जीवनमूल्यों की पुनर्स्थापना का महा-पर्व दीपावली

-संजय कपिलगोत्री- हमारी संस्कृति का मूलस्वर है ”सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।’’ आलोक पर्व दीपावली में हम इस शुभकामना को साकार होते देख सकते हैं। कार्तिकी अमावस की काली रात, जब झिलमिलाते हैं माटी के दिए, घर-आँगन में, गाँव-गली, नगर-डगर में तो वह महानिशा दीपावली बन जाती है। हम अपनी सामूहिकता से उस अमावस्या … Read more

श्रम की ऋद्धि-सिद्धि का पर्व है दीपावली

सामाजिक सौहार्द्र व सामाजिक संरचना से जुड़े निर्माण कार्यों में त्योहार अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। त्योहारों के माध्यम से धर्म और जीवन मूल्यों की रक्षा होती है, संस्कारों का विकास होता है। अपनी धार्मिक परंपराओं में तमाम वैज्ञानिक व सांस्कृतिक कारण शामिल हैं। दीपावली मुख्यत: आधिभौतिक, आधिदैविक, आध्यात्मिक, तीनों रूपों का समागम करने वाला … Read more

म्हारो गांव, डूबी नाव

ओ बोटा रो बटवारो ,खाग्यो म्हारा गाव ने , लड़ पड़िया बाटण लाग्या ,एक रुख री छाव ने , बोती बगत बवलीया बाया ,आंबा किकर देत रे , तणकारीया टूटेला तार ,चेत मानखा चेत रे , गाव रे माही राजनीती रो ,एडो लाग्यो चालों , घर घर में ही मानड लियो ,ऐ मिनख बावला पालो … Read more

सुल्तान हूँ मैं….

देख कर मंज़र बहुत हैरान हूँ मैं कुछ परिंदो मे बची अब जान हूँ मैं होगा कैसे अब मिलन मेरा तुम्हारा तुम कठिन हो और बहुत आसान हूँ मैं वक़्त का इस से भी ज़्यादा अब करम क्या हर तरफ है भीड़ और वीरान हूँ मैं धारा मे दुनिया की बहकर रंग बदलना अगर है … Read more

क्या अपराधी होंगे हमारे नायक?

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा  स्वामी विवेकानंद की तुलना दाऊद इब्राहिम से करना उनका निजी विचार है या पार्टी भी इससे सहमत है यह कहना तो मुश्किल है भ्रष्टाचार के आरोपों की मार झेल रहे गडकरी  ने ऐसा विवादास्पद बयान  देकर जहां एक ओर पार्टी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है वहीं कांग्रेस … Read more

कौन लेगा इनकी सुध ?

मुहाना मण्डी की मेहनत-कश महिला मजदूरों की दयनीय  दशा श्वेता त्रिपाठी सुबह के 9 बजे, चारों ओर सब्जी और फलों से भरे ट्रक ही ट्रक! आदमी सब्जियों और फलों से भरे बोरों को ट्रक से उतार कर कांटे पर रखते जा रहे थे! सब्जियों और फलों के थोक विक्रेता बोरों को कांटे पर तोल कर खरीददारों  को बेच रहे थे। खरीददार थोक … Read more

हमें जनभावना को समझना होगा

हमारे  देश  के  नेताओ  को अपने आप पर  बड़ा  गुमान  है  की  यह भारत  देश  को  हम  चला  रहे  है -वो  सोचते  है की जो हम करना चाहे  कर  सकते  है , करवा  सकते  है -पर आज बहुत  जरुरी  हो गया  है  उनेह इस गलफहमी  से  निकालने  का -क्या  कभी  उन्होंने  इस  देश के  नागरिको  … Read more

शिक्षा के लिये मिलने वाले कर्ज का काला सच

हमारे देश में शिक्षा के नाम पर हर क्षेत्र से टैक्स के रूप में अरबों रु. लिया जा रहा है, मगर क्या वह वास्तव में उन जरूरतमंद बच्चों तक पहुँच रहा है? या पहुँचाते वक्त  बीच में आने वाले माध्यम द्वारा किस अव्यवहारिक पूर्ण तरीके से पहुँचाया जा रहा है? सरकार द्वारा यह कानून तो लागू … Read more

अपनी ही अदालत में मुकदमा हारते खडे़ अटल !

-दयानंद पांडेय- भारतीय राजनीति क्या विश्व राजनीति में भी अगर कोई एक नाम बिना किसी विवाद के कभी लिया जाएगा तो वह नाम होगा अटल बिहारी वाजपेयी का। यह एक ऐसा नाम है जिस के पीछे काम तो कई जुड़े हुए हैं पर विवाद शून्य हैं। राजनीति काजल की कोठरी है, इस में से बिना … Read more

बडा ढैया और छोटा ढैया

ज्‍योतिष में विश्‍वास रखनेवाले सभी लोगों को एक बडे ढैया की जानकारी अवश्‍य होगी , जो ढाई वर्षों तक अपना प्रभाव न सिर्फ बनाए रहता है , वरन बहुत ही बुरी हालत में लोगों को जीने को विवश भी कर देता है। हालांकि इसकी सही गणना कर पाने में परंपरागत ज्‍योतिषी अभी तक सक्षम नहीं … Read more

नटवर लाल भी कुछ नहीं पवन भूत के सामने

आज हम आपको मिलवा रहे हैं एक ऐसे महाठग से जो देश के बड़े मीडिया समूहों के साथ-साथ सभी सुरक्षा एजेंसियों को अपना सहयोगी बता कर पत्रकारिता में आने को आतुर लोगों को अपने जाल में फंसा कर पत्रकार बनाने के नाम पर ना केवल उनसे पैसा ठगता है बल्कि उनका बेशकीमती समय भी खराब … Read more

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