अजमेर : एक संक्षिप्त परिचय

जगतपिता ब्रह्मा की यज्ञ-स्थली तीर्थराज पुष्कर और महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की वजह से दुनियाभर में विख्यात अजमेर अपनी विशिष्ट मिली-जुली संस्कृति व सांप्रदायिक सौहाद्र्र के लिए जाना जाता है। पेश है अजमेर का संक्षिप्त परिचय।

जगतपिता ब्रह्मा की यज्ञ-स्थली तीर्थराज पुष्कर और महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की वजह से दुनियाभर में विख्यात अजमेर अपनी विशिष्ट मिली-जुली संस्कृति व सांपद्रायिक सौहाद्र्र के लिए जाना जाता है। इसका सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक इतिहास गौरवपूर्व रहा है। यद्यपि इतिहास में इसकी स्थापना की तिथी के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन ज्ञात तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि इसकी स्थापना सातवीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रथम पुत्र अजयराज चौहान द्वारा की गई थी। प्रारंभ में यह अजयमेरु कहलाता था, जो कालांतर में अजमेर कहलाया। राजनीतिक दृष्टि से अजमेर का इतिहास काफी उठापटक भरा रहा है। यह शहर कई बार आबाद हुआ और कई बार उजड़ा। उसका विस्तृत उल्लेख ऐतिहासिक अजमेर नामक अध्याय के अतिरिक्ति अजमेर विजन के एक लेख में किया गया है।
19 वीं शताब्दी में अजमेर ब्रिटिश व्यापार एवं वाणिज्यिक उत्थान का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था। अजमेर की उपयुक्त भौगालिक स्थिति, जलवायु व अन्य अनुकूलताओं के कारण अंग्रेजी शासन में यह शिक्षा, प्रशासन व फौजी नियंत्रण के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध हुआ। सन् 1866 में अजमेर म्युनिसिपल कमेटी की स्थापना हुई, जिसके अध्यक्ष मेजर डेविडसन थे। आबादी के अनुसार बाद में इसे नगर परिषद का दर्जा दिया गया और सन् 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पहल पर यह निगम बनाया गया। तत्कालीन नगर परिषद सभापति भाजपा के श्री धर्मेन्द्र गहलोत को पहले मेयर बनने का गौरव हासिल हुआ। वर्तमान में मेयर कांग्रेस के श्री कमल बाकोलिया हैं, जो प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र हैं। सन् 1875 में अजमेर को रेलमार्ग से जोड़ा गया और शिक्षा के क्षेत्र में विकास करते हुए मेयो कॉलेज, गवर्नमेंट कॉलेज, सोफिया कॉलेज व स्कूल, सेंट एन्सलम्स आदि की स्थापना हुई। इन्हीं संस्थानों की बदोलत अजमेर को राजस्थान की शैक्षिक राजधानी बनने का गौरव हासिल हुआ।
सन् 1879 में लोको कारखाना व कैरीज वर्कशॉप की स्थापना भाप के इंजन बनाने के लिए हुई। यह रेलवे स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अजमेर ने रेलवे को सैकड़ों इंजनों का निर्माण करके दिया। आजादी के बाद सशक्त राजनीतिक नेतृत्व के अभाव में अजमेर की राजनीतिक उपेक्षा के चलते यहां से इंजन निर्माण कार्य अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया गया। अब रेलवे के सभी प्रकार के कोच साधारण स्लीपर व वातानुकूलित कोच और पैलेस ऑन व्हील्स आदि की मरम्मत का काम यहां होता है। कम लोगों को ही जानकारी है कि यहां अंग्रेजों के जमाने में युद्ध के हथियार और गोले बनाने का काम भी होता था। रेलवे को अजमेर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। इसी कारण लोग कहते हैं कि अजमेर आज जो कुछ है, वह दरगाह ख्वाजा साहब व तीर्थराज पुष्कर के साथ रेलवे की वजह से है।
सन् 1895 में क्लाक टावर व विक्टोरिया अस्पताल (वर्तमान में इसका नाम जवाहर लाल नेहरू अस्पताल है) का निर्माण प्रारंभ हुआ। अंग्रेज शासकों ने इस शहर को ब्रिटिश शासन का प्रमुख केन्द्र बना रखा था। स्वाधीनता संग्राम में भी अजमेर का विशिष्ट योगदान रहा है। अजमेर में सामाजिक जागृति की शुरुआत 19वीं शताब्दी के अंत में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा संचालित आर्य समाज आंदोलन से हुई। राजनीतिक जागृति का उदय सन् 1914-15 में नायक रासबिहारी बोस की प्रस्तावित सशस्त्र क्रांति से हुआ। मार्च 1920 में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना हुई। सन् 1926 में श्री हरिभाऊ उपाध्याय ने अजमेर की राजनीति में प्रवेश किया। अप्रैल 1930 के देशव्यापी नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में अजमेर का विशेष योगदान रहा। देश की आजादी के बाद अजमेर मेरवाड़ा का मुख्यालय मात्र रह गया। एक नवंबर 1956 में अजमेर राज्य का विलय राजस्थान में हो गया। उस वक्त राव कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अजमेर का महत्व बरकरार रखने के लिए यहां राजस्थान लोक सेवा आयोग और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई।
अजमेर राजस्थान का एक संभागीय मुख्यालय है, जिसके अंतर्गत अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर व टौंक जिले आते हैं। यहां रेलवे का मंडल कार्यालय स्थापित है। राजस्थान राजस्व मंडल, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान लोकसेवा आयोग सहित आयुर्वेद निदेशालय आदि प्रदेशस्तरीय महकमे भी यहां स्थापित हैं। अंग्रेजों के जमाने में राजा-महाराजाओं की संतानों के अध्ययन के लिए स्थापित मेयो कॉलेज यहां की शान है। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय और रीजनल कॉलेज यह साबित करते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली से अजमेर का कितना सीधा नाता है। इस प्रकार यह राजस्थान की शैक्षिक राजधानी के रूप में विख्यात हो गया। हालांकि अब अन्य बड़े शहरों में शैक्षिक गतिविधियां बढऩे के साथ ही शैक्षिक राजधानी का दर्जा कम हो गया है।
अजमेर को पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल के रूप में जाना जाता है। सांप्रदायिक विवादों के दौरान जहां देश के अन्य शहर दंगों की चपेट में आ जाते हैं, यह आमतौर पर शांत बना रहता है। हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थल पुष्करराज व मुसलमानों के पवित्र स्थान ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के अतिरिक्त जैन मंदिर, नारेली तीर्थ क्षेत्र व नसियां, बौद्ध धर्म का मठ, ईसाइयों के गिरिजाघर, सिखों के गुरुद्वारे, सिंधियों की दरबारें और साईं बाबा का मंदिर सर्वधर्म समभाव का संदेश देते हैं। आर्य समाज का भी यह गढ़ है। इसी समाज की बदौलत अजमेर में शैक्षिक गतिविधियां परवान चढ़ी हैं। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण अजमेर में ही हुआ।
अजमेर को राजस्थान का हृदय स्थल माना जाता है। यह 25.38 डिग्री से 26. 58 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 73.54 डिग्री से 75.22 डिग्री पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इसके उत्तर-पश्चिम-उत्तर में नागौर जिला, उत्तर-पूर्व में जयपुर जिला, दक्षिण-पूर्व में टौंक, दक्षिण में भीलवाड़ा और दक्षिण-पश्चिम में पाली जिला है। यह जयपुर से 138, दिल्ली से 399, अहमदाबाद से 487 व मुम्बई से 1038 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
अरावली पर्वतमाला की गोद में बसे इस शहर की भौगोलिक पहचान तारागढ़ की पर्वत चोटी से भी होती है, जो कि समुद्र तल से 2 हजार 855 फीट ऊंची है। यहां पर करीब अस्सी एकड़ जमीन पर बना किला राजा अजयपाल चौहान ने बनवाया था। भारत में किसी भी पहाड़ी पर बनने वाला यह पहला किला है। यह किला इतिहास में हुए अनेकानेक संघर्षों का गवाह है। मुगलकाल में 10 जनवरी 1615 जनवरी को ब्रिटिश राजदूत सर टामस रो ने बादशाह जहांगीर से ईस्ट इण्डिया कंपनी के लिए भारत में व्यापार की अनुमति हासिल की। बादशाह का यही फरमान बाद में हमारे लिए अंग्रेजों की गुलामी का सबब बन गया। इसके बाद 25 जून, 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी व महाराजा दौलतराव सिंधिया के बीच हुए समझौते के तहत अजमेर को अंग्रेजों के अधीन सौंप दिया गया।
अजमेर के पश्चिमी नाग पहाड़ पर अजयपाल की घाटी से सागरमती नदी निकलती है, जो कि भांवता, डूमाड़ा व पीसांगन होते हुए गोविन्दगढ़ में सरस्वती नदी से मिलती है और दोनों मिल कर लूनी नदी बनती है। उदयपुर से निकलती बनास नदी अरावली पहाड़ी में बहती हुई अजमेर के दक्षिण-पूर्व में देवली(टौंक)से गुजर कर आगे यमुना में गिरती है। इसी बनास नदी को बीसलपुर में बांध बना कर अजमेर को पानी सप्लाई किया जाता है। इसके कुछ अन्य बरसाती नदियां भी हैं, जिनमें बांडी नदी, गौरी नदी, खरेकड़ी से पुष्कर, टामकी नदी, लीलासेवड़ी से पुष्कर, होकरा वाली नदी और किशनपुरा वाली नदी शामिल हैं।
अजमेर जिले के पश्चिम में थांवला, भैरूंदा, हरसौर व परबतसर व नावां के रेतीले मैदान हैं। किशनगढ़ के दक्षिण व अजमेर के पूर्वी भाग में उपजाऊ मैदान है, जहां मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार, गेहूं, काला चना, सरसों व दालों की फसल होती है। यहां दो फसलें खरीफ (सियाळू) व रबी (ऊन्हाळू) होती हैं। अजमेर में दोमट, रेतीली, चिकनी दोमट, रेतीली दोमट व लाल मिट्टी पाई जाती है। यहां के प्रमुख खनिज लोहा, तांबा, सीसा, अभ्रक, मैगनीज, कार्बोनेट, पन्ना आदि हैं। सीसा खान में 1846 ईस्वी तक सीसा निकाला जाता था, जबकि लोहाखान से लोहा। लोहे की खानें घूघरा घाटी, किशनपुरा व काबरा पहाड़ (पुष्कर) में भी रही हैं। नरवर में काली बिंदी वाला संगमरमर व श्रीनगर में कातला पत्थर निकलता है। तारागढ़ के परकोटे वाली पहाड़ी में चांदी व अभ्रक की खानें रही हैं।
सामान्यत: यहां का अधिकतम तापमान 46 डिग्री सैल्शियस रहता है, जो कभी-कभी 48 डिग्री तक भी पहुंच जाता है। वैसे राजस्थानी भाषा की एक लोकोक्ति में उल्लेख है कि यहां गर्मी का मौसम खुशनुमा होता है। राजस्थानी की एक कहावत में तो इसका उल्लेख भी है:- सियाळो खाटू भलो, ऊन्हाळो अजमेर, नागाणो नित को भलो, सावण बीकानेर। कदाचित ब्रिटिश शासकों को यह खूब पसंद आया।
अजमेर में सड़क परिवहन के पर्याप्त साधन हैं। दिल्ली से अहमदाबाद को जोडऩे वाला प्रमुख राजमार्ग है। अहमदाबाद जाने के लिए एक मार्ग ब्यावर-आबूरोड हो कर व दूसरा उदयपुर हो कर जाता है। जयपुर के लिए हर पंद्रह मिनट में बस सेवा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी शहरों के लिए सीधी बस सेवाएं हैं। रेल मार्ग की दृष्टि से भी अजमेर का काफी महत्व है। यहां से निकलने वाले रेल मार्ग पूरे देश के रेल मार्गों से जुड़े हुए हैं और आसानी से एक ट्रेन को छोड़ कर दूसरी ट्रेन के जरिए गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है। यहां फिलहाल वायु सेवा उपलब्ध नहीं है। सबसे पास का हवाई अड्डा जयपुर का है, जो कि 138 किलोमीटर दूर है। किशनगढ़ के पास राजमार्ग से सटी हवाई पट्टी है, जिसे हवाई अड्डे में तब्दील करने की कार्यवाही चल रही है। इसके लिए राज्य व केन्द्र सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर होने के बाद अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री श्री सचिन पायलट के प्रयासों से सर्वे की कार्यवाही शुरू हो गई है।

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