दलितों के मसीहा भारतीय गणतंत्र के संविधान के शिल्पकार डॉक्टर अम्बेडकर part 4

dr. j k garg
बाबा साहब हिंदू धर्म की कुरीतियों से अत्यंत व्यथित और दुखी थे और कहते थे कि मैं एकहिंदू परिवार में पैदा हुआ हूँ लेकिन मैंसत्य निष्ठा से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं।बाबा साहिब ने अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्धधर्म को स्वीकार कर लिया था | एक बौद्ध धर्म के अनुयायी के रूप में अंतिम सांस ली |बाबा साहबने भी अनेकों किताबें लिखी थी जिनमें “ दी अनटचेबल “ एवंअनिहिलेशन प्रमुख है | इन पुस्तकोंमें डा.अम्बेडकर ने हिन्दूज-हिन्दू राष्ट्र, हिन्दुओंकी सहिष्णुता. मुस्लिम-ईसाई मिस्बाह मिसनेरीज, वैदिकधर्म तथा ऋग्वेद की ऋचा X.86.14 को उद्धृतकरते हुए आर्यों में गोमांस भक्षण के बारे मे लिखा है |बाबा साहब का मानना था कि कुछ संवैधानिक अधिकार देने मात्रसे जनतंत्र की नींव पक्की नहीं होती। उनकी जनतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना में ‘नैतिकता’ और ‘सामाजिकता’दो प्रमुख मूल्य रहे हैं जिनकीप्रासंगिकता वर्तमान राजनेतिक अशीष्णुता और धार्मिक वैमनस्यता के माहोल के समय में बढ़ जाती है। दरअसल आज राजनीति मेंखींचा-तानी इतनी बढ़ गई है कि राजनीतिक नैतिकता के मूल्य गायब से हो गए हैं। हरराजनीतिक दल वोट बैंक को अपनी तरफ करने के लिए राजनीतिक नैतिकता एवं सामाजिकता कीदुहाई देते हैं,लेकिन सत्ता प्राप्ति के पश्चात इनसिद्धांतों को अमल में नहीं लाते हैं।

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