शहर अंजान हो गया ….

तारकेश कुमार ओझा
कोरोना के कहर में , अपना ही शहर अंजान हो गया
सुनसान हुए चौक – चौराहे
बाजार वीरान हो गया ,
तिनके – तिनके से जहां थी दोस्ती ,
पहचान ही गुमनाम हो गया ,
लापता हो गई यारी – दोस्ती ,
मुल्तवी हर काम हो गया ,
एक अंजाने – अनचिन्हे डर के आगे ,
बेबस – बेचारा विज्ञान हो गया

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ट पत्रकार हैं।
संपर्कः 9434453934, 9635221463

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