बंद में भाजपाइयों ने ही बाजी मारी भाजपा से

सरहद पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दो भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या के विरोध में राष्ट्र उत्थान मंच, नव निमार्ण सेना और नव दुर्गा मंडल के आव्हान पर आधे दिन अजमेर बंद करने की सर्वत्र सराहना हो रही है और इसे वक्त की जरूरत माना जा रहा है। सराहना इसलिए भी कि जब प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को सुध नहीं आई तो कम से कम इन संगठनों को ख्याल तो आया कि बंद करवाना चाहिए। इस मुद्दे पर अजमेर सोया हुआ नहीं है, जाग रहा है, कम से कम देश में यह संदेश तो गया।
मगर… मगर इसके साथ ही कुछ सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। सवाल ये कि इस मुद्दे पर भाजपा और उसके साथी संगठन विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नैपथ्य में कैसे चले गए, जबकि बंद करवाने वाले संगठनों से जुड़े अधिसंख्य नेता किसी न किसी रूप में भाजपा, विहिप व संघ से ही जुड़े हुए हैं और बंद करवाने में भी उन्हीं के कार्यकर्ता शामिल थे? इसी से जुड़ा सवाल ये भी है कि क्या भाजपा को बंद करवाने का ख्याल ही नहीं आया या फिर जानबूझ कर उसने मुद्दे को नजरअंदाज किया? कहीं ऐसा तो नहीं कि शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की अस्वस्थता के चलते अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों ने रुचि नहीं दिखाई कि कौन इतना छातीकूटा करेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि संगठन में फेरबदल की आशंकाओं के बीच इतने बड़े आयोजन में अपनी एनर्जी लगाने की जरूरत नहीं समझी गई?
असल में लगता यही है कि जिस भाजपा की जिम्मेदारी थी, उसी ने जब रुचि नहीं दिखाई तो भाजपा, विहिप व संघ से ही जुड़े कार्यकर्ताओं को ख्याल आया कि अजमेर की नाक तो ऊंची रहनी ही चाहिए, सो तीन संगठनों राष्ट्र उत्थान मंच, नव निमार्ण सेना और नव दुर्गा मंडल के बेनर तले बंद का आयोजन किया गया। आम तौर पर जब भी बंद आहूत किया जाता है तो कम से एक दिन पहले दुकानदारों व आम जनता की जानकारी में लाया जाता है, ताकि वे इसके लिए तैयार रहें, मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। जिस प्रकार चट मंगनी पट ब्याह की तरह बंद करने का निर्णय किया और अखबारों में सूचना जारी करवा कर दूसरे ही बंद आहूत किया गया, उससे ऐसा आभास भी हुआ कि यह बड़ी जल्दबाजी में किया गया, कि कहीं कोई और इस मुद्दे को न हथिया ले। कई दुकानदारों को तो पता ही नहीं था कि बुधवार को अजमेर आधा दिन बंद है। कुछ को मीडिया से पता लगा तो किसी को माउथ पब्लिसिटी से। जिनको पता नहीं लगा, उन्होंने दुकानें खोल लीं, जिन्हें बाद में बंद समर्थकों के आने पर बंद करनी पड़ी। वैसे बंद के आयोजकों को इस बात का भी अंदाजा था कि जब देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं, जिले के कस्बों में बंद हो रहे हैं तो अजमेर के दुकानदार भी सहज ही इसकी जरूरत समझेंगे। चौंकाने वाली बात ये रही कि बंद का असर पहली बार दरगाह इलाके में भी नजर आया। ऐसा इसलिए कि अगर इस मुद्दे पर यदि वे बंद नहीं रखने पर उनके बारे में बनाई गई व प्रचारित धारणा की पुष्टि न हो जाए। इस राष्ट्रीय अस्मिता के मुद्दे पर उनकी भागीदारी अजमेर की आबोहवा के लिए सुखद ही है।
पुछल्ला...बेशक बंद में भाजपा व हिंदूवादी संगठनों सहित अन्य का पूरा सहयोग रहा, मगर इसके केन्द्र में कहीं न कहीं शहर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा बताए जाते हैं। बंद आयोजकों के उनसे करीबी संबंध हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की टिकट के दावेदार हैं। अगर उनके इर्दगिर्द के लोगों की मानें वे प्रबल दावेदार हैं और किसी तगड़े सूत्र ने उन्हें टिकट दिलवाने का आश्वासन भी दे रखा है।
-तेजवानी गिरधर

2 thoughts on “बंद में भाजपाइयों ने ही बाजी मारी भाजपा से”

  1. मानना पड़ेगा कि आप हर जगह से टिकट के दावेदार को खोज कर निकल ही लेते हों , टिकट दिलवाने के अस्वासंकर्ता का नाम भी देते तो खबर का मजा बड जाता

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