एक को जानो, एक को मानो, एक हो जाओ – संत गोपाल

केकड़ी:-सतगुरु हमें एक परमात्मा का ज्ञान कराते हैं पर इंसान अज्ञानतावश अनेकता में भटकता रहता है संत-महापुरुष अपने सुख दुख की परवाह किए बगैर परमार्थ का कार्य करते रहते हैं उक्त उद्गार संत गोपाल ने अजमेर रोड स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मंडल प्रवक्ता राम चंद टहलानी के अनुसार संत गोपाल ने कहा कि इंसान परमात्मा की सुंदर रचना है इंसान परमात्मा को हाजिर नाजिर समझ कर,देख कर, स्वार्थ से ऊपर उठकर सेवा सत्कार का कार्य करें तो वह इंसान कहलाने का हक रखता है वरना निद्रा,भोजन,भोग और भय इंसान में भी है और पशुओं में भी है एक ज्ञान की वजह से ही इंसान की पहचान है।एक नूर है सबके अंदर नर है चाहे नारी,ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य,हरीजन इक दी खलकत सारी।इंसान को पता होना चाहिए मैं कौन हूं,कहां से आया हूं और कहां मुझे जाना है मेरा मानव योनि में आने का मकसद क्या है और इसका ज्ञान सद्गुरु की कराते हैं एवं तत्ववेत्ता गुरु की शरण में जाकर भी इसका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। परमात्मा कण कण में व्याप्त है, जर्रे जर्रे में मौजूद है।इंसान अज्ञानतावश वनों,उपवनों में भटक कर अपना जीवन व्यर्थ गवां रहा है अंधविश्वासों से ऊपर उठकर इंसान में चेतनता जरूरी है अगर इस मानव योनि में आकर अपना मूल मकसद नहीं जाना तो मनुष्य जन्म की यह सीढ़ी भी अपने हाथ से फिसल जाती है वापस चौरासी के चक्कर में आत्मा भटकती रहती है। परमात्मा ने जो जीवन बख्शा है इसे सत्संग,सेवा,सुमरण करते हुए परमार्थ में लगाना है संतों के वचनों को अपने जीवन में अपनाकर प्यार,नम्रता, सहनशीलता का पैगाम फैलाना है। संत हमेशा परमार्थी होते हैं इंसान को निस्वार्थ भाव से सेवा सत्कार करना सिखाते हैं पर इंसान अपनी चाल ही चल कर दुखी होता रहता है इससे उसे समझ कर,अपना कर,दूसरों का भी भला करना होगा तो ही जीवन सार्थक है कटु वचन संत ही सहता है और किसी के बस की बात नहीं इंसान तो थोड़ी-थोड़ी बात पर उग्र हो रहा है उसे शांत मन से मनन चिंतन कर कार्य करना होगा तो सफलता मिलती है पूरा नुकसान ही नुकसान होना संभव है।
सत्संग के दौरान पूजा,सानिया, उमेश,दीपक,संगीता,विधि,रेशमा, तरुणा,शीतल,रोहित,हर्षा,निशा, गुनगुन,अशोक रंगवानी,ईशा आदि ने गीत विचार भजन प्रस्तुत किए संचालन नरेश कारिहा ने किया

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