अब ऑडिट फर्मो को सजा देगा सेबी

शेयर बाजार नियामक सेबी की सुधारों की मुहिम जारी है। नियामक ने अब सूचीबद्ध कंपनियों के बहीखातों का गलत प्रमाणन करने वाली ऑडिट फर्मो को दंडित करने का फैसला किया है। इसके तहत ऐसी ऑडिट फर्मो को एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिबंधित किया जाएगा, जिनके ऑडिट किए गए खातों में आगे चलकर हेराफेरी सामने आती है। यानी ये फर्मे कुछ समय तक किसी लिस्टेड कंपनी के बहीखातों को प्रमाणित नहीं कर पाएंगी। सत्यम कंप्यूटर्स में देश का सबसे बड़ा कॉरपोरेट घोटाला सामने आने के बाद से ही ऑडिट फर्मो की भूमिका संदेह के घेरे में है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने निर्णय प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति (पीएमएसी) की सिफारिश के आधार पर लिया है। यह सुझाव आइपीओ लाने वाली कंपनियों के लिए डिसक्लोजर मानकों में सुधार से संबंधित है। जनवरी, 2009 में सत्यम (अब महिंद्रा सत्यम) में 14,000 करोड़ रुपये के घपले को कंपनी के संस्थापक बी रामलिंगा राजू व आला अफसरों ने ऑडिट फर्म की मिलीभगत से अंजाम दिया था।

इसी महीने की शुरुआत में सेबी ने सभी सूचीबद्ध कंपनियों को आदेश दिया था कि वे अपने खिलाफ की गई प्रतिकूल ऑडिट टिप्पणी वाले दस्तावेज अलग से फाइल करें। इस कदम का मकसद था कि ऑडिटरों द्वारा उठाए गए अहम मुद्दे भारी-भरकम सालाना ऑडिट रिपोर्टो में छिपे नहीं रह जाएं। अक्सर धोखाधड़ी के संभावित मामलों समेत तमाम गंभीर मुद्दे इन मोटी रिपोर्टो में दफन रह जाते हैं।

इसी महीने की 13 तारीख को जारी सर्कुलर में नियामक ने स्टॉक एक्सचेंजों से कहा था कि वे अलग से फाइल किए गए इन दस्तावेजों में उठाए गए मुद्दों की छानबीन करें। साथ ही ऑडिटरों की टिप्पणियों पर संबंधित कंपनियों से स्पष्टीकरण मांगें। अगर ऑडिटरों की प्रतिकूल टिप्पणियां गंभीर किस्म की पाई गई तो सेबी खुद पहल करेगा। ऐसी स्थिति में नियामक कंपनियों को वित्तीय खातों को नए सिरे से तैयार करने और इस बारे में शेयरधारकों को जानकारी देने का आदेश दे सकता है।

पीएमएसी ने एक सुझाव यह भी दिया था कि कंपनियों को संबंधित पार्टियों के साथ लेनदेन की सारी जानकारी पब्लिक इश्यू के बुक-रनिंग लीड मैनेजर देंगी। इसमें यह भी प्रमाणित किया जाएगा कि कंपनी के बहीखाते में दिखाया गया मुनाफा पूरी तरह वैध है। इसके अलावा आइपीओ ला रही कंपनी को बीते पांच वर्षो के दौरान कम से कम तीन साल मुनाफे में रहना चाहिए। यह कर पूर्व ऑपरेटिंग लाभ तीन वर्षो में औसतन 15 करोड़ होना चाहिए। ये सभी सिफारिशें भी सेबी ने स्वीकार कर ली हैं।

रिलायंस ब्रॉडकास्ट ‘टी’ श्रेणी में

देश के दोनों स्टॉक एक्सचेंज- बीएसई और एनएसई ने एसकेएस माइक्रोफाइनेंस व रिलायंस ब्रॉडकास्ट समेत कई फर्मो को सीमित कारोबार श्रेणी (ट्रेड-टू-ट्रेड यानी टी कैटेगरी) में डाल दिया है। इस श्रेणी के शेयरों में कोई संट्टेबाजी वाला कारोबार नहीं होता है। इसमें शेयरों की डिलीवरी और पूरा भुगतान अनिवार्य होता है। उक्त दोनों कंपनियों के अलावा फेम इंडिया समेत 47 बीएसई की टी कैटेगरी वाली सूची में डाली गई हैं। एनएसई यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने ऐसी 27 नई कंपनियों को ट्रेड-टू-ट्रेड सूची में डाला है।

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