पुष्कर एवं ब्रह्मामंदिर

bramha mandir 7अजमेर शहर से लगभग14की.मी दूरी पर स्थित पुष्कर विश्व विख्यात तीर्थस्थान है, यहाँ प्रतिवर्ष प्रसिद्धपुष्कर मेलालगता है। अरावली पर्वत श्रृंखला का नाग पर्वत अजमेर और पुष्कर को अलग करता है सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्या स्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। पुष्कर में अगस्तय,वामदेव,जमदाग्नि,भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएँ आज भी नाग पहाड़ में हैं। 2011की जनगणना के अनुसार पुष्कर की जनसंख्या21, 626थी।
पुष्कर के सम्बन्ध में पोराणिक मान्यतायें—–
पुष्प से बना पुष्कर
पुष्कर के महत्व का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है | इसके अनुसार एक समय ब्रह्मा जी को यज्ञ करना था, उसके लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए ब्रह्मा जी ने प्रथ्वी पर अपने हाथ से एक कमल पुष्प को गिराया, यह पुष्प अरावली पहाडियों के मध्य गिरा और लुढकते हुए दो स्थानों को स्पर्श करने के बाद तीसरे स्थान पर ठहर गया. जिन तीन स्थानों को पुष्प ने प्रथ्वी को स्पर्श किया, वहां जलधारा फूट पडी और पवित्र सरोवर बन गए | सरोवरों की रचना एक पुष्प से हुई, इसलिए इन्हें पुष्कर कहा गया | प्रथम सरोवर कनिष्ठ पुष्कर, द्वितीय सरोवर मध्यम पुष्कर कहलाया. जहां पुष्प ने विराम लिया वहां एक सरोवर बना, जिसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा गया |
पुष्कर के बारे में एक अन्य मान्यता के अनुसार एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पृथ्वी लोक पर यज्ञ करने का निश्चय किया। उस समय पृथ्वी पर वज्रनाभ नाम के राक्षस का आतंक चारों ओर फैला हुआ था। वह बच्चों को जन्म लेते ही मार देता था। उसके आतंक की लपटें ब्रह्मलोक तक पहुंचने लगीं। ब्रह्माजी ने उस दैत्य का अंत करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने कमल पुष्प से उस दैत्य पर भीषण प्रहार कर उसका अंत कर दिया। उस पुष्प का प्रहार इतना प्रचंड था कि जहां वह गिरा,उस स्थान पर एक विशाल सरोवर बन गया।पुष्कर यानी कमल अर्थात् कमल के फूल के आघात से बना होने के कारण इसका नाम पुष्कर सरोवर हो गया। और ब्रह्माजी द्वारा यहां यज्ञ करने से इस सरोवर को आदि तीर्थ होने का पुण्य भी प्राप्त हुआ।
महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। पुष्कर के महत्व का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि सभी धर्मो के देवी-देवताओं का यहाँ आगमन रहा है।
तीर्थराज पुष्कर
तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में पाँच तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है।पुष्कर,कुरुक्षेत्र,गया,हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्ध चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार तीर्थो के गुरु पुष्कर की महत्ता इससे ही स्पष्ट हो जाती है कि पुष्कर स्नान के बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है। कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था |
मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी,मध्य पुष्कर के श्री विष्णुजी और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं। लेकिन पुष्कर का अनंनतकालीन महत्व ज्येष्ठ पुष्कर के कारण ही है।
52घाटों और लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में फैला पुष्कर अपनी मनोहारी छटा के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।52घाटों में गऊघाट,वराहघाट,वीर गुर्जर घाट,ब्रह्मघाट,जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है। विदेशी पर्यटकों को यह दृश्य बेहद भाता है। झील के बीचोंबीच छतरी बनी है।
विभिन्न समुदायों एवं धर्मों में पुष्कर का महत्व
पुष्कर के बारे में ऐसी मान्यता है के हर गुर्जर को जीवन में एक बार पुष्कर अवश्य आना चाहिए और गुर्जर घाट पर स्नान करना चाहिएlजैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावतका पद्मावतीपुरम यहाँ जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं। इसके साथ ही सिख समाज का गुरुद्वारा भी विशाल स्तर पर बनाया गया है। नए रंगजी और पुराना रंगजी का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है। जगतगुरु रामचन्द्राचार्य का श्रीरणछोड़ मंदिर,सवाई भोज मन्दिर,देव नारायण मन्दिर,भुणा जी का मन्दिर,निम्बार्क सम्प्रदाय का परशुराम मंदिर,महाप्रभु की बैठक,जोधपुर के बाईजी का बिहारी मंदिर,तुलसी मानस व नवखंडीय मंदिर,गायत्री शक्तिपीठ,जैन मंदिर,गुरुद्वारा आदि दर्शनीय स्थल हैं।पुष्कर में गुलाब की खेती भी विश्वप्रसिद्ध है।
पुष्कर का गुलाब तथा पुष्प से बनी गुलकंद,गुलाब जल इत्यादि बहुत प्रसिद्ध हैं इन सबका का बड़ी मात्रा मे निर्यात भी किया जाता है जिससे करोड़ों रुपयों की आय होती है ।
भारत में आम तोर से पौराणिक स्थलों पर काफी संख्या में पर्यटक आते हैं,पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या प्रतिदिन कम से कम चार से छह हजार के मध्य होती है, यहाँ बडी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं | विदेशी सैलानियों कोपुष्कर विशेष तौर पर पसंद है।
ब्रह्माजी का एक मात्र मंदिरपुष्कर(अजमेर)में ही है
कहा जाता है कि पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा, देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं।
आदि शंकराचार्य ने संवत्‌713में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी।
इस पवित्र मंदिर का प्रवेश द्वार संगमरमर का और दरवाजे चांदी के बने हैं। यहां भगवान शिव को समर्पित एक छोटी गुफा भी बनी है। ब्रम्हा मंदिर का निर्माण संगमरमर पत्थर से हुआ है तथा इसे चाँदी के सिक्कों से सजाया गया है। इन चाँदी के सिक्कों पर दानदाता के नाम भी खुदे हुए हैं। इसके अलावा मंदिर के दीवारों पर भी दानदाताओं के नाम लिखे हैं। यहाँ मंदिर के फर्श पर एक रजत कछुआ है। ज्ञान की देवी सरस्वती के वाहन मोर के चित्र भी मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं। यहां गायत्री देवी की एक छोटी प्रतिमा और किनारे ब्रह्माजी की चार मुखों वाली मूर्ति को चौमूर्ति कहा जाता है।

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ69फुट की ऊँचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर सावित्री ने केवल पुष्कर में ब्रह्माजी की पूजा किए जाने का श्राप दिया था।
कुछ वर्षोँ पूर्व राजपुरोहित समाज द्वारा आसोतरा जिला बाड़मेर ( राजस्थान ) में भी ब्रम्हा मन्दिर का निर्माण किया गया है, इस मन्दिर का शिलान्यास 20 अप्रैल 1961 को किया गया था किन्तु मूर्ती स्थापना 6 मई 1984 को की गई थी |
पुष्कर में कई प्रसिद्ध मंदिर और भी हैं,कई मन्दिरों को औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था उनका बाद में पुनः निर्माण किया गया था |
डा. जे के.गर्ग
Please visit our blog—gargjugalvinod.blogspot.in

error: Content is protected !!