कासलीवाल की खबर ने बनाया इतिहास

सरकारी च्यवनप्राश को डकारने से वंचित हो गए सफेदपोश

सुरेश कासलीवाल
खबर यदि दमदार हो तो वह अपना असर छोड़ती ही है। सरकार को भी उसके आगे नतमस्तक होना पड़ता है। इसका एक दिलचस्प वाकया आपकी नजर पेश है। मामला हालांकि थोड़ा पुराना है, मगर चूंकि वह इतिहास में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करवा गया, लिहाजा आपकी जानकारी में भी होना ही चाहिए। वाकया इस प्रकार है। प्रदेश के गरीबों को च्यवनप्राश व अन्य औषधियां वितरित करने के लिए अजमेर में स्थित आयुर्वेद निदेशालय के अधीन रसायनशाला में इनका निर्माण किया जाता था। यहां से प्रदेश के तीन हजार से अधिक औषधालयों को सप्लाई की व्यवस्था की गई थी। विधानसभा व सचिवालय स्थित औषधालयों को भी इसकी सप्लाई की जाने लगी। हर साल शीतकालीन बजट सत्र से पहले ही इन औषधालयों के मार्फत विधायकों व नौकरशाहों को भी च्यवनप्राश वितरित किया जाने लगा। असल में सभी औषधालयों के लिए तब करीब साढे तीन, चार हजार किलो च्यवनप्राश बनाया जाता था लेकिन इसमें से ढाई हजार किलो तो अकेले विधानसभा व सचिवालय के दो औषधालयों में ही सप्लाई होने लगा। बंदरबांट करके एक एक किलो के सफेदपोशों व आला अफसरों को दिया जाने लगा। यह जानकारी जैसे ही दैनिक भास्कर के खोजी पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल को मिली तो उन्होंने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित कर दिया। इस खबर को तत्कालीन आयुर्वेद मंत्री इंदिरा मायाराम ने संज्ञान में लिया और मामले की गहराई से जांच करवाई। इसमें च्यवनप्राश का अधिकतर हिस्सा सफेदपोशों में बंट जाने व जरूरतमंदों के वंचित रहने की पुष्टि हो गई। इस पर उनके निर्देश पर विभाग के शासन सचिव ने आयुर्वेद निदेशक को जनवरी 2002 में पत्र लिख दिया। इसमें लिखा था कि चूंकि पिछले तीन साल के रिकार्ड से यह ज्ञात हुआ है कि रसायनशाला में जो च्यवनप्राश बन रहा है वह समस्त औषधालयों के जरूरतमन्द रोगियों को नहीं मिल पा है। अतः इसका निर्माण जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। अतः च्यवनप्राश का निर्माण तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया जाए। अर्थात न रहेगा बांस न रहेगी बांसुरी। इस प्रकार सरकारी च्यवनप्राश को डकारने से वंचित हो गए सफेदपोश। जहां तक मुझे याद है, खबर का हेडिंग था, गरीबों का च्यवनप्राश खा जाते है सफेदपोश। दरअसल सरकारी औषधालयों में बहुत सी ओषधियाँ खाने में बहुत कड़वी होती थी, सरकार ने यह सोचकर च्यवनप्राश शुरू करवाया था कि गरीब लोग च्यवनप्राश के साथ उस ओषधि को मिलाकर ले सके। इसके अलावा जो शरीर से बहुत कमजोर हो उसे दिया जा सके। लेकिन गरीबों की जगह तीन चौथाई हिस्सा सफेदपोश व अफसरों की ताकत और उन्हें हष्ट पुष्ट बनाने के काम में आने लग गया था।
एक दिलचस्प बात ये हुई कि जैसे ही भास्कर में च्यवनप्राश के निर्माण पर रोक की खबर लगी तो एक अन्य समाचार ने यह प्रकाशित कर दिया कि आयुर्वेद रसायनशाला में च्यवनप्राश के निर्माण पर कोई रोक नहीं लगी है। बल्कि इसका निर्माण बदस्तूर जारी है। इस पर सुबह ही तत्कालीन संपादक श्री अनिल लोढा ने श्री कासलीवाल को फोन कर बताया कि आज तो अन्य समाचार पत्र ने आपकी खबर की धुलाई कर दी है। तब उन्होंने संपादक जी से बस इतना कहा कि सर भास्कर कल भी तो छपेगा। चूंकि कासलीवाल ने अपने भरोसेमंद सूत्रों के आधार पर ठोक बजा कर ही खबर बनाई थी इस कारण वे निष्चिंत थे। लेकिन मन में धुकधकि मच गई, उन्हें अपने सोर्स से वो पत्र जो लेना था। उनसे बातचीत हुई और सुबह रसायनशाला खुलते ही वहां पहुँच गए। जहां सोर्स ने उन पर जताए भरोसे को कायम रखते हुए चाय की थड़ी पर ही आदेश की कॉपी थमा दी। तब श्री कासलीवाल भास्कर आफिस में रोजाना सुबह होने वाली मीटिंग में पहुँचे ओर संपादक श्री अनिल लोढ़ा जी को उस आदेश की कॉपी सौपी। अगले दिन ही भास्कर के अंतिम पेज पर आयुर्वेद विभाग के उप शासन सचिव का वह पत्र ही, यह है सच्चाई, शीर्षक से प्रकाशित कर दिया जिसमें आयुर्वेद निदेशक को च्यवनप्राश के निर्माण पर रोक का आदेश दिया गया था। है न खबर के असर का दिलचस्प वाकया। यह भी रोचक बात तब से लेकर आज तक राजकीय आयुर्वेद रसायनशाला में च्यवनप्राश का निर्माण वापस शुरू ही नहीं हो पाया।
श्री कासलीवाल वर्तमान में दैनिक भास्कर अजमेर में ही अजमेर जिले के सेटेलाइट इंचार्ज हैं। उन्होंने इस प्रकार की अनेक स्टोरीज कवर की हैं, जिनके दूरगामी प्रभाव हुए हैं। खबरों के जरिए अनेक ऐसी जानकारियों से उन्होंने जनता को रूबरू करवाया है, जिसके बारे में किसी को पता नहीं लग पाया था। उनमें से एक खबर ये भी थी कि बाल विवाह पर रोक कानून बनाने वाले हरविलास शारदा खुद ही शिकार थे बाल विवाह के।
इसके अतिरिक्त एक बहुत ब्रेकिंग स्टोरी की, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम लोकार्पण समारोह तक में नहीं गए। हुआ यह था जब श्री सुरेश कासलीवाल दैनिक भास्कर के ब्यावर ब्यूरो चीफ थे। तब टाटगढ़ में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का वहां पहाड़ी पर स्थित प्रज्ञा शिखर के लोकार्पण समारोह में आने का कार्यक्रम तय हुआ। उनके आने की तैयारियां भी शुरू हो गयी। इस बीच ही श्री सुरेश कासलीवाल ने यह खबर ब्रेक की कि राष्ट्रपति जहां लोकार्पण करने वाले हैं वहा जमीन ही विवादित है और कोर्ट में केस विचाराधीन है, ऐसे में राष्ट्रपति के हाथों लोकार्पण पर ही सवाल खड़े हुए। खबर की गूंज इतनी बड़ी थी कि सुरक्षा एजेंसियों के जरिये राष्ट्रपति भवन तक जा पहुचीं। विवाद से जुड़े कागजात भी तलब कर लिए गए। प्रशासन के भी हाथ पैर फूल गए। खबर का इतना जबरदस्त असर हुआ कि राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम तय दिन टाटगढ़ तो आये लेकिन पहाड़ी पर स्थित प्रज्ञा शिखर के लोकार्पण कार्यक्रम में नहीं गए बल्कि नीचे ही छोटे छोटे बच्चों से मिल कर ही वापस चले गए।
वस्तुतः कासलीवाल जी की दैनिक न्याय अखबार के समय से ही मुझसे काफी नजदीकी रही है। इसी कारण उनकी पत्रकारिता की यात्रा के बारे में मेरी गहन जानकारी है। इस कारण मैं पूरी जिम्मदारी व यकीन के साथ कह सकता हूं कि
श्री कासलीवाल अजमेर के उन चंद पत्रकारों में शामिल हैं, जिन्होंने पत्रकारिता महज नौकरी के लिए नहीं की, बल्कि पूरे जुनून के साथ गहरे में डूब कर की। ऐसे ही जुनूनियों के लिए कहा गया है कि जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ।

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