सुराज संकल्प यात्रा-एक अभियान

Vasundhara  Dungarpur  9-4-2013-लक्ष्मीनारायण डाड- वात्सल्य एवं ममता की प्रतिमूर्ति रही पुण्यश्लोक हो गई पुण्यात्मा स्व. राजमाता विजय राजे जैसी मां की स्वनाम धन्य बेटी वसुन्धरा जी सुराज संकल्प की उत्कठ भावना के साथ राजस्थान की जनता के बीच एक बार फिर राजनैतिक अभियान पर है। लगभग दस वर्ष पूर्व २००३ में भी परिवर्तन का आह्वान लेकर राजे जनता के बीच राजनैतिक अभियान पर निकली थी और भरपूर सफल हुई। वसुन्धरा जी के नेतृत्व में ही पहली बार पूर्ण बहुमत (१२०) सीटों के साथ राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी। इससे पहले भी राजस्थान में भाजपा की तीन बार सरकार बनी पर पूर्ण बहुमत पहली बार प्राप्त हुआ। तब परिवर्तन यात्रा अपने खास मकसद में कामयाब रही। सता में परिवर्तन हो गया। ठीक इसी समय एक दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन भी दर्ज हुआ। जिसने उस परिवर्तन यात्रा को महत्वपूर्ण अंजाम दिया, उन वसुन्धरा जी के रूप में नेतृत्व का पीढ़ी परिवर्तन भी हुआ। जनसंघ के काल १९५२ से लेकर सन् २००३ तक जिस पूर्व पीढ़ी ने पार्टी का नेतृत्व किया था। जो पूर्व नेतृत्व राजस्थान में काम कर रहा था, उसने मानो नेतृत्व की कमान नई पीढ़ी की प्रतिनिधी वसुन्धरा जी के हाथों सौंप दी और पिढ़ी नेतृत्व का भी परिवर्तन हो गया। था।
परिवर्तन पर्व यहीं नहीं रुका। इस परिवर्तित नेतृत्व में उस विकास छवि का प्रतिबिंबन हुआ जिसकी शुरूआत दिल्ली में श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। इसी परिवर्तन के साथ राजस्थान की जनता ने विकास चक्र के परिवर्तन को भी महसूस किया। गैर कांग्रेस प्रधानमंत्री के रूप में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो पहली बार लोगों ने विकास की राजनीति का अहसास किया। तब लोगों ने विकास देखा भी और समझा भी। जैसे सड़कों का विकास वाजपेयी के राज में हुआ उससे पूर्व किसी ने ऐसे विकास की कल्पना भी नहीं की थी। वह गैस और टेलीफोन की लाईनें इनमें भी काला बाजारी ने जाने कैसी-कैसी दु:स्थितियों से देश और समाज को राहत दी वाजपेयी सरकार ने।
जैसा कि मैंने कहा है कि वाजपेयी जी के विकास का प्रतिबिंबन २००३ में वसुन्धरा जी में दिखाई दिया। जय-जय राजस्थान का नारा गुंजायमान हुआ। गहलोत के हाथों खाली खजाना वसुन्धरा जी की सदारत में अक्षय भण्डार बन गया। लगभग छू:मंतर बिजली यकायक चमक उठी किसान मजदूर व्यापारी उद्यमी सभी ने संतुष्टि प्राप्त की। बिजली-पानी-चिकित्सा सहित नगरीय एवं ग्रामीण विकास का पुनर्नियोजन हुआ। विकास को पंख लगे। एक आत्मविश्वास के साथ भगीरथी भूमिका में वसुन्धरा जी ने राजस्थान में विकास की गंगा को धरती पर उतारा। उन्होंने राजस्थान की तकदीर और तस्वीर में विकास के इन्द्रधनुषी सप्त रंग भरे। तब राजस्थान की चर्चा विकसित राज्यों में होने लगी थी। अगर परिवर्तन का वह पर्व निरन्तरता प्राप्त करता तो आज राजस्थान देश के अग्रणी प्रदेशों में एक होता। लेकिन नियति को ञ्चया मंजूर था पता नहीं मगर कालचक्र की गति कुछ ऐसी हुई कि अपनो से ही थोड़ी चूक हुई, अति आत्म विश्वास से विकास का प्रवाह बाधित हुआ। परिवर्तन का रथ अवरूद्ध हुआ। २००८ के चुनाव परिणाम और उसके बाद से अब तक जो व्यवधान और दुर्योग पैदा हुआ, तो आज राजस्थान वहीं नहीं खड़ा है जहां २००८ में था। उससे हम बहुत पीछे चले गये हैं। राजस्थान के विकास रथ को बाधा के दलदल से बाहर निकालने के लिये फिर वहीं सारथी चाहिए, जिसे हमने २००३ में चुना था। वह सारथी वसुन्धरा जी अपना नया रथ लेकर नई ऊर्जा और नई संकल्पनाओं के साथ एक बार फिर राजस्थान में राजनैतिक परिवर्तन के महाभियान पर है।
विकास भारत की राजनीति का रेखाकंनीय सकारात्मक मुद्दा है, वहीं भ्रष्टाचार हमारी राजनीति का रेखांकनीय नकारात्मक मुद्दा है। अर्थव्यवस्था को महंगाई और बेरोजगारी की चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने में कांग्रेस नेतृत्व एकदम विफल साबित हुआ है। बार-बार और लगातार राज प्राप्त करने वाली कांग्रेस इनमें से किसी भी समस्या का समाधान नहीं निकाल पाई, बल्कि मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की।
आज राजस्थान सरकार सता आकांक्षा में जिस तरह से खजाना लुटा रही, है इसका मतलब ही यह है कि गरीबी बढ़ी है, लोगों की क्रय शक्ति घटी है। क्रय शक्ति घटी न होती तो रुपये-दो रुपये किलो अनाज की जरुरत ही न होती। सता के नशे में चूर शासन-प्रशासन को शायद यह भी नहीं मालूम कि इन राहत योजनाओं में कौन-कौन कहां-कहां कितना घोटाला और लूट कर रहा है और कितना नीचे जनता तक पहुंच रहा है? बड़ी गफलत में है सरकार। इस गफलत को तोडऩे-अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने तथा विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि हम विवेक पूर्वक मतदान करें और इसी विवेक को झकझोरने का प्रत्यत्न है यह सुराज संकल्प यात्रा। सुराज का मतलब ही है विकासोन्मुखी राज्य, सु-राज का मतलब ही है भ्रष्टाचारविहीन राज, सु-राज का मतलब है महंगाई पर लगाम, सु-राज का मतलब है लाल-फीताशाही पर कमान, सु-राज का मतलब है विषमता रहित समाज, सु-राज का मतलब है सद्भावना एवं सौहाद्र्ध, सु-राज का मतलब है हर खेत को पानी और हर हाथ को काम। ऐसे ही कईं संकल्पों के साथ श्रीमती राजे अनथक यात्री बनकर राजनैतिक तीर्थ यात्रा पर है। राजस्थान का कोई शहर, कस्बा एवं कोना ऐसा नहीं है, जहां राजे की वाणी न गूंजी हो। इस अभियान के मार्फत अब भी जब वह गांव-गांव, गली-गली सता परिवर्तन की अलख जगाने निकली है तो जनता भी जगह-जगह पलक-पावड़े बिछाकर उनके स्वागत में उमड़ रही है, आतुर है। एक बार फिर सता परिवर्तन समय की मांग है, प्रदेश की जरूरत है। यकीनन् नियति उन्हें राह देगी-व्यापक जन समर्थन उन्हें शक्ति देगा। सभी कार्यकर्ता उनका संबल है। जनाधार की धनी इस राजनेता में जो ऊर्जा है, उससे निश्चय ही विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। सुराज के सभी संकल्प साकार होंगे। मंजिल है जय-जय राजस्थान, मंजिल का पता है श्रीमती वसुन्धरा राजे। सुराज संकल्प के इस रथी, सारथी वसुन्धरा जी को नमन्-वन्दन-अभिनन्दन। यात्रा की यशस्विता हेतु ढ़ेरों मंगलकामनाएं। जय-जय राजस्थान, नैति-नैति-नैति।
लेखक भीलवाड़ा नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष हैं

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