महज औपचारिकता रह गया है मजदूर दिवस मनाना

May-Day 1आज इस कम्प्यूटर युग में मजदूर को मजदूरी के लाले पड़े हैं। आज मजदूर हर रोज सुबह शाम बढती महंगाई से परेशान है। ऐसा नहीं कि इस मंहगाई की जद में सिर्फ मजदूर ही आया है। इस महंगाई रूपी ज्वालामुखी की तपिश में हर कोई झुलस रहा है, छटपटा रहा है। खाद्यान्न, सब्जी, फल व तेलों के दाम इस एक साल में लगभग पचास प्रतिशत बढ़े हैं। खाने पीने की चीजों के दाम बेतहाशा बढ ऱहे हैं। ऐसे में अगर 1 मई को मजदूर दिवस मनायें तो शाम को मजदूर के घर चूल्हा कैसे जले? यही कारण है कि आज मजदूर दिवस मात्र औपचारिक्ता बन कर रह गया।
दरअसल कल तक बड़ी बडी़ मिलें थीं, कल कारखाने थे, कल कारखानों एवं औद्योगिक इकाइयों में मशीनों का शोर मचा रहता था। मजदूर इन मशीनों के शोर में मस्त मौला होकर कभी गीत गाता तो कभी छन्द दोहे गुनगुनाता था। पर आज ये सारी मिलें कल कारखाने मजदूरों की सूनी आंखों और बुझे चूल्हों की तरह वीरान पड़े हैं। जिन यूनियनों के लिये मजदूरों ने सड़कों पर अपना लहू पानी की तरह बहाया था, उन सारी यूनियनों के झंडे मजदूरों के बच्चों के कपड़ों की तरह तार-तार हो चुके हंै। फिर भी 1 मई को हम लोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर दिवस का आयोजन करते हैं। इस दिन केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों के कल्याणार्थ अनेक योजनायें शुरू की जाती हैं, पर आजादी के 65 साल बाद भी ये सारी योजनायें गरीब मजदूर को एक वक्त पेट भर रोटी नही दे सकीं।
मई दिवस का इतिहास यू तो बहुत पुराना है। संघर्षों की बहुत लम्बी कहानी है। दरअसल मई दिवस की शुरुआत अमेरिका में हुई थी। एक दिन में आठ घंटे काम करने का श्रमिक आन्दोलन अमेरिका में गृहयुद्व के तुरन्त बाद शुरू हो गया था। अमेरिकी नेशनल लेबर यूनियन ने अगस्त 1866 में अपने अधिवेशन में यह मांग रखी कि मिल व कारखानों के मालिक मजदूरों से एक दिन में आठ घंटे का काम लें। चूंकि मालिक मजदूरों से लगातार कड़ी मेहनत गुलामों की तरह करवाते हैं, जो गलत है। निरंतर काम करने से प्राय: ऐसा हो रहा है की मजदूर थकान और कमजोरी के कारण कल कारखानो में अकसर बेहोश होकर गिर जाते हैं। अमेरिकी नेशनल लेबर यूनियन की इस घोषणा से दबे कुचले गुलामों की जिन्दगी जी रहे मजदूरों को बल मिला और देखते ही देखते यह आन्दोलन पूरे अमेरिका में फैल गया तथा मजदूरों के संगठित होने के कारण शक्तिशाली होता चला गया।
उन्नीसवीं शताब्दी के 9वें दर्शक में अमेरिका के लगभग सभी प्रमुख ओद्यौगिक शहरों में मजदूर आठ घंटे के कार्य दिवस को अपनी मांग प्रमुखता से उठाने लगे। मजदूरों के प्रर्दशन और आन्दोलन बढ़ते चले गये। अमेरिका के शिकागो शहर में 03 मई 1886 को लगभग 40 हजार मजदूर अपनी मांगें सरकार से मनवाने के लिये सड़कों पर उतर आये। मजदूरों के नारों से पूरा शिकागो शहर गूंज उठा। देखते ही देखते प्रदर्शन उग्र हो गया। पुलिस ने बड़ी बेरहमी से भूखे, प्यासे, निहत्थे मजदूरों पर गोलिया बरसा दीं। इस गोलीकांड में घटना स्थल पर 6 मजदूर मारे गये और 40 के लगभग घायल हुए। निर्दोष, निहत्थे, भूखे, प्यासे मासूम मजदूरों का खून जब धरती पर बहा तो प्रदर्शनकारियों में दुगनी ताकत भर गया। मजदूरों ने खून से सने अपने साथियों के कपड़े उठाये और उन कपड़ों को परचम बना कर आसमान की तरफ लहरा दिया। तभी से खून से रंगा ये लाल झंडा मजदूरों के संघर्ष का प्रतीक बन गया।
पुलिस द्वारा निहत्थे, बेगुनाह मजदूरों पर की गई इस बर्बर कार्यवाही के मद्देनजर 04 मई को शिकागो में मजदूरों के साथ साथ शहर की जनता ने भी एक जुलूस निकाला। जुलूस के पीछे पीछे चल रही पुलिस की टुकड़ी पर किसी शरारती तत्व ने देसी बम फैंक दिया, जिस के कारण एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई और पांच पुलिसकर्मी घायल हो गये। इस के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोली चला दी। आन्दोलन चला रहे नेताओं को पकड़ पकड़ कर फांसी पर लटका दिया गया। इस दमनचक्र के बाद भी मजदूरों का संघर्ष जारी रहा और 1 मई 1890 को इन महान बलिदानियो की स्मृति में पूरे विश्व में स्मरण दिवस मनाने का आहवान किया गया और बाद में यह मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
मजदूरों के प्रदर्शन और आन्दोलनों को देखते हुए अमेरिकी कांग्रेस ने आठ घंटे के कार्य दिवस का कानून 25 जून 1886 लगभग बीस साल मजदूरों और अमेरिकी नेशनल लेबर यूनियन द्वारा चलाये आन्दोलन के बाद संसद में पारित किया। आठ घंटे कार्य दिवस का कानून 6 अमेरिकी राज्य विधान मंडलों में भी बनाये गये, पर शुरू-शुरू में मालिकों पर इस का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और न ही मजदूरों को काम के घंटों में छूट दी गई, लेकिन मजदूर एक दिन में आठ घंटे कार्य के लिये संघर्ष करते रहे।
भारत में भी मजदूरों के लिए कई कानून बनाए गए। उसका असर भी हुआ। मगर आज भी असंगठित क्षेत्र का मजदूर बारह से सोलह घंटे काम करता है। दुकानों, प्राइवेट प्रतिष्ठानों, होटलों व रेस्तराओं, घरों, भट्टों आदि पर आज भी शोषण हो रहा है। हम मजदूर दिवस मनाते जरूर हैं। सरकार उस दिन सवैतनिक अवकाश के निर्देश जारी करती है, मगर धरातल का सच ये है कि मजदूर को कोई राहत नहीं मिली है। आज भी आम मजदूर को ये पता नहीं है कि मजदूर दिवस आखिर क्यों मनाया जाता है। मजदूर आज भी मजदूर है। चाहे कल उसने ताज महल बनाया हो, ताज होटल बनाया हो या फिर संसद भवन, उसे आज भी सुबह उठने पर सब से पहले अपने बच्चों के लिये शाम की रोटी की फिक्र होती है।

देश की नैया को ये खेता हमारे देश में,
हर बशर इस का लहू पीता हमारे देश में।

तन से लिपटा चीथड़ा है पेट से पत्थर बंधा,
इस तरहा मजदूर जीता है हमारे देश में।

इसका है अजन्ता, और ऐलोरा इस की है,
फिर भी ये फुटपाथ पर सोता हमारे देश में।

-शादाब जफर शादाब

1 thought on “महज औपचारिकता रह गया है मजदूर दिवस मनाना”

  1. मजदूर दिवस पर सटीक प्रभावशाली प्रस्तुति ..

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