निदा फाजली को समझने केलिए अक्ल चाहिए होती है

मशहूर शायर निदा फाजली को आखिर खुल कर आरोप लगाना पड़ा कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। यह विवाद हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका को फाजली के भेजे पत्र के बाद शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था-अमिताभ को एंग्री यंग मैन की उपाधि से क्यों नवाजा गया। वह तो केवल अजमल कसाब की तरह गढ़ा हुआ खिलौना है। एक को हाफिज मोहम्मद सईद ने बनाया और दूसरे को सलीम जावेद ने गढ़ा। खिलौने को फांसी दे दी गई, लेकिन खिलौना बनाने वाले को पाकिस्तान में उसकी मौत की नमाज पढऩे खुला छोड़ दिया। जब बात का बतंगड़ बनाया गया तो निदा को सफाई देनी पड़ी कि उन्होंने कभी अमिताभ बच्चन की तुलना आतंकवादी अजमल कसाब से नहीं की। उन्होंने कभी अमिताभ को आतंकवादी नहीं कहा। मीडिया ने बयान को सनसनी फैलाने के लिये तोड़ मरोड़कर पेश किया और नया विवाद पैदा कर दिया। उन्होंने एंग्री यंग मैन की छवि के बारे में बयान दिया था, अमिताभ के बारे में नहीं। अमिताभ बेहतरीन कलाकार हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। हर कलाकार की तरह हालांकि उनकी भी सीमायें हैं।
वस्तुत: फाजली की बात में जो बारीकी है, उसे समझने के लिए अक्ल की जरूरत होती है, बहुत ज्यादा नहीं, थोड़ी सी, मगर ऐसा लगता है कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पत्रकार मैनेजमेंट के दबाव में अक्ल घर छोड़ कर आते हैं और महज सनसनी फैलाने के लिए बाल की खाल उधेड़ते हैं। निदा का चिंतन व कल्पना जिस स्तर की है, जब तक उस स्तर पर जा कर बात को नहीं समझा जाएगा, ऐसे ही विवाद पैदा होते रहेंगे। पत्रकारों का वह स्तर तो टीआपी बढ़ाने के दौर में कुंद कर दिया गया है। इस प्रकरण की तुलना अगर इत्र बेचने वाले गंधी और इत्र को चाटने के बाद उसे बेस्वाद बताने वाले गंवार से की जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब जब सुनार के बना हुए गहने को लुहार को सौंपा जाएगा, ऐसा ही होगा। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। इतनी तो निदा फाजली में अक्ल होगी ही, है ही कि अमिताभ की तुलना आतंकी अजमल कसाब से कैसे करेंगे, यह समझने के लिए अक्ल की जरूरत है। वे दरअसल उस करेक्टर की बात कर रहे हैं, जिसकी वजह से अमिताभ को एंग्री यंग मैन की उपाधि से नवाजा गया। समझा जा सकता है सत्तर के दशक में ही व्यवस्था के खिलाफ एक एंग्री यंग मैन पैदा किया गया था, जो कानून को ताक पर रख कर खुद की कानून बनाता है, खुद ही फैसले सुनाता है और खुद ही सजा देता है। उसी का सुधरा हुआ रूप आज 74 साल के अन्ना हजारे हैं। सच तो ये है आज अन्ना हजारे के दौर में व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा उस जमाने से कहीं अधिक है। बेशक यह व्यवस्था के नाम पर फैली अव्यवस्था की ही उपज है। अन्ना हजारे अपने आप में कुछ नहीं, वे उसी अव्यवस्था की देन हैं। उसी अव्यवस्था से उपजे गुस्से को अन्ना ने महज दिशा भर दी है। आज अन्ना के दौर में भी सरकार पर जिस बेहतरी के दबाव बनाया गया, उसमें साफ इशारा था कि संसद में बैठे चोर-बेईमान सांसदों का बनाया कानून जनता को मंजूर नहीं, अब कानून सड़क पर आम जनता बनाएगी। निदा फाजली संभवत: इसी के इर्द गिर्द कोई बात कर रहे थे, मगर मीडिया ने तो सीधा अमिताभ व कसाब को खड़ा कर दिया। इसे सनसनी फैलाने की अतिरिक्त चतुराई माना जाए अथवा बुद्धि का दिवालियापन, इसका फैसला अब आम आदमी ही करे।
-तेजवानी गिरधर

1 thought on “निदा फाजली को समझने केलिए अक्ल चाहिए होती है”

  1. Bahut khoob. Vichar maulik lage. Aj ka Media kuchh bhi kar sakta hai. Kash vh bhi poori tarah se padha-likha hota.

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