मोदी का आखिर योगदान क्या है

nerndra modi1984 में, आज की तारीख में दो राष्ट्रीय पार्टी में से एक का तमगा हासिल, भाजपा के पास सिर्फ 2 सीट थी ! इमरजेंसी के बाद कांग्रेस वापिस सत्ता में लौटी थी और जनता पार्टी का वज़न तेज़ी से घट रहा था ! जनता पार्टी के दो कद्दावर , तत्कालीन, मंत्री (विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवानी) अलग होकर जनसंघ को भाजपा का मुखौटा पहना चुके थे ! यानि 1980 में भाजपा अस्तित्व में आयी !

तब से लेकर अब तक इसे (भाजपा को) सिर्फ 2 नामों से ही पहचाना गया- अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी ! जनसंघ  की जगह संघ का बाहुबल चलने लगा ! मगर संघ की इस राजनीतिक शाखा (भाजपा) को संसद में सीटों की ज़रुरत थी और इसके लिए खुलकर राजनीति करने वाले बड़े नामों की भी ! ज़ाहिर है, अटल और आडवानी के अलावा संघ की संजीवनी बूटी कोई नहीं था ! कारवां बढ़ा ! भाजपा ने 2 बार सत्ता का स्वाद चखा ! संघ के पास अब, भाजपा के रूप में, एक ताक़तवर राजनीतिक हथियार था !

लेकिन यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि…पार्टी विथ डिफ़रेंस ने, परिवार और अनुशासन को करीब-करीब 2010 तक संजोये रखा ! महत्त्वाकांक्षा और परिवार-वाद को पनपने की बजाय, तज़ुर्बे और क़ाबिलियत को तराशा…प्रोत्साहित किया ! मगर 2010 के बाद  भाजपा बदल सी गयी और चल पडी जनता पार्टी की राह पर ! व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा परवान चड़ने लगी और पार्टी की उपलब्धियों पर गर्व करने की बजाय व्यक्ति-विशेष पर जोर दिया जाने लगा….कमोबेश उसी तर्ज़ पर , जैसे जनता पार्टी के इमरजेंसी के “युवा नायकों” (मुलायम, लालू, नीतीश वगैरह) और “शीर्ष नेतृत्व” (चंद्रशेखर जैसे और कई…) ने खुद की महत्त्वाकांक्षा को इस कदर बढाया कि वक़्त आने पर अपनी राह जुदा कर लिए ! इनमें से कई लोग,  कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री बन कर खुद को क्षेत्रीय पार्टियों का बॉस मान कर खुश हैं और चंद्रशेखर जैसे लोग , अल्पकाल के लिए ही सही, प्रधानमंत्री की कुर्सी हथियाने में सफल रहे ! जनता पार्टी (दल) का “राष्ट्रीय पार्टी ” होने का टैग छीन गया ! टूटते-टूटते, जनता पार्टी इतना टूटी कि आज जनता पार्टी का नामलेवा भी कोई नहीं बचा ! आज उसी राह पर बी.जे.पी. है ! भाजपा शासित कई गरीब राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने शानदार काम किया ! और अपने गरीब राज्य को मध्यम श्रेणी की सीढ़ी पर लाने में सफल रहे ! पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में….हमेशा अमीर राज्य की श्रेणी में शुमार , गुजरात, के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे !

राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी कब से सक्रिय हैं और राष्ट्रीय स्तर पर उनका योगदान पूरे देश के लिए क्या रहा , इस बात का उत्तर तो नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक संघ परिवार और भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी नहीं पता ! पर मीडिया की आंधी ने मोदी को “आम आदमी से सरोकार” रखने वाला घोषित कर डाला ! मीडिया के इस “छिपे” एजेंडा के पीछे राज क्या है , इसका तो पता नहीं ,,,लेकिन मीडिया की इस एकतरफ़ा चाल से भाजपा के वो नेता नकार दिए गए, जो ना सिर्फ अपने बीमारू राज्य को दुरूस्त किये बल्कि कई मामलों में मोदी से आगे भी खड़े दिखाई दिए ! केंद्र में सक्रिय भाजपा के कई नेताओं को संघ दूध में पड़ी मक्खी की तरह समझने लगा ! देश में कांग्रेस के खिलाफ एक पार्टी को खडा करने वाले भाजपा के भीष्मपितामह, लाल कृष्ण आडवानी , को नज़रंदाज़ कर ये सन्देश देने की कोशिश की जाने लगी कि…… सत्ता ही सब कुछ है…..नमस्ते सदा वस्त्चले सत्ताभुमे ! संस्कृति की दुहाई देने वाली भाजपा को बुजुर्गों का सम्मान दिखाई देना बंद हो गया ! पार्टी को सिर्फ लोकसभा सीटों की चिंता है , लगभग उसी अंदाज़ में जैसे 1977 में जनता पार्टी को थी ! गुजरात दंगों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के योगदान की तलाश जारी है ! कांग्रेस की नाकामी को, मोदी की कूबत बताने का प्रयास ज़ोरों पर है ! अमीर गुजरात को और अमीर बनाने के लिए मोदी की प्रशंसा होनी चाहिए और हो भी रही है ! मगर ये उपलब्धि उसी तरह की है , जैसे टाटा-बिरला के घर का सपूत अपने साम्राज्य को आगे बढाने के लिए लगातार अग्रसर हो ! पर एक गरीब का बेटा अपनी मेहनत से (ना कि विरासत में मिले) कोई उपलब्धि हासिल करे तो वाकई इसे योग्यता का सही पैमाना माना जाना चाहिए ! गुजरात और गरीब राज्य  के भाजपाई मुख्यमंत्रियों में कुछ ऐसा हे अंतर है !

पार्टी की बजाय व्यक्तिगत उपलब्धि का “मोदी चलन”…अब भाजपा में आम हो चला है ! पार्टी के अन्दर, व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा अब सैद्धांतिक बात है ! सीनियर-जूनियर का  कोई मतलब नहीं रह गया है ! पार्टी की बजाय व्यक्तिगत छवि के बल पर पार्टी के अन्दर अपना कद बढाने की इस कला को भले ही लोग तहेदिल से , फिलहाल, पुचकार  रहे हों…पर भाजपा जनता पार्टी ,  हश्र की तरफ तेज़ी से बढ़ रही है ! संघ की हड़बड़ी और मोदी चलन, कैंसर की तरह फ़ैल रहे हैं ! सत्ता और सियासत की समझ का दम-ख़म , सिर्फ सीटों के अंकगणित तक सीमित है ! आम आदमी का सरोकार और पार्टी विथ डिफ़रेंस, भाजपा में बहुत दिनों तक टिका रह पायेगा कहना मुश्किल है ! व्यक्ति-विशेष के चलते , राष्ट्रीय स्तर पर, कोई पार्टी एक-जुट रह पायी है , भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा देखा नहीं गया ! परिवार-वाद के चलते कांग्रेस टिकी है और इस परिवार के बिना कांग्रेस का कोई वजूद नहीं… ये भी सब जानते हैं ! मोदी ही भाजपा और भाजपा ही मोदी हैं….ऐसा संघ और राजनाथ सिंह समझाने पर जुटे हैं….पर मोदी बिना भाजपा नहीं , ऐसी कब्र भी खोदते जा रहे हैं ! ज़ाहिर है …..इस कब्र पर प्रार्थना करने बहुत कम लोग आयेंगें या कोई भी ना आये ! हालांकि कब्र से पहले इंतकाल ज़रूरी है …और भाजपा आत्म-ह्त्या के ज़रिये दफ़न होना चाहती है ! खुदा खैर करे !

नीरज के ब्लाग ‘लीक से हटकर’ से साभार. संपर्क: [email protected]

1 thought on “मोदी का आखिर योगदान क्या है”

  1. संघ परिवार का एक ही सपना है – भारत हिंदुवादी राष्ट्र बने. संघ के कारण भाजपा नमोनियाग्रस्त हो गई है. मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित करना यह साफ़ दर्शाता है कि भाजपा की सत्ता का केन्द्र संघ परिवार है. भाजपा सोचती है कि आगामी लोक सभा आम चुनावों के बाद नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमन्त्री बन जाएँगे. भारत एक संघ है, जो २८ राज्यों एवं सात केन्द्र शासित प्रदेशों से बना है. केवल तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गोवा) में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं. भाजपा को यह लगता है कि नरेन्द्र मोदी नामक तूफान भाजपा की नैय्या को पार लगा देगा. पर मेरे मन में कुछ विचार और प्रश्न उठ खड़े हुए हैं –

    1. नरेन्द्र मोदी के गुजरात मुख्यमंत्री रहते हुए 2002 में गुजरात में दंगे हुए थे.
    2. ‘अनेकता में एकता’ सांस्कृतिक वाले इस देश में क्या वास्तव में नरेन्द्र मोदी उदारवादी दृष्टिकोण अपना सकेंगे?
    3. नरेन्द्र मोदी को संसदीय राजनीति का अनुभव नहीं है, वे कभी भी ना तो केन्द्र में मंत्री रहे और ना ही कभी संसद सदस्य.
    4. नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रचारित गुजरात का विकास क्या वास्तव में गुजरात का सर्वांगीण विकास है? गुजरात के गाँवों और दूरदराज के क्षेत्रों की स्थिति क्या है?
    5. क्या भाजपा मोदी के नाम पर जनतंत्र को साईडलाईन नहीं कर रही?
    6. क्या नरेंद्र मोदी को इसलिए ही आगे किया जां रहा है क्योंकि यह देश-विदेश के पूँजीपतियों के लिए अनुकूल है ?

    – केशव राम सिंघल

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