भाजपा महाकुम्भ में मोदी की प्रधान भागीदारी से मध्यप्रदेष भाजपा पर प्रतिकूल प्रभाव

blow-for-modi-sc-upholds-appointment-of-gujarat-lokayukta  2013-1-2-जगदीश प्रसाद शर्मा- भाजपा के भोपाल में हाल ही सम्पन्न कार्यकर्ता महाकुम्भ में भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद हेतु नामित नरेन्द्र मोदी की प्रधान अतिथि के रूप में धमाकेदार भागीदारी से मोदी को चाहे व्यक्तिगत रूप से व्यापक राजनीतिक लाभ हुआ हो, पर उनकी कट्टर हिन्दूवादी छवि से मध्यप्रदेष में भाजपा, विषेष रूप से मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान की सर्वधर्म समन्वयवादी छवि, सहिष्णु उदारता, सबको साधने-साथ लेने की नीति सहित मुस्लिम संतुष्टीकरण आदि को वैसी ही हानि भी पहुंची है। चौहान की मुस्लिम वोट प्राप्त करने की सालों की फील्डिंग पर मोदी पानी फेर गए हैं। यहां तक कि मध्यप्रदेष में भाजपा अब मुस्लिम वोटों के साथ सर्वधर्म समभाव तथा धर्म निरपेक्षता समर्थक उदार हिन्दू तथा जैन वोटों से भी वंचित हो सकती है। भाजपा को अन्यत्र भी ऐसी हानि हो सकती है।
आर.एस.एस. ने अपना सबसे बड़ा दांव लगाकर भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को विवष कर मोदी मनोनयन कराया है। यह तो भविष्य ही बताएगा कि मोदी से संघ की वांछित लक्ष्यसिद्धि हो पाती है अथवा नही। सन्निकट विधानसभाओं के चुनावों में मोदी काण्ड भाजपा के लिए बड़ा खतरा बना हो या ना बना हो, पर बड़ा जोखिम जरूर बन गया है। संघ को यदि लालकृष्ण आडवाणी स्वीकार नहीं थे, तो उनके स्थान पर श्रीमती सुषमा स्वराज अथवा उन जैसे ही किसी अन्य राजनेता को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने से भाजपा को जोखिम नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि संघ ने भाजपा के जोखिम से कोई वास्ता नहीं रखा और स्वयं की स्वार्थसिद्धि के लिए भाजपा को बाध्यकर जोखिम में डाल दिया है।
मोदी के स्थान पर यदि श्रीमती सुषमा स्वराज मनोनीत होतीं तो यही संदेष जाता कि संघ ने एक उपयुक्त महिला राजनेता को प्राथमिकता, वरीयता दी, जिससे आगामी चुनावों मे भाजपा के महिला वोटों के साथ युवा शक्ति के निर्णायक वोटों में भी निष्चित रूप से वृद्धि होती। इन चुनावों में युवाषक्ति पर ही जय-पराजय सर्वाधिक निर्भर है। श्रीमती स्वराज के नामांकन से कांग्रेस को भी करारा जवाब मिलता। उजागर होता कि यदि कांग्रेस ने स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी को महिला प्रधानमंत्री बनाया तो भाजपा भी श्रीमती स्वराज के रूप में महिला राजनेता को प्रधानमंत्री बनाने संकल्पित है। महिलाएं और युवाषक्ति उनमें इन्दिरा गांधी की छवि देखती है। श्रीमती स्वराज की अटल-आडवाणी द्वारा प्रेरित रीति-नीति अनुरूप सर्वधर्म समभावपूर्ण समन्वयवादी छवि, सहिष्णु उदारता, मुस्लिम समुदाय सहित अन्य सभी समुदायों के प्रति मैत्री भावना के कारण मुस्लिम तथा जैन समुदाय आदि के वोट भी भाजपा को सर्वत्र मिल सकते थे। चूंकि श्रीमती स्वराज मध्यप्रदेष के विदिषा संसदीय क्षेत्र से सांसद के नाते लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष हैं, इसलिए उनके मनोनयन से विदिषा क्षेत्र सहित समूचे मध्यप्रदेष में भाजपा को विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों में जीत की प्रबल संभावना होती, जबकि कार्यकर्ता महाकुम्भ में मोदी की भागीदारी के कारण मध्यप्रदेष में भाजपा की जीत की गारंटी नहीं रही है। श्रीमती स्वराज के मनोनयन से तो भाजपा को दिल्ली, हरियाणा, पंजाब सहित ना केवल उत्तर भारत के राज्यों, बल्कि दक्षिणी राज्यों में भी व्यापक लाभ हो सकता था, क्योंकि वे देष के अन्य राज्यों की भांति दक्षिणी राज्यों में भी राजनेता के रूप में जाना-पहचाना चेहरा होने के साथ वहां की महिलाओं और युवाषक्ति में विषेष रूप से लोकप्रिय है। दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी उत्तर भारतीय हिन्दी भाषा-भाषी प्रदेषों में चाहे जाने-पहचाने जाते हों, पर दक्षिणी राज्यों में तो लोग उन्हें पहचानते तक नहीं। उन्हें सर्वत्र पहचाने भी तो कैसे, क्योंकि वे मात्र एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं, जबकि श्रीमती स्वराज तो समूचे देष की लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष है। मोदी की अपरिचित राज्यों में सबसे पहले तो अपनी परिचयात्मक पहचान बनानी होगी। जब तक पहचान बनेगी, तब तक 5 राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव हो चुके होंगे। जिन राज्यों में लोग उन्हें जानते-पहचानते हैं, उनमें उनकी विवादग्रस्त छवि से भी सभी अवगत हैं। वहीं, श्रीमती स्वराज देषभर में जहां भी जानी-पहचानी जाती हैं, वहां अपनी निर्विवाद उज्जवल छवि के साथ पहचानी जाती हैं।
कार्यकर्ताओं के अनुसार भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को ध्यान देना होगा कि अभी भी बहुत कुछ चाहे बिगड़ गया हो, पर सब कुछ नहीं बिगड़ा है, इसलिए श्रीमती स्वराज को मोदी के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने में देर नहीं करनी चाहिए। वैसे भी, लोकसभा चुनाव में भाजपा इतनी सीटें ले ही नहीं सकती है कि अकेली अपने दम पर सरकार बनाते हुए मोदी को प्रधानमंत्री बना सके। सरकार यदि बनी तो एनडीए की बनेगी और एनडीए के अन्य घटकों को मोदी स्वीकार नहीं होंगे। उस समय भी श्री स्वराज जैसा राजनेता ही भाजपा को सामने लाना होगा।

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