क्रिसमस मनाए जाने के पीछे एक पुरानी कहानी सुनाई जाती है। जिसके मुताबिक, एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा। ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है। यह बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी तो वह कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि यह किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा। समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई।

भगवान के दूत ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं। उस समय जोसेफ और मैरी नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहा करते थे। उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम, जोकि इस समय फिलस्तीन में है, में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई। काफी थक−हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ।

अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी। गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया। यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने पूरे गलीलिया में घूम−घूम कर उपदेश दिए और लोगों की हर बीमारी और दुर्बलताओं को दूर करने के प्रयास किए। धीरे−धीरे उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलती गई। यीशु के सद्भावनापूर्ण कार्यों के कुछ दुश्मन भी थे जिन्होंने अंत में यीशु को काफी यातनाएं दीं और उन्हें क्रूस पर लटकाकर मार डाला। लेकिन यीशु जीवन पर्यन्त मानव कल्याण की दिशा में जुटे रहे, यही नहीं जब उन्हें क्रूस पर लटकाया जा रहा था, तब भी वह यही बोले कि ‘हे पिता इन लोगों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि यह लोग अज्ञानी हैं।’
प्रभासाक्षी से साभार

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