मुख्यमंत्री कौन होगा, ये तो सोनिया गांधी तय करेंगी

हालांकि विधानसभा चुनाव में एक अभी एक साल बाकी है, मगर भाजपा की तरह कांग्रेस में भी भावी मुख्यमंत्री पर जद्दोजहद छिड़ी हुई है। जैसे भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और संघ-संगठन खेमे के बीच नेतृत्व के मुद्दे को लेकर टकराव सार्वजनिक हो चुका है, ठीक उसी तरह कांग्रेस में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के फिर मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चंद्रभान इतर राय जाहिर कर कांग्रेस में चल रही असंतुष्ट गतिविधियों को हवा दे रहे हैं।
असल में कांग्रेस में कोई एक फार्मूला फिक्स नहीं है। सामान्य तौर पर भले ही यह कहा जाए कि चुनाव कांग्रेस पार्टी के बैनर पर लड़ा जाता है और उसके बाद विधायकों के बहुमत के आधार पर मुख्यमंत्री तय किया जाता है, मगर ऐसा है नहीं। दिखाने भर को विधायकों की राय शुमारी होती है और मगर मुख्यमंत्री किसे बनाना है, यह आलाकमान ही तय करता है और उसी के इशारे पर मुख्यमंत्री का निर्धारण किया जाता है। ऐसे भी उदहरण हैं, जब रातोंरात मुख्यमंत्री बदल दिए गए। रहा सवाल किसी को पहले से मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का तो यह स्वाभाविक सी बात है कि जब चुनाव अभियान चलेगा तो जितनी अहमियत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की होगी, उतनी ही मौजूदा मुख्यमंत्री की होगी। आखिर मुख्यमंत्री हो तो बताएगा कि उसके नेतृत्व में काम कर रही सरकार ने जनता की भलाई के लिए क्या-क्या किया है। राजस्थान के मामले में भी ऐसा ही होगा। चुनाव के बाद क्या समीकरण होंगे, ये तो पता नहीं मगर जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही भावी मुख्यमंत्री के रूप में जनता को संबोधित करेंगे। संगठन की महत्ता जाहिर करने की खातिर अथवा किसी राजनीति के तहत, इसे चंद्रभान स्वीकार करें या नहीं, मगर सच यही है। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुंह से ही एक बार निकल चुका है कि आगामी सरकार कांग्रेस की होगी ओर मुख्यमंत्री भी वे ही होंगे। तब भी चंद्रभान ने यही प्रतिक्रिया दी थी कि पहले से मुख्यमंत्री तय नहीं किया जाएगा। विधायक ही तय करेंगे कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा। ठीक इसी प्रकार की प्रतिक्रिया अब भी दी है, जब केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश के मुंह से निकला कि अगले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही होंगे। चंद्रभान ने कहा कि चुनाव से पहले हमारे यहां मुख्यमंत्री की घोषणा नहीं की जाती। संसदीय लोकतंत्र के लिहाज से यह सही भी नहीं है कि मुख्यमंत्री की घोषणा पहले की जाए। आगामी विधानसभा चुनाव प्रदेशाध्यक्ष और मुख्यमंत्री के संयुक्त नेतृत्व में लड़ा जाएगा। चुनाव के बाद विधायक और हाईकमान अगर तय करेंगे तो अशोक गहलोत फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।
हालांकि सच ये है कि जयराम को कोई अधिकार नहीं है कि वे इस प्रकार का बयान दें, मगर चंद्रभान ने उसका खंडन करने में देर नहीं लगाई। चंद्रभान का खंडन औपचारिक भी मान लिया जाए, तब भी इसका अर्थ ये ही लगाया जा रहा है कि पार्टी के अंदर चल रही असंतुष्ट गतिविधियों के मद्देनजर उन्होंने ऐसा कहा है ताकि असंतुष्ट अनावश्यक ही हंगामा न करें। दरअसल गहलोत की कार्यप्रणाली को लेकर कांग्रेस में काफी असंतोष चल रहा है। उनके विरोधी भले ही मुख्यमंत्री बनने के लायक हैं या नहीं, मगर उनके कपड़े फाडऩे में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे। इसके पीछे दबाव की राजनीति काम कर रही है। विरोध करने वाला हर नेता अपने लिए उपयुक्त जगह बनाने की खातिर नाटक कर रहा है। विशेष रूप से जाटों का धड़े ज्यादा जोर आजमाइश कर रहे हैं, जिन्हें मलाल है कि उनका कोई नेता एक बार भी राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। एक समय में परसराम मदेरणा जरूर दमदार दावेदार हुआ करते थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। उसके बाद हरेन्द्र मिर्धा के लिए संभावनाएं देखी गईं, मुख्यमंत्री नहीं तो उप मुख्यमंत्री ही सही, मगर वे खुद ही चुनाव नहीं जीत पाए और उनका दावा समाप्त हो गया।
हालांकि कहने को जरूर यह कहा जा सकता है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के योग्य कई नेता हैं, मगर सच्चाई ये है कि इस वक्त तो केवल गहलोत ही सबसे प्रबल दावेदार हैं। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना लगभग निर्विवाद है लेकिन पार्टी का एक खेमा लगातार परिवर्तन की मांग करता रहा है। इसका एक अर्थ ये भी है कि चंद्रभान ने दूसरे दावेदारों की संभावनाओं को बरकरार रखने का संकेत दिया है। अर्थात गहलोत अगले मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर अकेले उम्मीदवार नहीं हैं।
यंू गहलोत के अतिरिक्त पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी को भी गिना जाता है। बताया तो ये भी जाता है कि अगर वे पिछले विधानसभा चुनाव में एक वोट से नहीं हारते तो उन्हें मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता था। अब जब कि हाईकमान ने उन्हें राज्य से बाहर निकाल कर केन्द्र में समाहित कर लिया है तो इस बात की संभावना कम ही है कि उनको दावेदार माना जाएगा। वैसे भी गुजरात के चुनाव परिणामों से उनके नंबर कुछ कम हुए हैं। इसके बावजूद यदि हाईकमान की मर्जी हुई कि जोशी को मुख्यमंत्री बना दिया जाए तो उसे कोई भी रोक नहीं पाएगा। वैसे समझा ये जाता है कि कांग्रेस महासचिव और पार्टी में नंबर दो राहुल गांधी आगामी चुनाव में केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट को आगे लाने में रुचि ले सकते हैं। इस बात के भी संकेत हैं कि उन्हें इससे पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का जिम्मा सौंपा जा सकता है। ऐसे में न तो गहलोत और जयराम रमेश के दावे में दम है और न ही चंद्रभान की अड़ंगी में। होगा वही, जो सोनिया गांधी व राहुल गांधी चाहेंगे।

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