आपने तो व्यापारी को चोर बना डाला मोदी जी…!

-निरंजन परिहार- नोटबंदी ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। व्यापारियों को चोर बना दिया। ज्वेलरी के धंधे में जबरदस्त धमक आई थी। दीपावली की चमक तो बाद में आई। लेकिन ज्वेलरी का धंधा दीपावली से कुछ दिन पहले ही चमकना शुरू हो गया था। देश भर के ज्वेलरों ने राहत की सांस ली थी। साल … Read more

पुरातची तलाईवी (‘क्रांतिकारी नेता’) अम्मा का महाप्रयाण

तीन दशकों तक तमिलनाडु की राजनीति पर राज करने वाली अम्मा के नाम से मशहूर, भारतीय राजनीति के इतिहास में अपनी अलग छवि रखने वाली अंतिम सांस तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता एक अत्यंत लोकप्रिय, साहसी, संघर्षशील एवं सशक्त नेता थी। जयललिता एक पक्के इरादों वाली करिश्माई नेता थी। वो जो ठान लेती थी … Read more

नीति और नियमों का सरलीकरण जरूरी

कालेधन एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिये नीति एवं नियमों का सरलीकरण जरूरी है। नीति आयोग के अध्यक्ष अरविंद पानगड़िया ने इसी बात की आवश्यकता व्यक्त करते हुए कहा कि जटिल टैक्स नियमों को सरल बनाने और टैक्स दरों को कम करने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए, नोटबंदी का उद्देश्य तभी … Read more

राष्ट्र गान देशभक्ती की चेतना अवश्य जगाएगा

” एक बालक को देशभक्त नागरिक बनाना आसान है बनिस्बत एक वयस्क के क्योंकि हमारे बचपन के संस्कार ही भविष्य में हमारा व्यक्तित्व बनते हैं।” सुप्रीम कोर्ट का फैसला , सिनेमा हॉल में हर शो से पहले राष्ट्र गान बजाना अनिवार्य होगा। हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है और चूँकि हम लोग अपने संवैधानिक अधिकारों … Read more

‘काश’

पुराने नोट से दुगुणी दर पर सोना खरीदने वाले सोच रहे हैं ‘काश’ क्यों ‘काश’ कहते है लोग ?? इस लब्ज का सहारा लेते है लोग ।। ये ‘काश’ न होता तो क्या होता ?? तो हर कोई इसके सहारे अपनी गलतियां न धोता, कुछ गलत होता तो ये न कहता, ‘काश’ मैं वह न … Read more

राती जगा क्यूँ देते हैं?

भौतिक विज्ञान के नियमों पर ध्यान दें तो ऊर्जा अपना स्वरुप बदल सकती है, पदार्थ अपने रंग रूप बदल सकते हैं लेकिन कभी नष्ट नहीं होते. ऊर्जा निरंतर किसी न किसी माध्यम में, किसी न किसी रूप में बहती रहती है. कल रात को घर में राती जगा था जो पितरों को समर्पित था. वैसे … Read more

क्रांतिकारी बदलाव

बैलगाड़ी से जाते हुये उन्होंने मेरे दादा से गांव की ही बोली में पूछी थी उनकी “जात” उन्होंने विनीत भाव से बता दी. वे नाराज हुये और चले गये उतार कर गाड़ी से उनको दादा ने इसको अपनी नियती माना. फिर एक दिन रेलयात्रा के दौरान उन्होंने मीठे स्वर में खड़ी बोली में जाननी चाही … Read more

कुछ समकालीन कविताएं

(1) विचाराधीन या बेचारा अधीन ? ——– इस बार भी हुआ जेल ब्रेक / भागे कैदी पर उन्हें महज कैदी कहा गया. दाढ़ी थी इनके भी, उनसे थोड़ी लम्बी भी मगर नहीं कहे गये, इस बार ये आतंकी. थोड़े सांस्कृतिक राष्ट्रवादी टाईप के थे. इसलिये पकड़ लिये गये जिन्दा वर्ना मारे जाते भोपालवालों की तरह. … Read more

लालची एवं लोभी स्वयं को ही ठगता है

-गणि राजेन्द्र विजय – लोभ-लालच से आच्छादित मन, मृग-मरीचिका में भटकता रहता है एवं पर को ही नहीं स्वयं को ठगता है, धोखा देेने के चक्कर में स्वयं धोखा खाता है। दूसरों को छलने से स्वयं की आत्मा में छाले पड़ जाते हैं और वे रिसते रहते हैं, वे दन्त की रीस देते रहते हैं। … Read more

ये आपातकाल नहीं तो क्या है ?

मैं केंद्रीय सरकार का एक सेवा निवृत कर्मचारी हूँ , मेरी पेंशन स्टेट बैंक के द्वारा मिलती है जिसमे से 8 हजार रुपये में अपने पोते पोतियों के चिल्ड्रन ग्रोथ फण्ड में जमा करता हूँ और 10 हजार रुपया अपने घर खर्च के लिए पत्नी को दे देता हूँ ? चूँकि नोट बंदी के कारण … Read more

अगर बदलाव लाना है तो कानून नहीं सोच बदलनी होगी

नोट बंदी के फैसले को एक पखवाड़े से ऊपर का समय बीत गया है बैंकों की लाइनें छोटी होती जा रही हैं और देश कुछ कुछ संभलने लगा है। जैसा कि होता है , कुछ लोग फैसले के समर्थन में हैं तो कुछ इसके विरोध में स्वाभाविक भी है किन्तु समर्थन अथवा विरोध तर्कसंगत हो … Read more

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