बिन पानी सब सून

विश्व जल दिवस पर विशेष

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल

मनुष्य के जीवन में पानी का बहुत महत्व है। यजुर्वेद में भी इसका उल्लेख है। मनु स्मृति में सृष्टि के प्रारम्भ का उल्लेख इस तरह है-सर्वत्र पानी ही पानी था। यहां तक कि हिमालय की ऊंचाई 29000 फीट तक पानी होने की बात कही जाती है। इसी तरह बाइबिल में आर्च विशप ऊशेर द्वारा प्रतिपादित यह धारणा कि नोह की बाढ़ में तुर्की का अरारात पर्वत 17000 फीट पानी में डूब गया था, पानी की मात्रा का अहसास कराती है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का तीन चौथाई हिस्सा समुद्र है, जिसकी औसत गहराई 12500 फीट है और इसमें अथाह पानी है। तभी तो कबीरदास जी कहते हैं, पक्षी पीये जल न धटे, सागर भरिये नीर, दान दिये धन न धटे, कह गये दास कबीर।
पानी अपनी पहुंच के लिये प्राणी मात्र को चक्कर लगवाता है तो प्रकृत्ति प्रेमी बन कर स्वयं भी सृष्टि के चारों तरफ चक्कर लगाता है, कभी समुद्र के रूप में, कभी बादल बन कर वर्षा तो कभी नदी नाले और फिर वापस समुद्र-जिसे वैज्ञानिक हाइड्रोलॉजिकल सायकिल कहते हैं, यानि पानी इंसान की जिन्दगी में छाया हुआ है। रामायण् ा के सुन्दर कांड में भले ही समुद्र स्वयं भगवान राम से नल-नील के बारे में कहता है, तिन्ह के परस किए गिरी भारे, तरिह-हि जलधि प्रत्रताप तुम्हारे, परन्तु वर्तमान युग में तो अभी तक वैज्ञानिक प्रगति इतनी पहुंची नहीं है कि पत्थर, समुद्र अर्थात पानी पर तैर सकें, इसीलिये तो घर के बड़े बूढ़े किसी मुश्किल बात के लिये कहते हैं कि पानी पर पत्थर नहीं तैरते।
पितृ प्रधान युग में नारी की वर्तमान दशा का चित्रण पानी के माध्यम से किसी कवि ने ठीक ही कहा है, नारी जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी, आंचल में ं दूध, आंखों में पानी।
इतिहास में बड़े-बड़े शूरवीर हुए हैं। वीरों ने कई बार अपनी इच्छा पूरी होने तक अन्न जल ग्रहण नहीं करने की प्रतिज्ञाएं भी की हैं। राज हठ में ही क्या, बाल हठ और त्रिया हठ में भी अक्सर ही अन्न जल ग्रहण न करके अपनी बात मनवाई गई है। इन बातों से सारा इतिहास भरा पड़ा है। कहीं कोई लड़ाई-झगड़ा हो रहा हो तो बरबस ही इतिहास का पानीपत याद आ जाता है, जहां पहली लड़ाई बाबर और राणा संग्राम में हुई थी। वहां बाद में भी युद्ध हुए हैं और इसीलिये देश के लोग छोटी-मोटी कहा-सुनी को भी यह मचा पानीपत की संज्ञा देकर अपने इतिहास ज्ञान का परिचय देते रहते हैं।
पानी के माध्यम से प्रेमी द्वारा प्रेमिका के हृदय के उद्गार जानने का संगीतकार का अनूठा प्रयास भी खूब है-पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जबकि उसे मालूम है कि पानी का कोई रंग नहीं होता। प्रेमिका को भी देखिये पानी की मार्फत अपनी विरह व्यथा किस तरह एक राजस्थानी फिल्म में प्रदर्शित कर रही है-थाने देख्यां बिना, थाने निरख्यां बिना, म्हाने अन्न पानी नहीं भावे, अर्थात जब तक आपको देख न लूं, मुझे अन्न-पानी अच्छा नहीं लगता है।
हर जगह का पानी गुणों में भिन्न होता है और इसीलिये वहां के लोगों के रहन-सहन और स्वास्थ्य पर असर डालता है। इसीलिये कहा जाता है कि भांति-भांति का पानी है या जगह-जगह का जल है। यह भी कहते हैं कि आदमी की पहचान उसके खान-पान से भी हो सकती है। अनुभवी व्यक्ति के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह घाट-घाट का पानी पिया हुआ है। पानी की ही बदौलत पनघट पर जब पनिहारिनें जाती हैं, तब घर गृहस्थी से लेकर दुनिया भर की बातें हो लेती हैं। बोलचाल की भाषा में किसी के बारे में अगर यह बताना हो कि उस व्यक्ति का काम उस चीज के बिना चल ही नहीं सकता है, तो इसके लिये पानी बगैर मछली की जिन्दगी नहीं, कितना सटीक बैठता है। किसी के लिये कोई वस्तु दुर्लभ हो तो गर्मी में रेगिस्तान में पानी की भूल भुलैया-मृग तृष्णा की तरह वह जीवन भर उससे वंचित रहता है। धनवान अपनी राशि को बेमिसाल खर्च करें तो लोग कहेंगे कि पानी की तरह पैसा बहा रहा है। भले ही वह राशि उसके पूर्वजों ने बूंद-बूंद भर कर ही संचित की हो।
पश्चिमी राजस्थान के लोग पानी का महत्व जानते हैं और कहते हैं मारवाड़ मरुधर रो वासो, धन, पश, घणो पानी रो प्यासो। तभी तो पश्चिमी राजस्थान में कहीं-कहीं दूध और पानी एक ही भाव आते हैं। इसलिए कुछ दूध में पानी और कुछ पानी में दूध मिलाते हैं। अपने देश में गांवों की संस्कृति है। गांव की एक नवयुवती देखिये अपनी जिन्दगी में कितनी छोटी सी तमन्ना रखती है, उठे ही पीर उठे ही सासरो, आथूणो हो खेत, चुए नहीं आसरो अर्थात पीहर और ससुराल एक ही गांव में हो, झोंपड़ी पश्चिम की तरफ हो और ऐसी हो कि पानी नहीं टपके, बस फिर चाहे कैसी भी हो। गांवों में आज भी हर किसी को जात बिरादरी से बाहर होने अर्थात हुक्का-पानी बंद होने का सामाजिक डर रहता है, इससे वह कई बुराइयों से बच जाता है। गांवों में अक्सर यह मुहावरा भी सुनने को मिलता है कि पानी में रह कर मगर से बैर करना उचित नहीं। तभी तो एक वाकये में ऊंट चोर का पता होने पर भी किसान किसी को नहीं बताता और अपनी पत्नी से झूठ बोल देता है कि ऊंट तो बिल्ला ले गया। जाट कहे सुण जाटणी, जिस गांव में रहना, ऊंट बिलाव ले गयो तो हांजी हांजी कहना।
पानी की महिमा से मनुष्य के स्वभाव, चरित्र चित्रण का काम कितने अच्छे तरीके से होता है, जरा गौर फमाइये। अगर कोई व्यक्ति डींग हांकता है तो उसके लिये कहा जायेगा कि फलां व्यक्ति जहां पानी बताए, वहां कीचड़ भी नहीं मिलेगा। पानी की वजह से नदी का तल छिछला दिखता है। अगर कोई व्यक्ति समुद्र की तरह गम्भीर प्रकृति का नहीं है तो कहा जायेगा कि नदी के तल की तरह छिछला है और उग्र स्वभाव का हुआ तो कहेंगे कि पानी में डूबी लकड़ी की तरह टेढ़ा है। ज्ञानी लोग किसी भी वस्तु का पानी के अंदर वजन कम हो जाने का उपयोग करते रहते हैं। कोई व्यक्ति शारीरिक शक्ति में कहीं कम पड़ जाये तो कोई न कोई कह ही देगा दूध नहीं पानी पिया है। रण बांकुरों को ललकारते वक्त कहा जाता है कि तुम्हारी रगों में खून है, पानी नहीं। किसी का शक्ति परीक्षण हो या बुद्धि परीक्षा, यही कहा जायेगा कि ‘देखें कितने पानी मेंं है। शादी-विवाह या हंसी-खुशी के मौके पर अच्छे-अच्छे पकवान देख कर किसके मुंह में पानी नहीं आ जाता। पानी के माध्यम से जीजा साली की हंसी ठिठोली की एक मिशाल देखिये- जब दूल्हे व उसके मित्रों ने कंवर कलेवा पर पानी मांगा तो साली साहिबा ने कहा देखिये आप हमारे सामने पानी मांगते हैं और जब साली जग से गिलास में पानी डालने लगी तो जीजा ने नहले पर दहला मारा और उसकी तरफ इशारा करके कहा कि देखिये आप हमारे सामने पानी भरती हैं। बाद में दूल्हा या दुल्हन किसी मौके पर शर्म के मारे पानी-पानी भी हो सकते है।
अगर कोई असम्भव बात या कार्य करने की कहे तो बुद्धिमान लोग उसे यही कह कर समझाएंगे कि भई पानी नीचे से ऊपर तो जाता नहीं। किसी भी बात के स्वाभाविक बढ़ाव को कई लोग पानी अपना रास्ता अपने आप ढूंढ़ लेता है, के वाक्य से सजाते हैं तो सुनने वाले को हामी भरनी पड़ती है। कोई भी दल राज करे विरोधी दल वाले पानी पी-पी कर सरकार को कोसते रहते हैं। कोई व्यक्ति किसी स्थान से प्रस्थान करेगा तो लोग उद्गार प्रकट करेंगे कि जितने दिन का दाना-पानी था, उतने रोज ही रहेगा, फिर तो लाद चलेगा बंजारा। कोई अगर किसी का बना बनाया काम बिगाड़ दे तो समझो कि उसने किये कराये पर पानी फेर दिया। इस तरह हम देखते हैं कि पानी इंसान की जिन्दगी के हर पल में साथ है और उसके लिये बिन पानी सब सून है।
-शिव शंकर गोयल

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